बिहार की राजधानी पटना और दरभंगा में आज सुबह से ही नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी यानि एनआईए और एंटी टेररिस्ट स्क्वाड यानि कि एटीएस सुबह से ही छापेमारी कर रही है. इतना ही नहीं एजेंसियों के द्वारा एक शख्स को गिरफ्तार भी किया गया है. एजेंसियों के द्वारा ये छापेमारी पीएफआई से जुड़े मामले में की जा रही है. दरभंगा के एसएसपी अवकाश कुमार द्वारा जानकारी दी गई है कि एनआईए की टीम द्वारा बहेरा थाना के छोटकी बाजार से एक शख्स को गिरफअतार किया गया है. वहीं, पटना में यह छापेमारी फुलवारी शरीफ के इमारत सरिया के समीप बने एक मकान में कई गई है. वहीं, जिस शख्स को दरभंगा से गिरफ्तार किया गया है वह शख्स पटना में रहकर पढ़ाई करता है. हालांकि, अभी गिरफ्तार किए गए शख्स के बारे में ज्यादा जानकारी देने से पुलिस बच रही है.
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, गिरफ्तार किया गया शख्स आईएसआई के सम्पर्क में भी था. वह अरबी भाषा का एक्सपर्ट है. गिरफ्तार किया गया शख्स पटना के एक मदरसे में तालीम हासिल करता था. आपको बता दें कि पहले जब पीएफआई के खिलाफ एनआईए के द्वारा एक्शन लिया गया था तो अरबी भाषा में लिखी कई पुस्तकें भी बरामद की गई थी. आज एनआईए द्वारा एक दुकान में भी छापेमारी की गई जहां अरबी भाषा में लिखी किताबे बेची जाती थीं. वहीं, तमिलनाडु से भी एक शख्स को पीएफआई के सम्पर्क में होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. तमिलनाडु से जिस शख्स को गिरफ्तार किया गया है वह बिहार से उस समय भाग गया था जब एनआई ने पीएफआई के खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी. शख्स अपना नाम बदलकर एक फैक्ट्री में मजदूरी करने लगा था.
पीएफआई पर केंद्र ने लगाया है 5 साल का प्रतिबंध
बता दें कि पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों को गृह मंत्रालय ने पांच साल के लिए बैन कर दिया है. पीएफआई के अलावा 9 सहयोगी संगठनों पर भी कार्रवाई की गई है. पीएफआई 15 राज्यों में सक्रिय है. पीएफआई की अभी तक दिल्ली, आंध्रप्रदेश, असम, बिहार, केरल, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, हरियाणा, तमिलनाडु, तेलंगाना, मध्य प्रदेश में विभिन्न गतिविधियां चल रही थीं. आतंकी लिंक के पुख्ता सबूत होने की वजह से गृह मंत्रालय ने ये कार्रवाई की है. उसका कहना है कि पीएफआई और उससे संबंधित सभी संगठनों पर पांच साल के लिए तुरंत प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है.
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पीएफआई ने कैसे फैलाया देश में अपना जाल
भारत में आतंकी संगठनों का एक इतिहास रहा है. लेकिन पॉपुलर द पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया एक कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन के तौर पर उभरा जिसने देश के कानूनों के बीच से अपने लिए रास्ता बना लिया था. पीएफआई के सदस्य देश में लगातार हिंसा, अपराध और देश के खिलाफ कार्यवाहियों में लगे रहे. पीएफआई 9 दिसंबर,2006 को अपने वजूद में साम ने आया. और बाकि आतंकी संगठनों की तरह से इसने खुद से अपना मूल कॉडर तैयार नहीं किया बल्कि इसके बनने में दक्षिण भारत में पहले से ही काम कर रहे मुस्लिम कट्टरवादी संगठन शामिल हुए. नेशनल डेव्हलपमेंट फ्रंट जो केरल में मुस्लिम कट्टरपंथियों का एक प्रमुख संगठन था उसके साथ कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु में कार्यरत मनीता नीथि पासराय ने मिलकर पीएफआई को बनाया. इनमें से एनडीएफ 90 के शुरूआती दशक से ही हिंदू संगठनों को अपने निशाने पर लेने के लिये बना था तो कर्नाटक फोरम मुस्लिमों को जेहाद के लिए तैयार करने में लगा था. इस संगठन के सदस्यों को युद्ध के लिए तैयार किया जा रहा था. जिन्हें निहत्थे युद्ध करने के लिए मार्शल आर्ट और लाठी-डंडों से ट्रैड किया जा रहा था. इस संगठन का तीसरा घटक एमएनपी को बनाया था एम. गुलाम मोहम्मद ने और इसका उदेश्य था इस्लाम को लेकर किसी भी तरह के विरोध को खत्म करना.
मुखौटा संगठनों के जरिए लगातार जारी रखा काम
इसकी स्थापना के साथ ही इसके आकाओं ने इस बात का ख्याल रखा कि सिमी की तरह लगने वाले बैन से बचाना है तो कोई मुखौटा तैयार करना होगा. हालांकि संगठन का साफ तौर पर उदेश्य था कि वो इस देश में शरिया लागू करे और गैर मुस्लिमों को अपने अधीन लाएं लेकिन सरकार की आंखों में धूल झोंकने के लिए उसने सामाजिक आर्थिक और समानता के मुद्दों को अपने संविधान में शामिल किया. मुसलमानों के साथ दलितों को जोड़ने और पिछड़ों के लिए भी काम करने का उद्देश्य शामिल किया. हालांकि एजेंडा साफ एनडीएफ की तर्ज पर मार्शल आर्ट से प्रशिक्षित कट्टरवादी युवाओं को मिलाकर दुश्मन को निबटाने के लिए एक्शन स्क्वायड बनना था. और इसके लिए प्लॉन बनाया मुसलमानों की एक बड़ी आबादी को कट्टरपंथी बनाना.
शरिया निजाम लाने का था लक्ष्य
सिमी पर बैन लगने के बाद ही इसके वो सदस्य जो अपने आपको बचाने में कामयाब रहे उन्होंने इस संगठन को खड़ा करने में बड़ी भूमिका निबाही. केरल सरकार ने कई बार कोर्ट में कहा कि पीएफआई में सिमी के पूर्व सदस्य शामिल है. इसकी पुष्टि पीएफआई के आकाओं के नाम से ही हो जाती है. अब्दुल रहमान , ई अबुबकर, और पी कोया जैसै नेता पहले सिमी के सदस्य थे. पीएफआई ने पहले से ही सोच रखा था कि इस संगठन को पूरे देश में खड़ा करना है इसलिए सांगठनिक ढांचे को बेहतर तरीके से तैयार किया था. 13 सदस्यों की एक राष्ट्रीय कार्यकारी परिष्द तैयार की गई. और उसके नीचे नेशनल जनरल असेंबली में हर राज्य से प्रतिनिधित्व दिया गया. इसके अलावा इसके कई फ्रंटल ऑर्गनाईजेशन तैयार किये गये. संगठन का नेतृत्व प्रमुख तौर पर दक्षिण भारतीय नेताओं के हाथ में ही रखा गया. संगठन में आने वाले हर सदस्य को आंका जाता है और फिर जब ये यकीन हो जाता है कि ये जिहादी मानसिकता में शामिल हो चुका है तो उससे शपथ दिलाई जाती है. शपथ में मुख्यतया इस देश में शरिया निजाम स्थापित करने की बात होती है.
सांप्रदायिक दंगों की क्लिपिंग दिखाकर किया जाता था ब्रेनव़श
पीएफआई ने मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बनाने के लिए सिमी के तौर तरीकों का ही इस्तेमाल किया. यानि बाबरी मस्जिद, गुजरात और देश के अळग अलग हिस्सों में हुए सांप्रदायिक दंगों के एडिटिड वीडियो क्लिपिंग दिखा दिखा कर उनको ये यकीन दिलाया जाता था कि मुसलमानों पर जुल्म हो रहा है. इसके बाद इन लोगों में से भी अधिक रेडिक्लाईज्ड युवाओं को हिट स्क्वायड या या सर्विस टीम के लिए चुना जाता था. ईडी की पूछताछ में कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया के नेता ने खुलासा किया था कि पीएफआई एक गुप्त विंग भी चलाला है जिसका आरएसएस के चुनिंदा नेताओं को निशाने पर ऱख कर उसे अंजाम तक पहुंचाना है. अपने चयनित लोगों को और उम्दा ट्रैनिंग भी दी जाती थी और इनमें से कुछ नेताओं की सुरक्षा में रखा जाता था तो कुछ हिटमैन में शामिल कर लिया जाता था. इन लोगों को तलवारों चाकूओं और घरों में बने बमों से हमले करने का प्रशिक्षण दिलाने का प्रयास किया जाता था.
कई हत्याओं में आया पीएफआई काडर का नाम
इस तैयारी के बाद पीएफआई ने अपने काम यानि देश में हिंसा फैलाना शुरू कर दिया. देश में पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों पर 1400 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज किये जा चुके है. इनमें यूएपीए, एक्सप्लोसिव एक्ट, आर्म्स एक्ट और दूसरे मामले शामिल है. हिंसा में शामिल होने से पहले पीएफआई ने अपने कॉडर को सैन्य तर्ज पर अभ्यास शिविरों में प्रशिक्षण देने की व्यवस्था तैयार की है. गैर मुस्लिमों को इस्लाम का दुश्मन बता कर उनपर हिंसा करने के लिए तैयार किया . हिंदु संगठनों के नेताओं को मुख्य रूप से अपने निशाने पर पीएफआई ने शुरू से ही रखा. संगठन ने एक हिट दस्ते को इसी लिये बनाया कि वो हिंदु संगठनों के कार्यकर्ताओं और अब ब्लैशफेमी में शामिल लोगों की हत्या करे. संगठन ने बहुत सी घटनाओं को इसी तरह से अंजाम दिया ताकि लोग आतंक से भर उठे. इसके लिए आईएसआईएस से ये संगठन बहुत प्रभावित रहा. 26 जुलाई को कर्नाटक के बेल्लारी में भारतीय युवा मोर्चे के नेता प्रवीण नेट्टारू की हत्या को इसी तरह से अंजाम दिया गया. बेल्लारी में आरएसएस और बंजरग दल के कार्यकर्ताओं की एक लिस्ट तैयार की गयी थी जिनको एक मुस्लिम मजदूर की हत्या के बदले कत्ल किया जा सकता था. और प्रवीण की हत्या की वजह उसका हलाल मुद्दे पर टिप्पणी करना बना.
HIGHLIGHTS
- पटना और दरभंगा में एनआई-एटीएस कर रही छापेमारी
- पीएफआई से कनेक्शन के मामले में एक को किया गिरफ्तार
- दरभंगा से एजेंसियों ने एक शख्स को किया गिरफ्तार
- पीएफआई पर केंद्र ने लगा रखा है 5 साल का बैन
Source : News State Bihar Jharkhand