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टोर्च की रोशनी में यहां मरीजों का होता है इलाज, स्वास्थ्य कर्मी भी अंधरे में ड्यूटी करने को विवश

अस्पताल में टॉर्च की रोशनी पर ना केवल स्वास्थ्य कर्मी ड्यूटी करने को विवश हैं. बल्कि मरीजों का भी टोर्च की रोशनी पर इलाज चिकित्सक के द्वारा किया जाता है. हालांकि स्वास्थ्य विभाग की ओर से 220 केवी का जनरेटर भी उपलब्ध कराया गया है.

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Rashmi Rani
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अंधरे में ड्यूटी करते स्वास्थ्य कर्मी( Photo Credit : NewsState BiharJharkhand)

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बिहार में स्वास्थ व्यवस्था दुरुस्त करने की तो बात सरकार करती है. हाल ही में डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कहा था की बिहार के स्वास्थ व्यवस्था में कोई लापरवाही वो बरदास नहीं करेंगे पूरी तरीके से इसे दुरुस्त किया जाएगा लेकिन धरातल पर कुछ और ही तस्वीर नजर आती है. 14 करोड़ 32 लाख रुपये की लागत से अस्पताल तो बना दिया गया लेकिन हैरानी की बात है कि बिजली की सुविधा ही नहीं दी गई. टॉर्च की रोशनी में सारा काम यहां के डॉक्टर और मरीज दोनों ही करते हैं. 

अस्पताल में टॉर्च की रोशनी पर ना केवल स्वास्थ्य कर्मी ड्यूटी करने को विवश हैं. बल्कि मरीजों का भी टोर्च की रोशनी पर इलाज चिकित्सक के द्वारा किया जाता है. हालांकि स्वास्थ्य विभाग की ओर से 220 केवी का जनरेटर भी उपलब्ध कराया गया है मगर विभागीय उदासीनता की वजह से उसे चालू नहीं कराया जा सका है.

पूरा मामला, सुपौल जिले के त्रिवेणीगंज अनुमंडल मुख्यालय के अनुमंडलीय अस्पताल की है. त्रिवेणीगंज अनुमंडलीय अस्पताल बनने में 14 करोड़ 32 लाख रूपये से नए भवन की सौगात सरकार से मिली है. लेकिन बिजली कटने के बाद बिजली का समुचित प्रबंध नहीं किया गया है. करीब एक माह पहले ही अनुमंडलीय अस्पताल को इस नए भवन में शिफ्ट तो कर दिया गया लेकिन बिजली कटने के बाद जेनरेटर के बिजली कनेक्शन की व्यवस्था नहीं की गई है. वहीं, बिजली कटने के बाद स्वास्थ्य कर्मी और चिकित्सक यहां मोबाइल के टॉर्च की रोशनी में ऑपरेटर से लेकर डॉक्टर तक को काम करना पड़ता है.

डॉक्टर ने बताया करीब 8 से 10 रोज पहले अनुमंडल अस्पताल में जनरेटर आया था. मगर अस्पताल में जनरेटर से लाइट की व्यवस्था नहीं की गई है. इस कारण हम लोगों को अंधेरे में या मोबाइल की रोशनी में इलाज करना पड़ रहा है. हालांकि सिविल सर्जन डॉ मिहिर कुमार वर्मा ने जेनरेटर के कनेक्शन को लेकर जल्द सुदृढ़ करने का भरोसा दिया है. 

Source : News State Bihar Jharkhand

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