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News State Explainer: 'समाधान यात्रा' से CM नीतीश को निकालने होंगे कई 'समाधान'

आखिर नीतीश कुमार को 'समाधान यात्रा' से आगामी लोकसभा चुनाव और बिहार विधानसभा चुनाव के लिए कितना 'समाधान' मिलने वाला है?

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Shailendra Shukla
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SAMADHAN YATRA

समाधान यात्रा के दौरान सीएम नीतीश कुमार( Photo Credit : सोशल मीडिया)

बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव होने हैं लेकिन इससे पहले 2024 में देश में लोकसबा चुनाव होने हैं. लोकसभा चुनाव 2024 के लिए देश के लगभग सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गई हैं लेकिन कुछ राजनीतिक दल और राजनेता ऐसे भी हैं जो खुद को ताकतवर मान रहे हैं और इसके लिए सहारा ले रहे हैं पद यात्रा का. पहले राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक पद यात्रा कर रहे हैं. राहुल गांधी के पीछे लोगों की भारी भीड़ देखने को लगभग हर जगह जहां-जहां उनकी 'भारत जोड़ो यात्रा' जा रही है वहां-वहां दिख रही है. दूसरे दलों के नेता भी उनके साथ कदम से कदम मिलाते दिख रहे हैं.

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वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस, जेडीयू समेत तमाम दलों के लिए राजिनीतिक समीकरण सेट करने में शामिल रहे मशहूर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर यानि पीके भी बिहार में सुराज यात्रा के तहत लोगों से लगातार संपर्क बना रहे हैं. अब बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी 'समाधान यात्रा' पर निकल चुके हैं और राज्य में हुए विकास कार्यों की समीक्षा कर रहे हैं और सीधे आम जनता से मिल रहे हैं.

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कुल मिलाकर 17 साल से ज्यादा बिहार का सीएम रहने के बाद सीएम नीतीश कुमार को आम जनता से सीधे संवाद करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? क्या एनडीए से पूरी तरह से अलग होने के बाद उन्हें आम जनता की याद आई? या दिल्ली की लड़ाई में प्रबल दावेदार के रूप में उभरने के लिए नीतीश कुमार आम जन से सीधे संवाद करने पहुंच रहे हैं? सवाल ये भी उठ रहा है कि आखिर नीतीश कुमार को 'समाधान यात्रा' से खुद के लिए और खासकर आगामी लोकसभा चुनाव और बिहार विधानसभा चुनाव के लिए कितना 'समाधान' मिलने वाला है? और उन्हें आम लोगों से जुड़ी किन-किन समस्याओं का समाधान करना पड़ेगा.

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शराबबंदी कानून पर कितना 'समाधान' मिलेगा?

बिहार में शराबबंदी कानून लागू है लेकिन पूर्ण रूप से धरातल पर शराबबंदी कानून नहीं लागू है. ये बात किसी से छिपी हुई नहीं है. खुद सीएम नीतीश कुमार भी कई मौके पर आंकड़े देते हुए ये कहते हुए सुने गए हैं कि इतने लोगों ने शराब छोड़ा लेकिन ये नहीं बताते कि कितने लोगों ने शराब पी या अभी भी शराब के आदी हैं. निश्चित तौर पर महिला वर्ग के लिए शराबबंदी कानून किसी वरदान से कम नहीं है लेकिन बात जब चुनाव की आती है तो आज के समय में वोट के लिए नोट और शराब का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जाता है.

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बेशक इस बात को कोई सामने से स्वीकार ना करे लेकिन सच्चाई यही है कि वोट के बदले शराब की डिमांड ज्यादा ही रहती है. चुनाव के समय में आलम ये हो जाते हैं पुलिस के सामने दूसरे राज्यों से आनेवाली शराब को पकड़ने की एक बड़ी चुनौती खड़ी हो जाती है. कुल मिलाकर जहां शराबबंदी कानून से महिलाएं और सामाज का एक बड़ा धड़ा खुश है तो वहीं कुछ लोग नाराज भी हैं. यहां तक की पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने तो गुजरात मॉडल का हवाला देते हुए यहां तक कह डाला था बिहार में भी गुजरात की तरह परमिशन पर शराब मिलनी चाहिए.

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निश्चित तौर पर नीतीश कुमार जब अपनी 'समाधान यात्रा' के दौरान आधी आबादी यानि महिलाओं से संवाद करेंगे तो उन्हें शराबबंदी कानून लागू करने के लिए 'समाधान' और समर्थन मिलेगा. यानि कि आधी आबादी की ताकत नीतीश कुमार का साथ देने की बात कहेगी और शराबबंदी कानून का समर्थन करेगी. 

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शराब से हुई मौतों का 'समाधान' क्या?

एक तरफ शराबबंदी कानून के लिए आधी आबादी का समर्थन नीतीश कुमार को मिलेगा लेकिन दूसरी तरफ वही आधी आबादी सीएम नीतीश से उन सवालों का भी जवाब लेना चाहेगी कि शराबबंदी कानून पूरी तरह से धरातल पर लागू ना होने के कारण कुछ के कोई विधवा हो गई, किसी का बेटा मर गय़ा, कोई अनाथ हो गया और इसके लिए आधी आबादी ही सीएम नीतीश की घेराबंदी करती नजर आ सकती है.

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कहीं ना कहीं ये बात सच है कि सारण शराब कांड जैसे मामलों के लिए सिर्फ आम आदमी जिम्मेदार नहीं रहता. शराबबंदी वाले राज्य में शराब पहुंच कैसी रही है? अगर शराबबंदी को पूरी तरह से धरातल पर लागू नहीं किया जा सकता तो कानून को लाया ही क्यों गया? लोगों की मौतों का जिम्मेदार कौन है? कैसे एक साथ 100 से ज्यादा लोगों को शराब परोस दी जाती है और प्रशासन को भनक तक नहीं लगती? ये सवाल उन्हीं आधी आबादी के होंगे जिनमें से कुछ ने अपना बेटा, अपना पति, अपना भाई, अपना भतीजा, अपना पोता खोया होगा.

स्वास्थ्य व्यवस्था का 'समाधान' क्या ?

हर किसी को देश में अच्छी स्वास्थ्य सेवा सरकार से पाने का अधिकार है लेकिन बिहार की स्वास्थ्य सेवाएं कितनी अच्छी है ये जग जाहिर है. ऐसा नहीं कहा जा सकता कि बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं का आभाव है या फिर लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिलती लेकिन अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं अभी भी आम आदमी की पहुंच से कोसों दूर हैं.

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बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने 'मिशन 60' के तहत राज्य के सभी सदर अस्पतालों के हालात सुधारने की कवायद शुरू की है लेकिन आज भी आपको बिहार के सदर अस्पतालों में मरीजों को जमीन पर लिटाकर, ठेले पर लिटाकर इलाज करने की तस्वीरें मिल जाएंगी. वहीं, शव के लिए एंबुलेंस ना मिल पाना और इलाज के अभाव में रोगियों की मौत हो जाने की खबरें तो आए दिन सुर्खियों में रहती हैं. ऐसे में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़े चीजों की सीएम नीतीश को समीक्षा करनी होगी.

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रोजगार का कैसे करेंगे 'समाधान'

'समाधान यात्रा' पर निकले नीतीश कुमार को बेरोजगार युवाओं के तीखे सवालों का सामना करना पड़ सकता है. बिहार के लगभग सभी विभागों में वैकेंसियां हैं लेकिन युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है. बीपीएससी, बीएसएससी अभ्यर्थी आये दिन धरना प्रदर्शन करते रहते हैं. जिला मुख्यालयों से लेकर राजधानी पटना तक रोजगार के मुद्दे पर युवा प्रदर्शन करते रहते हैं और उन्हें रोजगार के बदले पुलिस की लाठियां खानी पड़ती है. ऐसे में नीतीश कुमार को युवाओं के रोजगार से संबंधित सवालों का उत्तर निकालना पड़ेगा और उनके रोजगार से जुड़े मुद्दे का समाधान ढूंढना ही पड़ेगा नहीं तो निश्चित तौर पर युवा वर्ग रोजगार के मुद्दे पर सीएम नीतीश के खिलाफ खड़ा रहेगा.

आज के समय में बिहार के युवाओं के सामने एक सबसे बड़ा मुद्दा जो है वो ये कि उन्हें रोजगार कब मिलेगा? ऐसी कौन सी सुबह आएगी जब सरकार उनकी सुनेगी और उन्हें नियुक्ति पत्र देगी? हर दिन अभ्यर्थी इसी सोच के सोच के साथ धरना प्रदर्शन के लिए निकलते हैं कि सरकार शाम तक उनकी समस्या का समाधान कर देगी लेकिन शाम होते-होते उनकी उम्मीदें भी मर जाती हैं और फिर अगले सुबह एक उम्मीद के साथ उठते हैं कि सरकार सुनेगी. ऐसे में रोजगार के मुद्दे पर नीतीश कुमार को युवाओं की समस्या का समाधान करना पड़ेगा. अगर युवाओं को रोजगार देनें में नीतीश कुमार विफल रहते हैं तो 'समाधान यात्रा' का फल उन्हें शायद उतना ना मिल पाये जिसकी उन्होंने कल्पना की हो.

विपक्ष के हमलों का 'समाधान'

बिहार में जब से  महागठबंधन की सरकार बनी है तभी से ही विपक्ष यानि बीजेपी को युवाओं की ज्यादा ही याद आई है. महागठबंधन सरकार और सीएम नीतीश कुमार पर बीजेपी लगातार हमलावर हो रही है. युवाओं के रोजगार का मुद्दा हो या फिर शराब से हुई मौतों का, बीजेपी लपकने में देर नहीं लगाती. कभी युवाओं को रोजगार ना मिलने की स्थिति में सदन की कार्यवाही को बाधित करने का एलान करती है तो कभी जहरीली शराब पीकर मरनेवालों के लिए मुआवजे की मांग करती है.

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कुल मिलाकर जहां विपक्ष यानि बीजेपी ने युवाओं के मुद्दों को आगे रखा है वहीं महागठबंधन सरकार और सीएम नीतीश इस मुद्दे पर खुद को बैकफुट पर खड़ा पाती है. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के नेताओं द्वारा भी उन-उन जगहों पर यात्रा की जा रही है जहां से सीएम नीतीश कुमार की 'समाधान यात्रा' गुजरेगी. यानि कि एक तरफ सीएम नीतीश कुमार अपने सरकार की उपलब्धियों को गिनाएंगे तो वहीं ठीक उनके बाद उसी क्षेत्र की जनता के बीच बीजेपी सरकार की खामियों का प्रचार करेगी. ऐसे में बीजेपी के हमलों का 'समाधान' निकालने के बारे में सीएम नीतीश को सोचना होगा.

प्रशांत किशोर का 'समाधान'

इस समय सीएम नीतीश कुमार के फिलहाल के राजनीतिक दुश्मनों में से एक चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर यानि पीके भी बिहार में जन-सम्पर्क लगातार बढ़ा रहे हैं. पीके 'जन सुराज यात्रा' के तहत बिहार में पिछले कई महीनों से पसीना बहा रहे हैं और कहीं ना कहीं सीएम नीतीश कुमार और महागठबंधन सरकार के खिलाफ माहौल बना रहे हैं. पीके लगातार नीतीश कुमार और लालू यादव पर अपनी सभाओं में हमला बोल रहे हैं. पीके युवाओं के मुद्दे, किसानों के मुद्दे, राज्य में आपराधिक मामलों में बढ़ोत्तरी के मुद्दे समेत तमाम मुद्दों को लेकर सीएम नीतीश कुमार पर हमला बोल रहे हैं. ऐसे में 'समाधान यात्रा' के दौरान सीएम नीतीश कुमार को पीके की 'जन सुराज यात्रा' का भी 'समाधान' निकालना होगा.

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कुल मिलाकर अगर सीएम नीतीश कुमार इन सारी समस्याओं का समाधान अपनी 'समाधान यात्रा' के दौरान निकाल लेते हैं तो निश्चित तौर पर वो एक प्रभावी नेता बनकर उभरेंगे और दिल्ली की लड़ाई में मजबूती के साथ शामिल हो सकेंगे. क्योंकि विपक्षी दलों को एकजुट करने का प्रयास एनसीपी चीफ शरद पवार, प्रशांत किशोर, ममता बनर्जी समेत कई नेता पहले भी कर चुके हैं लेकिन उन्हें कोई खास कामयाबी नहीं मिल सकी है. ऐसे में अगर सीएम नीतीश कुमार अपने राज्य यानि बिहार की समस्याओं का समाधान करने में सफल रहते हैं तो निश्चित तौर पर उन्हें दिल्ली के सियासी गलियाओं का एक बड़ा खिलाड़ी माना जाएगा और लोकसभा चुनाव के साथ-साथ विधानसभा चुनाव में भी उनकी धाक रहेगी.

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कहीं ना कहीं ये बात सही है कि अगर महागठबंधन सरकार को सत्ता में वापस लाना है तो इसके लिए सीएम नीतीश कुमार की आम लोगों के बीच जाकर की गई मेहनत ही काफी कुछ तय करेगी क्योंकि अब ना तो नीतीश कुमार बीजेपी के पास जाएंगे और ना ही बीजेपी उन्हें अपने साथ लेगी. बहरहाल, अब ये आनेवाला समय ही बताएगा कि 'समाधान यात्रा' से सीएम नीतीश कुमार क्या निकालकर लाते हैं और वह उनके राजनीतिक भविष्य के लिए कितना लाभदायक साबित होता है.

HIGHLIGHTS

  • समाधान यात्रा पर निकले हैं सीएम नीतीश कुमार
  • नीतीश कुमार के सामने हैं कई चुनौतियां
  • शराबकांड, युवाओं को रोजगार की बड़ी चुनौतियां
  • बीजेपी और प्रशांत किशोर से निबटने की चुनौतियां

Source : Shailendra Kumar Shukla

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