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News State Explainer: कानूनन बहुत पहले हो जानी थी आनंद मोहन की रिहाई

आनंद मोहन की रिहाई के पीछे नीतीश सरकार पर तमाम आरोप लग रहे हैं. खासकर नीतीश सरकार पर अपराध और अपराधी को बढ़ावा देने का आरोप लग रहा है और आनंद मोहन का साथ देने का भी आरोप लग रहा है.

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Shailendra Shukla
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आनंद मोहन( Photo Credit : फाइल फोटो)

बिहार के बाहुबली नेता व पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई का आदेश बिहार सरकार द्वारा पारित किए जाने के बाद तमाम तरह के आरोप सूबे की नीतीश सरकार पर लग रहे हैं. लेकिन आनंद मोहन की रिहाई करके कोई बड़ा काम सरकार द्वारा नहीं किया गया है. आनंद मोहन समेत 27 कैदियों की रिहाई का आदेश नीतीश सरकार द्वारा दिया गया है. अब आनंद मोहन की रिहाई के पीछे नीतीश सरकार पर तमाम आरोप लग रहे हैं. खासकर नीतीश सरकार पर अपराध और अपराधी को बढ़ावा देने का आरोप लग रहा है और आनंद मोहन का साथ देने का भी आरोप लग रहा है. ऐसे में हम आपको बताते हैं कि बतौर कैदी आनंद मोहन के क्या अधिकार थे? और राज्य सरकार के पास आनंद मोहन जैसे कैदियों को रिहा करने के कौन-कौन से विशेष अधिकार हैं.

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कैदी के पास अधिकार

किसी भी ऐसे कैदी जो उम्रकैद की सजा काट रहा हो और 14 वर्ष की सजा काट चुका हो उसे पूरी तरह से उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय में अपनी अपील जमानत याचिका दाखिल करने का पूरा अधिकार है. ऐसे कैदियों की जमानत याचिका पर कोर्ट गौर करता है और खासकर उसकी जेल में बिताई गई अवधि, उसके जेल में बरते जा रहे आचरण की रिपोर्ट मंगवाकर और प्रशासन व सरकार से कैदी की रिपोर्ट मंगवाकर और मुख्य रूप से जेल में कैदी द्वारा बिताए गए समय को देखते हुए जमानत दे सकता है. वहीं, कैदी खुद राज्य सरकार के समक्ष अपना पत्र भेजकर अपनी रिहाई की मांग कर सकता है. राज्य सरकार के पास इस बात का पूरा अधिकार रहता है कि वह 14 साल से अधिक की सजा काट चुके कैदी की रिहाई कर सके.

ये भी पढ़ें-आनंद मोहन: जेलर से पहले 'स्पेशल कैदी' करेगा रिहा, जानिए-क्या होती हैं रिहाई की शर्तें!

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राज्य सरकार के पास अधिकार

दरअसल, राज्य सरकार के पास इस बात का पूरा अधिकार रहता है कि वह 14 साल से ऊपर की सजा काट चुके कैदियों की फाइल को देखे और अगर जेल के अंदर उनका आचरण अच्छा है, या कैदी किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त है अथवा कैदी 60 वर्ष से अधिक की उम्र का है तो सरकार कैदी को रिहा करने का आदेश जारी कर सकती है. 

आनंद मोहन के मामले में क्या?

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आनंद मोहन के मामले में नीतीश सरकार के पास उन्हें इस समय नहीं बहुत पहले ही रिहा करने का अधिकार था. राज्य सरकार चाहती तो आज नहीं बहुत पहले ही आनंद मोहन की रिहाई हो गई होती. सिर्फ आनंद मोहन की ही नहीं बल्कि जिन अन्य 26 कैदियों की रिहाई का आदेश जारी किया गया है उन्हें भी उनके जेल में 14 साल से अधिक सजा काटने के बाद रिहा करने का अधिकार राज्य सरकार के पास था.

अब नीतीश सरकार की गलें की फांस सिर्फ कानून में संसोधन करना बना है. अब इसी पर राजनीति हो रही है. अगर कानूनी तौर पर बात करें तो आनंद मोहन समेत उन सभी 27 कैदियों को 14 साल की सजा पूरी हो जाने के बाद ही रिहा हो जाना चाहिए था. वैसे तो सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर रखा है कि उम्रकैद का मतलब आखिरी सांस तक कैदी को जेल में रहना पड़ेगा लेकिन कैदी के अच्छे आचरण को देखते हुए राज्य सरकार के पास इस बात  का पूरा अधिकार रहता है कि वह 14 साल की सजा पूरे कर चुके कैदियों का रिव्यू करे और उनकी शेष सजा माफ करते हुए उन्हें रिहा करने का आदेश जारी करे. ये सरकार के विवेकाधिकार पर होता है.

बिहार के बाहुबली नेताओं में शामिल पूर्व सांसद आनंद मोहन समेत 27 लोगों को जेल से रिहा करने का नीतीश सरकार ने आदेश जारी किया है. बता दें कि आनंद मोहन फिलहाल पैरोल पर हैं और उन्हें डीएम की हत्या करने के मामले में दोषी करार देते हुए निचली अदालत द्वारा फांसी की सजा सुनाई गई थी. बाद में आनंद मोहन की सजा उम्रकैद में बदल दी गई थी और अब उनकी रिहाई का आदेश जारी किया गया है. आनंद मोहन के अलावा 27 अन्य लोगों को भी रिहा करने का आदेश बिहार सरकार द्वारा जारी किया गया है.

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बता दें कि गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या के मामले में निचली अदालत से फांसी की सजा पाने व फांसी की सजा उम्रकैद में तब्दील होने के बाद भी पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई का रास्ता पहले ही साफ हो चुका है. फिलहाल आनंद मोहन सहरसा जेल में बंद हैं. अभी फरवरी माह में उन्हें अपनी बेटी की शादी में शामिल होने के लिए पैरोल मिला था.  बिहार सरकार ने कारा हस्तक 2012 के नियम 481(i)(क ) में संशोधन किया है, जिसके बाद आनंद मोहन को जेल से रिहाई होने का रास्ता साफ हो गया था और उनकी रिहाई का आदेश भी सरकार द्वारा जारी किया जा चुका है.

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डीएम जी. कृष्णैया हत्याकांड के बारे में

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5 दिसंबर 1994 को मुजफ्फरपुर में भीड़ ने गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या कर दी थी. डीएम की हत्या से एक दिन पहले यानि 4 दिसंबर 1994 को आनंद मोहन की पार्टी (बिहार पीपुल्स पार्टी) के नेता रहे छोटन शुक्ला की हत्या कर दी गई थी.

भारी संख्या में भीड़ प्रदर्शन कर रही थी और इसी दौरान मुजफ्फरपुर के रास्ते हाजीपुर में मीटिंग कर गोपालगंज जा रहे डीएम जी. कृष्णैया की भीड़ ने खबड़ा गांव के समीप हमला बोला दिया. इस हमले में डीएम को गोली मार दी गई थी. भीड़ का नेतृत्व आनंद मोहन कर रहे थे. मामले में आनंद मोहन को निचली अदालत द्वारा दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई गई थी. 

पटना हाईकोर्ट ने फांसी को उम्रकैद में बदला

निचली अदालत के आदेश के खिलाफ आनंद मोहन ने पटना हाईकोर्ट में अपील की. पटना हाईकोर्ट द्वारा 2008 में उनकी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया.

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मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में  पटना हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. हालांकि, डीएम कृष्णैया हत्याकांड में आनंद मोहन की सजा पूरी हो चुकी है लेकिन उन्हें अबतक जेल से रिहा नहीं किया गया है. अब आनंद मोहन की रिहाई का रास्ता साफ हो चुका है.

HIGHLIGHTS

  • आनंद मोहन की रिहाई पर सियासी संग्राम
  • नीतीश सरकार पर उठ रहे हैं सवाल
  • कानूनन बहुत पहले हो सकती थी आनंद मोहन की रिहाई

Source : News State Bihar Jharkhand

news state explainer Anand Mohan
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