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हफ्तों तक आग में जलती रहीं थीं नालंदा की किताबें.. जानें खिलजी ने कैसे यूनिवर्सिटी को किया था तबाह

कभी इस यूनिवर्सिटी में हजारों किताबों की लाइब्रेरी थी. यह काफी अमूल्य किताबें थी, जिसमें प्राचीन संस्कृति और उससे जुड़े साक्ष्य मौजूद थे. यहां पर फ्री रहने, खाने और पढ़ने की व्यवस्था की गई थी.

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Mohit Saxena
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PM Modi inaugurate New Nalanda University

PM Modi inaugurate New Nalanda University( Photo Credit : ani )

PM Modi to inaugurate New Nalanda University Campus: पीएम मोदी ने बुधवार को नालंदा यूनिवर्सिटी का राजगीर कैंपस राष्ट्र को समर्पित कर​ दिया. मगर क्या आपको मालूम है कि 1600 वर्षों पहले कैसी थी ये यूनिवर्सिटी. आइए आपके सामने पुरानी गौरव गाथा पेश करते हैं. नालंदा शब्द संस्कृत के तीन शब्दों से तैयार होता है. ना +आलम +दा की संधि से यह शब्द बना है. इसका मतलब है कि ज्ञान रूपी उपहार पर किसी तरह का प्रतिबंध न रखना. इसके उदेश्य से बिहार के राजगीर में आज से कई सौ साल पहले सन् 450 ईस्वी में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम ने की थी. उस समय ये भारत में उच्च शिक्षा का सबसे अहम और दुनिया के मशहूर केंद्र के रूप में था. अपनी स्थापना के करीब 700-800 सालों तक ये प्रचीन नालंदा विश्वविद्यालय देश-दुनिया में लोगों को ज्ञान के लिए जागरूक किया. शिक्षा के इस मंदिर को महान सम्राट हर्षवर्द्धन के संग पाल शासकों का भी संरक्षण मिलता रहा. 

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मुफ्त खाना और रहने की सुविधा 

दरअसल, इस विश्वविद्यालय की स्थापना का लक्ष्य पूरी दुनिया में ध्यान और अध्यात्म के ज्ञान को फैलाना था. ऐसा बताया जाता है कि भगवान गौतम बुद्ध ने कई बार नालंदा की यात्रा की. यहां पर ध्यान भी लगाया. यह विश्वविद्यालय ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और यूरोप की सबसे पुरानी बोलोग्ना यूनिवर्सिटी से भी 500 वर्ष पुराना था. तक्षशिला के बाद नालंदा को विश्व का दूसरा सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय कहा जाता है. यहां खाने के साथ फ्री आवासीय सुविधा थी. यहां पर करीब 300 कमरे और सात बड़े-बड़े कक्षा मिले. 

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कैसे होता था चयन

इस विश्वविद्यालय में दाखिले को लेकर मेरिट लिस्ट तैयार होती थी. चयनित छात्रों की पढ़ाई फ्री थी. यहां पर एक करीब 10 हजार से अधिक विद्यार्थी पढ़ाई किया करते थे. यहां पर 2700 से अधिक अध्यापक नियुक्त की गई थी. इस यूनिवर्सिटी में कोरिया, जापान, तिब्बत, चीन, ईरान, इंडोनेशिया, ग्रीस, मंगोलिया समेत कई देशों के स्टूडेंट पढ़ने के लिए आते थे. 

बख्तियार खिलजी ने मचाई थी तबाही 

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इतिहास के जानकारों का कहना है कि वर्ष 1193 में बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय पर हमला किया था. उसने पूरी यूनिवर्सिटी में आग लगा दी थी. उस समय नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में रखीं अमूल्य किताबें जलकर खाक हो गईं. ये किताबें कई दिनों तक आग में जलती रहीं. बताया जाता इन किताबों में प्रचीन औषधी और संस्कृति से जुड़े साक्ष्य मौजूद थे. कई किताबें पांडुलिपि में मौजूद थीं. यहां पर काम करने वाले कई धर्माचार्यों  और बौद्ध भिक्षुओं को मार डाला गया था.

विशाल दीवार ये घिरा पूरा परिसर  

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के आसपास के अवशेषों से पता चलता है कि पूरा परिसर एक विशाल दीवार के घेरे में था. इसमें प्रवेश को लेकर एक मेन गेट रखा गया था. इसके अंदर कई भव्य स्तूप और मंदिर तैयार किए गए थे. मंदिरों में भव्य बुद्ध की मुर्तियां स्थापित की गई थीं. ये अब नष्ट हो चुकी हैं. 

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Source : News Nation Bureau

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