उपेंद्र कुशवाहा के जेडीयू से अलग होने की सबसे बड़ी वजह 'राजनीतिक उत्तराधिकारी' रही. उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू में अपने आप को एक उत्तराधिकारी के रूप में देखने लगे थे, लेकिन नीतीश की पंसद तो कोई और ही था. नीतीश की ये पंसद कुशवाहा को स्वीकार नहीं थी. इसलिए उन्होंने अपनी सियासी राह को बदलने का फैसला किया. कुशवाहा का नीतीश से ये तीसरा ब्रेकअप है. जेडीयू में कई मौकों पर ऐसा देखने को मिला कि जब भी कोई नेता नंबर-2 की जगह लेने की कोशिश करने लगता है तो उसका पार्टी से साथ ही छुट जाता है, या यूं कहे कि जब भी कोई नेता अपने आप को उत्तराधिकारी समझने लगता है तो उसे नीतीश के कूचे से बाहर ही होना पड़ता है.
ऐसा सिर्फ जेडीयू में ही नहीं, देश के और भी कई क्षेत्रीय राजनीति कर रहे दलों में देखने को मिला है. ये देखने को मिला कि क्षेत्रीय पार्टियों में कोई नंबर-2 नहीं होता, होता है तो बस एक ही सर्वमान्य नेता, जिसके इर्द-गिर्द ही पार्टी के सभी फैसलें घूमते हैं. आसान शब्दों में यह कहा जा सकता है कि नेता जी जैसा चाहते हैं वैसा ही होता है. उनका हुकुम ही फाइनल डिसीजन होता है. क्षेत्रीय पार्टी के नेताओं को इस बात का डर रहता है कि अगर कोई नबंर-2 की जगह पर आएगा तो फ्यूचर में पॉलिटिकल करियर के लिए खतरा हो सकता है. अगर कोई नबंर-2 की जगह ले पाया है तो वो है परिवारवाद. हर कोई अपने परिवार के लोगों को ही आगे बढ़ाना चाहते हैं.
नीतीश कुमार ने जॉर्ज फर्नांडिस का साथ छोड़ा
समाजवादी सोच रखने वाले जॉर्ज फर्नांडिस भी एक समय में नीतीश कुमार के साथ थे. नीतीश कुमार ने उन्हें 2003 में जेडीयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था. नीतीश कुमार ने जॉर्ज को राज्यसभा भी भेजा था. दोनों लंबे ससय तक एक दूसरे के साथ रहे. दोनों ने साथ मिलकर ही समता पार्टी और जेडीयू का गठन किया था. जॉर्ज के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के बावजूद भी पार्टी में नीतीश की ही मर्जी चलती थी. एक बार विवाद तो तब देखने को मिला था जब वो अपने एक करीबी नेता को राज्यसभा का टिकट भी नहीं दे पाए थे. 2007 में नीतीश ने शरद यादव को जेडीयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया. जॉर्ज फर्नांडिस ने अपनी सेहत की वजह से सार्वजनिक जीवन से किनारा कर लिया.
शरद यादव भी हुए थे साइडलाइन
शरद यादव लंबे समय तक नीतीश कुमार के साथ रहे और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे. 10 साल से ज्यादा के इस साथ में दोनों नेताओं की बहुत जमी. शरद यादव को नीतीश का उत्तराधिकारी कहा जाने लगा था, लेकिन 2017 में नीतीश ने महागठबधंन का साथ छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया था, जो शरद यादव को नागवार गुजरा और दोनों नेताओं में दूरियां बढ़ने लगी. नीतीश कुमार खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए और शरद यादव साइडलाइन हो गए. जिसके बाद उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई.
प्रशांत किशोर की भी रवानगी
साल 2018 में प्रशांत किशोर जेडीयू से जुड़े. बड़े चुनावी रणनीतिकार माने जाते थे, इसलिए नीतीश ने इन्हें कोई छोटी पोस्ट नहीं दी, सीधा ही पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया. शरद यादव के जाने के बाद अब प्रशांत किशोर को पार्टी में नबंर-2 समझा जा रहा था. सब अच्छा जा रहा था, लेकिन प्रशांत किशोर ने अचानक नीतीश पर ही निशाने साधने शुरू कर दिए. दो साल भी पूरे नहीं हुए कि प्रशांत किशोर की भी पार्टी से रवानगी हो गई. अब आए दिन प्रशांत किशोर सीएम नीतीश कुमार पर हमलावर होते रहते हैं.
आरसीपी सिंह के बोल से नीतीश के दांत खट्टे
जेडीयू में एक वक्त ऐसा भी था जब आरसीपी सिंह एक मजबूत स्थिती में थे. पार्टी में नीतीश के बाद अगर कोई डिसीजन मेकर था तो वो आरसीपी ही थे. नीतीश ने पार्टी की कमान भी आरसीपी के हाथ दी और उन्हें 2020 में राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया. एक समय आया कि जब बीजेपी के लिए आरसीपी सिंह के मीठे-मीठे बोल नीतीश कुमार के दांतों को खट्टा कर गए और नीतीश ने उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा. इससे पहले 2010 और 2016 में नीतीश ने उन्हें राज्यसभा भेजा था. दोनों नेताओं ने दूरियां बढ़ने लगी और आरसीपी सिंह भी पार्टी से बाहर हो गए.
उपेंद्र कुशवाहा को किया किनारा
उपेंद्र कुशवाहा भी नीतीश की सियासी नाव में कई बार सवार हुए. इस यात्रा में तीन बार उन्होंने किनारा किया तो बार अपने नए जहाज पर भी सवार हुए. पहली बार 2009 में, फिर दूसरी बार 2013 में अब तीसरी बार नीतीश और उपेंद्र कुशवाहा अलग हुए हैं. नीतीश कुमार ने उपेंद्र को विधानसभा में विपक्ष का नेता और सांसद भी बनाया. सियासी यात्रा के दौरान उन्हें अब कैप्टन बनना था, लेकिन पार्टी ने उन्हें भी किनारा कर दिया.
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HIGHLIGHTS
- नीतीश कुमार ने जॉर्ज फर्नांडिस का साथ छोड़ा
- शरद यादव भी हुए थे साइडलाइन
- प्रशांत किशोर की भी रवानगी
- आरसीपी सिंह के बोल से नीतीश के दांत खट्टे
- उपेंद्र कुशवाहा को किया किनारा
Source : News State Bihar Jharkhand