नोटबंदी के मुद्दे पर यूटर्न लेने के बाद लोकसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखकर एक बार फिर राज्य को विशेष दर्जा देने की अपनी पुरानी मांग दोहराई है।
नीतीश कुमार ने इससे पहले साल 2016 में नोटबंदी के फैसले का समर्थन किया था लेकिन बीते दिनों उन्होंने इस पर सवाल उठाते हुए कहा था कि नोटबंदी का लोगों को फायदा नहीं मिला।
नीतीश कुमार ने मोदी सरकार को लिखी चिट्ठी में कहा है कि ऐतिहासिक रूप से पक्षतापूर्ण नीतियों और अलग-अलग सामाजिक-आर्थिक कारणों के चलते बिहार का विकास बाधित रहा है।
साथ ही उन्होंने चिट्ठी में आरोप लगाया है कि वित्त आयोग और योजना आयोग के वित्तीय हस्तांतरण भी राज्यों के बीच संतुलन सुंतिलन सुनिश्चित करने में असफल रहे। इससे क्षेत्रीय असंतुलन बढ़ा है जिसका बिहार सबसे बड़ा भुक्तभोगी रहा है।
नीतीश ने आगे लिखा है कि बीते 12-13 सालों में राज्य सरकार ने पिछड़ेपन को दूर करने और राज्य को विकास, समृद्धि और समरसता के पथ पर ले जाने का काफी प्रयास किया है और इस दौरान प्रतिकूल और भेदभावपूर्ण पर परिस्थितियों के बाद भी राज्य ने दो अंकों के विकास दर का हासिल किया है।
बाढ़ को लेकर सीएम नीतीश कुमार ने अपनी चिट्ठी में लिखा है कि नेपाल और दूसरों राज्यों की नदियों से हर साल आनेवाली बाढ़ के कारण भौतिक और सामाजिक आधारभूत संरचना में हुए नुकसान की भरपाी के लिए बिहार को अतिरिक्त वित्तीय भार उठाना पड़ता है। यह ऐसे कारण हैं जो बिहार के नियंत्रण में नहीं है। इस वजह से बिहार को हर राज्य बाढ़ का दंश झेलना पड़ता है।
जनसंख्या को लेकर अपनी चिट्ठी में नीतीश कुमार ने कहा 14 वे वित्त आयोग द्वारा जनसंख्या को अधिक महत्व देते हुए 1971 की जनगणना को 17.5 प्रतिशत और 2011 की जनगणना को 10 प्रतिशत हिस्सा दिया गया। यह हमारा दृढ़ विचार है कि जनसांख्यिकीय बदलाव को समझने और नागरिकों की आवश्यकताओं के संख्यात्मक आकलन के लिए जनसंख्या के आंकड़ों को महत्व देना आवश्यक है।
सीएम कुमार ने चिट्ठी में बिहार के औद्योगिक तौर पर पिछड़ने को लेकर कहा है कि राज्य के बंटवारे के बाद प्रमुख उपलब्धता और लागत-लाभ का फायदा नहीं मिल सका। इस अवधि में जबकि दक्षिण और पश्चिम भारत के तटीय राज्यों में औद्योगिक विकास हुआ बिहार पिछड़ेपन का शिकार रहा।
उन्होंने चिट्ठी में आगे लिखा है यदि अन्तर क्षेत्रीय और अन्तर्राज्यीय विकास के स्तर में भिन्नता से संबंधित आंकड़ों की समीक्षा की जाए तो पाया जायेगा कि राज्य विकास के अलग-अलग मापदंडों जैसे प्रति व्यक्ति आय, शिक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा, सांस्थिक वित्त और मानव सूचकांक में राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे हैं।
सीएम कुमार ने चिट्ठी में लिखा इन्हीं आधारों पर हमने केंद्र सरकार से विशेष राज्य के दर्जे की मांग की है। बिहार को यदि विशेष राज्य का दर्जा मिलता है तो केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्यांश घटेगा जिससे राज्य को अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध होंगे। इससे बाहर के संसाधनों तक पहुंच बढ़ेगी, निजी निवेश को कर छूट और रियायतों के कारण प्रोत्साहन मिेलगा, रोजगार के अवसर पैदा होंगे और जीवन स्तर में सुधार होगा।
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उन्होंने अपनी चिट्ठी के अंतिम में लिखा है कि बिहार एक थलरूद्ध राज्य है और ऐसे थलरूद्ध और अत्यधिक पिछड़ा राज्य अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी विशेष और विभेदित व्यवहार के हकदार हैं।
गौरतलब है कि नीतीश कुमार अभी एनडीए का हिस्सा है और बीजेपी के साथ गठबंधन में वो बिहार में अपनी सरकार चला रहे हैं। इससे पहले एनडीएस में शामिल रही तेलुगु देश पार्टी आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने के कारण ही गठबंधन तोड़ लिया था।
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Source : News Nation Bureau