दिल्ली (Delhi) की एक अदालत ने मंगलवार को कहा कि बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के एक आश्रय गृह में कई लड़कियों के यौन शोषण एवं शारीरिक उत्पीड़न के मामले में दोषी ठहराए गए ब्रजेश ठाकुर (Brajesh Thakur) और 18 अन्य को 11 फरवरी को सजा सुनाई जाएगी. सीबीआई के वकील ने ठाकुर को आजीवन कारावास की सजा देने की अदालत से अपील की जिसके बाद अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सौरभ कुलश्रेष्ठ ने अपना फैसला 11 फरवरी तक के लिए सुरक्षित रख लिया. सीबीआई ने मामले के अन्य दोषियों को भी अधिकतम सजा देने की मांग की. वहीं दोषियों ने अदालत से कम से कम सजा दिये जाने की गुहार लगाई है.
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गौरतलब है कि अदालत ने मुजफ्फरपुर आश्रय गृह मामले में 20 जनवरी को ब्रजेश ठाकुर और 18 अन्य को कई लड़कियों के यौन शोषण एवं शारीरिक उत्पीड़न का दोषी करार दिया था. इन आरोपों में अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है. ठाकुर ने 2000 में मुजफ्फरपुर के कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र से बिहार पीपुल्स पार्टी (बिपीपा) के टिकट पर चुनाव लड़ा था और हार गया था. अदालत ने अपने 1,546 पन्नों के फैसले में ठाकुर को धारा 120बी (आपराधिक षड्यंत्र), 324 (खतरनाक हथियारों या माध्यमों से चोट पहुंचाना), 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाना), उकसाने, पॉक्सो कानून की धारा 21 (अपराध होने की जानकारी देने में विफल रहने) और किशोर न्याय कानून की धारा 75 (बच्चों के साथ क्रूरता) के तहत भी दोषी ठहराया है.
हालांकि इसने मामले के एक आरोपी विक्की को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया था. महिला आरोपियों में से एक मुजफ्फरपुर की बाल संरक्षण इकाई की पूर्व सहायक निदेशिका, रोजी रानी को पॉक्सो कानून के तहत धारा 21 (1) (अपराध होने की जानकारी देने में विफल रहने) के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराया. चूंकि इस अपराध के लिए अधिकतम सजा छह महीने थी जो वह पहले ही काट चुकी हैं, इसलिए उसे अदालत ने जमानत दे दी. मुजफ्फरपुर के बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के पूर्व प्रमुख दिलीप कुमार वर्मा, जिला बाल संरक्षण इकाई के बाल संरक्षण अधिकारी रवि रोशन, सीडब्ल्यूसी के सदस्य विकास कुमार और अन्य आरोपी विजय कुमार तिवारी, गुड्डू पटेल, किशन कुमार और रामानुज ठाकुर को पॉक्सो कानून के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न और भादंसं एवं पॉक्सो कानून के तहत आपराधिक षड्यंत्र, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, चोट पहुंचाने, बलात्कार के लिए उकसाने और किशोर न्याय कानून की धारा 75 के तहत दोषी ठहराया गया.
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दो आरोपियों - राम शंकर सिंह और अश्विनी को आपराधिक षड्यंत्र और बलात्कार के लिए उकसाने के अपराधों का दोषी पाया गया. राम को भादंसं की धारा 323, किशोर न्याय कानून की धारा 75 और पॉक्सो कानून की धारा 21 के तहत भी दोषी ठहराया गया. महिला आरोपियों - शाइस्ता प्रवीन, इंदु कुमारी, मीनू देवी, मंजू देवी, चंदा देवी, नेहा कुमारी, हेमा मसीह, किरण कुमारी को आपराधिक षड्यंत्र, बलात्कार के लिए उकसाने, बच्चों के साथ क्रूरता और अपराध होने की रिपोर्ट करने में विफल रहने का दोषी पाया गया. ठाकुर की तरफ से पेश हुए वकील पी के दूबे और निशांक मट्टू ने संवाददाताओं से कहा कि वे इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे.
दिलीप का पक्ष रख रहे वकील ज्ञानेंद्र मिश्रा ने भी कहा कि आरोपी के खिलाफ कोई सबूत नहीं है और वह फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे. अदालत ने सीबीआई की तरफ से पेश किए 69 गवाहों के बयान दर्ज किए. सीबीआई का पक्ष लोक अभियोजक अमित जिंदल ने रखा. इसने 44 लड़कियों के बयान दर्ज किए जिनका आश्रय गृह में शारीरिक एवं मानसिक उत्पीड़न किया गया था. इनमें से करीब 13 मानसिक रूप से कमजोर थीं. कुछ आरोपियों की तरफ से पेश हुए वकील धीरज कुमार ने कहा कि अदालत ने बचाव पक्ष के 20 गवाहों को सुना. उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के मुताबिक इस मामले में सुनवाई प्रतिदिन चली और छह माह के भीतर पूरी कर ली गई. अदालत ने 30 मार्च, 2019 को ठाकुर समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए थे. अदालत ने बलात्कार, यौन उत्पीड़न, नाबालिगों को नशा देने, आपराधिक धमकी समेत अन्य अपराधों के लिए मुकदमा चलाया था.
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ठाकुर और उसके आश्रय गृह के कर्मचारियों के साथ ही बिहार के समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों पर आपराधिक षड्यंत्र रचने, ड्यूटी में लापरवाही और लड़कियों के उत्पीड़न की जानकारी देने में विफल रहने के आरोप तय किए गए थे. इन आरोपों में अधिकारियों के प्राधिकार में रहने के दौरान बच्चों पर क्रूरता के आरोप भी शामिल थे जो किशोर न्याय कानून के तहत दंडनीय है. अदालत ने सीबीआई के वकील और मामले के 20 आरोपियों की अंतिम दलीलों के बाद 30 सितंबर, 2019 को फैसला सुरक्षित रख लिया था.
इस मामले में बिहार की समाज कल्याण मंत्री और तत्कालीन जद (यू) नेता मंजू वर्मा को भी आलोचना का शिकार होना पड़ा था जब उनके पति के ठाकुर के साथ संबंध होने के आरोप सामने आए थे. मंजू वर्मा ने आठ अगस्त, 2018 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर इस मामले को सात फरवरी, 2019 को बिहार के मुजफ्फरपुर की स्थानीय अदालत से दिल्ली के साकेत जिला अदालत परिसर की पॉक्सो अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया था. यह मामला टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) द्वारा 26 मई, 2018 को बिहार सरकार को एक रिपोर्ट सौंपने के बाद सामने आया था. यह रिपोर्ट उसी साल फरवरी में टिस ने बिहार समाज कल्याण विभाग को सौंपी थी.
Source : Bhasha