बिहार में सत्ताधारी राजग को मिथिलांचल में गरीब वर्ग के लिए चलायी गयी कल्याणकारी योजनाओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मतदाताओं से प्रदेश में फिर से गठबंधन सरकार बनाने की अपील की बदौलत जीत की उम्मीद है . बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राजद की अगुवाई वाली महागठबंधन को बेरोजगारी के मुद्दे को भुनाकर और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ "सत्ता-विरोधी लहर" के सहारे अपनी चुनावी नैया पार हो जाने की आस है . वहीं राजग का मानना है कि पिछड़े क्षेत्र मिथिलांचल में हवाई अड्डे एवं एम्स समेत अन्य कल्याणकारी और विकास योजनाओं का लाभ जनता को मिला है जिससे तिरहुत तथा इलाके के अन्य क्षेत्रों में अगले दो चरणों में होने वाले चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन को मदद मिलेगी. बाढ़ की मार झेलता रहा और अत्यंत पिछड़े समुदाय (ईबीसी) के एक बड़े वर्ग जिनकी संख्या मिथिलांचल में यहां के कई विधानसभा क्षेत्रों में राज्य के औसत से अधिक हैं.
ईबीसी समुदाय से आने वाले दरभंगा नगर निवासी श्रवण दास ने केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं की ओर इशारा करते हुए कहा, ''जिसका खाएंगे, उसी का गाएंगे''. मुजफ्फरपुर जिला के गायघाट विधानसभा क्षेत्र के बेरुआ गांव निवासी भी केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं की प्रशंसा कर रहे हैं . इस गांव के एक व्यक्ति ने कहा, ''सरकार हमें पैसा, खाना और रसोई गैस सिलेंडर दिया, और क्या चाहिए.'' सिमरी पंचायत के दलित समुदाय से आने वाले राजेंद्र राम हालिया बाढ़ और कोरोनोवायरस संकट की पृष्ठभूमि में केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं के तहत कई अन्य ग्रामीणों की तरह नकद हस्तांतरण लाभ नहीं मिलने पर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हैं, लेकिन स्थानीय सरकार को उसके दर्द के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं. उन्होंने कहा, "मोदी हर किसी के साथ समान व्यवहार करते हैं. लेकिन हमारा समाज और ग्रामीण हमारे साथ भेदभाव करते हैं. मैं इसके लिए मोदी को दोषी नहीं ठहराऊंगा."
मुजफ्फरपुर के सिकंदरपुर की दलित कॉलोनी की रहने वाली आशा देवी से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा प्रदेश के विकास के लिए किए गए कार्यों के बारे में पूछे जाने पर कहती हैं, "मैं कैसे कह सकती हूं कि उन्होंने काम नहीं किया है. लेकिन जब हम कोरोना वायरस के संकट से जूझ रहे थे तो उस दौरान उन्होंने खुद को अपने घर तक सीमित रखा. उन्होंने प्रवासियों के घर लौटने का विरोध किया.
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