NS Explainer: राइट टू सेल्फ डिफेंस... कटिहार में पुलिस की गोलीबारी... और क्या कहता है कानून?

हम आपको बताते हैं कि आखिर 'राइट टू सेल्फ डिफेंस' यानि 'आत्मरक्षा का अधिकार' को कानून की किताब और खासकर भारतीय दंड संहिता, 1860 में कैसे परिभाषित किया गया है. IPC की धारा 96 से लेकर 106 तक 'आत्मरक्षा के अधिकार' को परिभाषित किया गया है.

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Shailendra Shukla
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प्रदर्शनकारियों द्वारा पुलिस पर हमला भी किया गया( Photo Credit : न्यूज स्टेट बिहार झारखंड)

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बिहार के कटिहार जिले में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प में पुलिस द्वारा की गई फायरिंग की चपेट में आने से 1 प्रदर्शनकारी की मौत हो गई है और 2 लोग घाय़ल हुए हैं. हालांकि, प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि पुलिस द्वारा पांच राउंड फायरिंग की गई है और पुलिस की गोली से तीन लोगों की अबतक मौत हुई है. वहीं, अब जो बात निकलकर सामने आ रही है वह हैरान करने वाली है. दरअसल, लोगों को प्रदर्शन करने की अनुमति जिला प्रशासन द्वारा दी गई थी. जिला प्रशासन के मुताबिक, लोग शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करते और ज्ञापन सौंपते. ज्ञापन को जिला प्रशासन बिजली विभाग को अग्रसरित करता और लोगों की समस्या का निवारण करने का आदेश देता. आरोप है कि कुछ आसामाजिक तत्वों द्वारा शांतिपूर्ण तरीके से चल रहे प्रदर्शन को अचानक हिंसानात्मक बना दिया और शांति से चल रहा प्रदर्शन अचानक उग्र कैसे हो गया ये बात खुद शांति से प्रदर्शन कर रहे लोग भी नहीं समझ सके. वहीं, पुलिस द्वारा की गई गोलीबारी में एक शख्त की मौत के मामले को प्रशासन द्वारा आत्मरक्षा में गोली चलाया जाना बताया है.

क्या कहा एसपी ने?

कटिहार के एसपी जितेंद्र कुमार ने कहा कि हम सभी लोग घटनास्थल पर मौजूद हैं. आप  देख सकते हैं कि यहां कोई भी ऐसी चीज नहीं है जिसे तोड़ा नहीं गया हो. ऐसा लग रहा है कि प्लानिंग के तहत इसके इंस्टीगेट किया गया है क्योंकि अचानक से यहां सब हुआ. प्रत्यक्षदर्शियों और सम्मानित लोगों के द्वारा बताया गया कि हम प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन अचानक उग्र प्रदर्शन होने लगा. उपद्रवियों द्वारा अधिकारियों को एक रूप में बंधक बनाया गया. बिजली कर्मी और पुलिकर्मियों को चोटें आई हैं. आत्म रक्षा में पुलिस द्वारा गोली चलाई गई है. पूरी घटना की हम जांच करेंगे. दोषी के खिलाफ हम सख्त से सख्त कार्रवाई करेंगे. लोग बहुत ही नॉर्मल तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन शांति तरीके से जो लोग प्रदर्शन कर रहे थे उन्हें भी ये नहीं समझ आया कि प्रदर्शन अचानक हिंसक हो गया.

डीएम और एसपी के बयान आप ऊपर दिए गए यू-ट्यूब लिंक पर क्लिक करके देख व सुन सकते हैं

क्या कहा डीएम ने?

कटिहार के डीएम रवि प्रकाश ने न्यूज स्टेट बिहार झारखंड से खास बातचीत में कहा कि आज बिजली विभाग के खिलाफ प्रदर्शन करने की अनुमति लोगों द्वारा ली गई थी और उसे जिला प्रशासन द्वारा अनुमति दी गई थी. लेकिन कुछ उपद्रवियों की वजह से प्रदर्शन हिंसक हो गया. प्रशासन द्वारा आत्मरक्षा में गोली चलाई गई. हम उपद्रवियों को चिन्हित करके कार्रवाई करेंगे. आज सिर्फ इतना होना था कि लोग शांति से प्रदर्शन करते और हमें ज्ञापन सौंपते. हम उसे बिजली विभाग को अग्रसरित करते लेकिन कुछ उपद्रवियों द्वारा प्रदर्शन को उग्र बना दिया गया. जिन्होंने प्रदर्शन को उग्र बनाया उनमें से हमने कुछ को चिन्हित कर लिया है और कुछ को चिन्हित करना है. किसी भी दोषी को छोड़ा नहीं जाएगा.  

आपने डीएम और एसपी का बयान सुना. जाहिर सी बात प्रशासन के दावों में दम जरूर है. प्रदर्शनकारियों की संख्या ज्यादा ही रही होगी. कम से कम इतनी ज्यादा तो जरूर थी जो पुलिसकर्मियों की संख्या से ज्यादा हो. भारी संख्या में लोग प्रदर्शन करने पहुंचे थे. ऐसे मौके पर आसामाजिक तत्व भी सक्रिय हो जाते हैं और माहौल खराब करने का पूरा प्रयास करते है. माहौल खराब ना हो सके, लोग अपनी बात भी उच्च स्तर पर उठा सके और कानून व्यवस्था भी बनी रहे, इसका जिम्मा सिर्फ और सिर्फ पुलिस पर होता है. अब अगर कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी उठाने वाले यानि कि पुलिस पर ही अचानक भीड़तंत्र हमला कर दे तो पुलिस क्या करे? जवाब होगा उसे भी अपना बचाव करना ही होगा.

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पुलिस के पास भी राइट टू सेल्फ डिफेंस (आत्मरक्षा का अधिकार) होता है. बल्कि आत्मरक्षा के तरीके भी पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग के दौरान दी जाती है और आत्मरक्षा की ट्रेनिंग पुलिसकर्मियों की ट्रेनिंग का एक अहम हिस्सा होती है. ऐसे में हम आपको बताते हैं कि आखिर 'राइट टू सेल्फ डिफेंस' यानि 'आत्मरक्षा का अधिकार' को कानून की किताब और खासकर भारतीय दंड संहिता, 1860 में कैसे परिभाषित किया गया है. भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 96 से लेकर 106 तक 'आत्मरक्षा के अधिकार' को परिभाषित किया गया है. इसके अलावा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में भी 'आत्मरक्षा के अधिकार' को परिभाषित किया गया है.

राइट टू सेल्फ डिफेंस के मामले में क्या कहता है भारत का संविधान

अनुच्छेद 21: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 में इस बात का अधिकार हर नागरिक को है कि कोई आपका प्राण नहीं ले सकता. अनुच्छेद लोगों को प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है. इसका अर्थ ये है कि कोई आप की जान नहीं ले सकता है. मतलब अगर ऐसा लगे कि सामने वाले के कृत्य से आपकी जान जा सकती है तो आप अपनी जान बचाने के लिए उचित कदम जो आपको उस समय सही लगे उठा सकते हैं.

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प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के विषय में

आईपीसी की धारा 96: प्राइवेट प्रतिरक्षा में की गई बातें कोई बात अपराध नहीं है, जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में की जाती है.

आईपीसी की धारा 97: शरीर तथा सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार धारा 99 में अन्तर्विष्ट निर्बन्धनों के अध्यधीन, हर व्यक्ति को अधिकार है की वह

पहला- मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले किसी अपराध के विरुद्ध अपने शरीर और किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की प्रतिरक्षा करे.
दूसरा- किसी ऐसे कार्य के विरुद्ध, जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार की परिभाषा में आने वाला अपराध है, या जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार करने का प्रयत्न है, अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की, चाहे जंगम, चाहे स्थावर सम्पत्ति की प्रतिरक्षा करे.

आईपीसी की धारा 98: ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकृतचित्त आदि हो जबकि कोई कार्य, जो अन्यथा कोई अपराध होता, उस कार्य को करने वाले व्यक्ति के बालकपन, समझ की परिपक्वता के अभाव, चित्त-विकृति या मत्तता के कारण, या उस व्यक्ति के किसी भ्रम के कारण, अपराध नहीं है, तब हर व्यक्ति उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है जो वह उस कार्य के वैसा अपराध होने की दशा में रखता.

आईपीसी की धारा 99: ऐसे कार्य, जिनके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है यदि कोई कार्य, जिससे मृत्यु या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित नहीं होती, सद्भावपूर्वक अपने पदाभास में कार्य करते हुये लोक- सेवक द्वारा किया जाता है या किये जाने का प्रयत्न किया जाता है तो उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है, चाहे वह कार्य विधि अनुसार सर्वथा न्यायानुमत न भी हो. यदि कोई कार्य, जिससे मृत्यु या घोर उपहति की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित नहीं होती, सद्भावपूर्वक अपने पदाभास में कार्य करते हुये लोक-सेवक के निर्देश से किया जाता है, या किये जाने का प्रयत्न किया जाता है, तो उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है, चाहे वह निर्देश विधि-अनुसार सर्वथा न्यायानुमत न भी हो. उन दशाओं में, जिनमें सुरक्षा के लिये लोक-प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त करने के लिये समय है, प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है. इस अधिकार के प्रयोग का विस्तार किसी दशा में भी प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार उतनी अपहानि से अधिक अपहानि करने पर नहीं है, जितनी प्रतिरक्षा के प्रयोजन से करनी आवश्यक है.

उदाहरण 1: कोई व्यक्ति किसी लोक-सेवक द्वारा ऐसे लोक सेवक के नाते किये गये, या किये जाने के लिये प्रयतित, कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार से वंचित नहीं होता, जब तक कि वह यह न जानता हो या विश्वास करने का कारण न रखता हो, कि उस कार्य को करने वाला व्यक्ति ऐसा लोक सेवक है.

उदाहरण 2: कोई व्यक्ति किसी लोक-सेवक के निदेश से किये गये, या किये जाने के लिये प्रयतित, किसी कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार से वंचित नहीं होता, तब तक कि वह यह न जानता हो, या विश्वास करने का कारण न रखता हो, कि उस कार्य को करने वाला व्यक्ति ऐसे निदेश से कार्य कर रहा है, या जब तक कि वह व्यक्ति उस प्राधिकार का कथन न कर दे जिसके अधीन वह कार्य कर रहा है, या यदि उसके पास लिखित प्राधिकार है, जो जब तक कि वह ऐसे प्राधिकार को मांगे जाने पर पेश न कर दे.

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आईपीसी की धारा 100: शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्युकारित करने पर कब होता है-शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, पूर्ववर्ती अंतिम धारा में वर्णित निर्बन्धनों के अधीन रखते हुये, हमलावर की स्वेच्छया मृत्युकारित करने या कोई अन्य अपहानि कारित करने तक है, यदि वह अपराध, जिसके कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, एतस्मिनपश्चात् प्रगणित भांतियों में से किसी भी भांति का है, अर्थात

पहला: ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम मृत्यु होगा.
दूसरा: ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम घोर उपहति होगा.
तीसरा: बलात्संग करने के आशय से किया गया हमला.
चौथा: प्रकृति-विरुद्ध काम तृष्णा की तृप्ति के आशय से किया गया हमला.
पांचवां: व्यपहरण या अपहरण करने के आशय से किया गया हमला.
छठवां: इस आशय से किया गया हमला कि किसी व्यक्ति का ऐसी परिस्थितियों में सदोष परिरोध किया जाए, जिनसे उसे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि वह अपने को छुड़वाने के लिये लोक-प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त नहीं कर सकेगा.
सातवां: अम्ल फेंकने या देने का कृत्य या अम्ल फेंकने या देने का प्रयास करना जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि ऐसे कृत्य के परिणामस्वरुप अन्यथा घोर उपहति कारित होगी

आईपीसी की धारा 101: कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक होता है यदि अपराध पूर्वगामी अंतिम धारा में प्रगणित भांतियों में से किसी भांति का नहीं है, तो शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार हमलावर की मृत्यु स्वेच्छया कारित करने तक का नहीं होता, किन्तु इस अधिकार का विस्तार आईपीसी की धारा 99 में वर्णित निर्बन्धनों के अध्यधीन हमलावर की मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का होता है.

आईपीसी की धारा 102: शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारम्भ और बना रहना शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उसी क्षण प्रारम्भ हो जाता है, जब अपराध करने के प्रयत्न या धमकी से शरीर के संकट की युक्तियुक्त आशंका पैदा होती है, चाहे वह अपराध किया न गया हो, और वह तब तक बना रहता है जब तक शरीर के संकट की ऐसी आशंका बनी रहती है.

सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा

आईपीसी की धारा 103: कब सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्युकारित करने तक का होता है- अधिकार का विस्तार, धारा 99 में वर्णित निबन्धनों के अध्यधीन दोषकर्ता की मृत्यु या अन्य अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का है, यदि वह अपराध जिसके किये जाने के, या किये जाने के प्रयत्न के कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, एतस्मिनपश्चात् प्रगणित भांतियों में से किसी भी भांति का है, अर्थात-

पहला: लूट
दूसरा: रात्रि गृह-भेदन,
तीसरा: अग्नि या अग्नि द्वारा रिष्टि, जो किसी ऐसे निर्माण, तम्बू या जनयान को की गई है, जो मानव आवास के रूप में या सम्पत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में लाया जाता है.
चौथा: चोरी, रिष्टि या गृह अतिचार, जो ऐसी परिस्थितियों में किया गया है, जिनसे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि यदि प्राइवेट प्रतिरक्षा के ऐसे अधिकार का प्रयोग न किया गया तो परिणाम मृत्यु या घोर उपहति होगा.

आईपीसी की धारा 104: ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का कब होता है यदि वह अपराध, जिसके किये जाने या जिसके किये जाने के प्रयत्न से प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, ऐसी चोरी, रिष्टि या आपराधिक अतिचार है जो पूर्वगामी अंतिम धारा में प्रगणित भांतियों में से किसी भांति की न हो, तो उस अधिकार का विस्तार स्वेच्छा मृत्यु कारित करने तक का नहीं होता, किन्तु उसका विस्तार धारा 99 में वर्णित निर्बन्धनों के अध्यधीन दोषकर्ता को मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का होता है.

आईपीसी की धारा 105: सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारम्भ और बना रहना सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार तब प्रारम्भ होता है, जब सम्पति के संकट की युक्तियुक्त आशंका प्रारम्भ होती है. सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार चोरी के विरुद्ध अपराधी के सम्पत्ति सहित पहुंच से बाहर हो जाने तक अथवा या तो लोक-प्रधिकारियों की सहायता अभिप्राप्त कर लेने या सम्पत्ति प्रत्युद्धृत हो जाने तक बना रहता सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार लूट के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी किसी व्यक्ति की मृत्यु या उपहति या सदोष अवरोध कारित करता रहता या कारित करने का प्रयत्न करता रहता है, अथवा जब तक तत्काल मृत्यु का, या तत्काल उपहति का, या तत्काल वैयक्तिक अवरोध का भय बना रहता है. सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार आपराधिक अतिचार या रिष्टि के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी आपराधिक अतिचार या रिष्टि करता रहता है. सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार रात्रि गृह भेदन के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक ऐसे गृह भेदन से आरम्भ हुआ गृह अतिचार होता रहता है.

आईपीसी की धारा 106: घातक हमले के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जबकि निर्दोष व्यक्ति को अपहानि होने की जोखिम है- जिस हमले से मृत्यु की आशंका युक्तियुक्त रूप से कारित होती है, उसके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने में यदि प्रतिरक्षक ऐसी स्थिति में हो कि निर्दोष व्यक्ति की अपहानि की जोखिम के बिना वह उस अधिकार का प्रयोग कार्यसाधक रूप से न कर सकता हो तो उसके प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार वह जोखिम उठाने तक का है.

निष्कर्ष

विधिक जानकारों के मुताबिक, कटिहार कांड में एसपी और डीएम का दावा अगर सही है तो भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 106 पुलिसकर्मियों का बचाव करेगी जो उन्हें राइट टू सेल्फ डिफेंस यानि आत्मरक्षा का अधिकार देती है. खासकर जांच के बाद अगर ये बात सामने आती है कि पुलिस की गोली से मरा शख्ष निर्दोष था. क्योंकि प्रदर्शन के दौरान अधिकतर मामलों में निर्दोष ही गोली के शिकार बनते रहे हैं.

HIGHLIGHTS

  • देश के हर नागरिक को है आत्मरक्षा का अधिकार
  • देश का संविधान और आईपीसी देती है आत्मरक्षा का अधिकार
  • आईपीसी की धारा 96 से 106 तक आत्मरक्षा के अधिकार से जुड़ा
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में भी आत्मरक्षा का अधिकार
  • आत्मरक्षा में अपनी जान-माल, सम्मान की रक्षा में कोई भी कदम उठाया जा सकता है
  • आत्मरक्षा का मामला तभी बनेगा जब विपक्षी भौतिक रूप से हमला करे
  • गाली-गलौच के बदले गाली देना आत्मरक्षा नहीं माना जाएगा
  • इज्जत बचाने, अपहरण से बचने, खुद पर हमले का विरोध करना माना जाता है आत्मरक्षा

Source : Shailendra Kumar Shukla

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