पटना हाईकोर्ट ने जातीय गणना पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है. चीफ जस्टिस की बेंच में आदेश दिया गया है कि तत्काल प्रभाव से रोकें. हाईकोर्ट ने डाटा सुरक्षित रखने का भी निर्देश दिया है. आपको बता दें कि बीते दिन सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने फैसले को सुरक्षित रखा था. यह फैसला जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच में लिया गया. पटना हाईकोर्ट में मामले को लेकर 2 दिन सुनवाई हुई. जातीय गणना को लेकर हाईकोर्ट में दोनों पक्षों ने दलील दी थी. मामले में 3 जुलाई को अगली सुनवाई होगी. हालांकि, अभी तक जातीय जनगणना पर पटना हाईकोर्ट का अंतिम फैसला नहीं आया है लेकिन हाईकोर्ट द्वारा सूबे की नीतीश सरकार को आइना दिखाया गया है. याचिका संख्या CWJC No.5542 of 2023(6) dt.04-05-2023 पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश विनोद चंद्रन द्वारा सुनवाई के दौरान कई टिप्पणियां की गई.
पटना हाईकोर्ट की टिप्पणी
संघ की विधायी शक्तियों पर आक्रमण: पेज नंबर 30 के प्वाइंट नंबर 30 में हाइकोर्ट द्वारा स्पष्ट जातीय जनगणना पर तमाम तरह के सवाल खड़े किए गए. सुनवाई कर रहे जज ने कहा कि 'याचिकाकर्ता ने जातीय जनगणना के खिलाफ याचिका दाखिल की है. उन सवालों में डाटा इंटीग्रेटेड और सुरक्षा से भी जुड़े सवाल भी हैं. हमारी राय में राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का कोई अधिकार नहीं है. यह अब फैशन हो चुका है. ऐसा करके संघीय विधायी शक्तियों पर अतिक्रमण करने का काम किया जा रहा है.'
निजता के अधिकारों का हनन: अपने आदेश के पेज नंबर 31 पर प्वाइंट नंबर 30 के शेष भाग में हाईकोर्ट ने ये भी कथन किया है कि जातीय जनगणना को लेकर जब बिहार सरकार द्वारा नोटीफिकेशन जारी किया गया था तो उसमें इस बात का जिक्र किया गया है कि जातीय जनगणना से जो भी डाटा सामने आएगा उसे तमाम जनप्रतिनिधियों से खासकर रूलिंग पार्टी और अपोजिशन पार्टी के नेताओं से साझा की जाएगी, जो कि एक बड़ा मुद्दा है. ऐसे में एक बड़ा सवाल 'निजता के अधिकार का हनन' भी खड़ा हो रहा है. डाटा सार्वजनिक करने से लोगों की निजता का हनन होगा और ये सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी अवहेलना होगी.
बिहार सरकार तुरंत रोके जातीय जनगणना: आदेश के पेज नंबर 31 पर ही 31 नंबर प्वाइंट में बिहार सरकार को हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि वह तुरंत जातीय जनगणना को रोक दे साथ ही जो भी डाटा अभी तक सरकार द्वारा इकट्ठा किया गया है उसे सुरक्षित रखे और वह लीक ना होने पाए.
आदेश के पेज नंबर 29-30 पर प्वाइंट नंबर 29 में ये बात हाईकोर्ट द्वारा बिहार सरकार द्वारा दिए गए तथ्यों के आधार पर ही कहा है कि सरकार का कहना है कि 80 फीसदी जातीय जनगणना का काम पूरा हो चुका है. शेष 20 फीसदी काम 15 मई 2023 तक पूरा हो जाएगा. साथ ही हाईकोर्ट द्वारा ये भी कहा गया है कि कोई विशेष कारण सरकार द्वारा बिहार में जातीय जनगणना कराने के लिए नोटीफिकेशन में नहीं बताया गया है.
जातीय जनगणना में कितना खर्च: बिहार में हो रही जातीय जनगणना का पूरा खर्च खुद बिहार सरकार उठा रही है. जातीय जनगणना में लगभग 500 करोड़ रुपए का खर्च आएगा. ऐसे में अगर 80 फीसदी काम पूरा हो गया तो इसका मतलब ये हुआ कि मोटा-मोटा 400 करोड़ रुपया बिहार के सरकारी खजाने से खर्च हो चुका है. बिहार सरकार द्वारा जातीय जनगणना के लिए अपने आकस्मिक कोष से ये राशि खर्च की गई है और सर्वे के लिए सामान्य प्रशासन डिपार्टमेंट को नोडल विभाग बनाया गया है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि जो अबतक 400 करोड़ रुपया खर्च हो चुका है उसकी भरपाई जनता की जेब से, राज्य के खजाने से क्यों की जा रही है और खासकर जब नोटीफिकेशन में भी राज्य सरकार द्वारा जातीय जनगणना कराने का मुख्य उद्देश्य नहीं सार्वजनिक किया गया है.
न्यूज स्टेट बिहार झारखंड के सवाल
-80 फीसदी जातीय जनगणना होने का खर्च किसकी जेब से होगा?
-क्या जनता के पैसों का नीतीश सरकार कर रही है दुरुपयोग?
-आखिर जातीय जनगणना की बिहार सरकार को क्यों पड़ी जरूरत?
HIGHLIGHTS
- 80 फीसदी पूरा हो चुका है जातीय जनगणना का काम
- पटना हाईकोर्ट ने जातीय जनगणना पर लगा दी है रोक
- बड़ा सवाल-400 करोड़ रुपए की बर्बादी का जिम्मेदार कौन?
Source : Shailendra Kumar Shukla
News State Explainer: जातीय जनगणना पर पटना HC की टिप्पणी, निजता के अधिकार का हनन, नीतीश सरकार के पास जनगणना का अधिकार नहीं!
पटना हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है, 'हमारी राय में राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का कोई अधिकार नहीं है. यह अब फैशन हो चुका है. ऐसा करके संघीय विधायी शक्तियों पर अतिक्रमण करने का काम किया जा रहा है.'
Follow Us
पटना हाईकोर्ट ने जातीय गणना पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है. चीफ जस्टिस की बेंच में आदेश दिया गया है कि तत्काल प्रभाव से रोकें. हाईकोर्ट ने डाटा सुरक्षित रखने का भी निर्देश दिया है. आपको बता दें कि बीते दिन सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने फैसले को सुरक्षित रखा था. यह फैसला जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच में लिया गया. पटना हाईकोर्ट में मामले को लेकर 2 दिन सुनवाई हुई. जातीय गणना को लेकर हाईकोर्ट में दोनों पक्षों ने दलील दी थी. मामले में 3 जुलाई को अगली सुनवाई होगी. हालांकि, अभी तक जातीय जनगणना पर पटना हाईकोर्ट का अंतिम फैसला नहीं आया है लेकिन हाईकोर्ट द्वारा सूबे की नीतीश सरकार को आइना दिखाया गया है. याचिका संख्या CWJC No.5542 of 2023(6) dt.04-05-2023 पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश विनोद चंद्रन द्वारा सुनवाई के दौरान कई टिप्पणियां की गई.
ये भी पढ़ें-जातीय गणना HC में हुआ 'धराशाई': तेजस्वी बोले-सरकार 'जातीय सर्वे' कराने के लिए प्रतिबद्ध, BJP पर भी बोला हमला
पटना हाईकोर्ट की टिप्पणी
संघ की विधायी शक्तियों पर आक्रमण: पेज नंबर 30 के प्वाइंट नंबर 30 में हाइकोर्ट द्वारा स्पष्ट जातीय जनगणना पर तमाम तरह के सवाल खड़े किए गए. सुनवाई कर रहे जज ने कहा कि 'याचिकाकर्ता ने जातीय जनगणना के खिलाफ याचिका दाखिल की है. उन सवालों में डाटा इंटीग्रेटेड और सुरक्षा से भी जुड़े सवाल भी हैं. हमारी राय में राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का कोई अधिकार नहीं है. यह अब फैशन हो चुका है. ऐसा करके संघीय विधायी शक्तियों पर अतिक्रमण करने का काम किया जा रहा है.'
निजता के अधिकारों का हनन: अपने आदेश के पेज नंबर 31 पर प्वाइंट नंबर 30 के शेष भाग में हाईकोर्ट ने ये भी कथन किया है कि जातीय जनगणना को लेकर जब बिहार सरकार द्वारा नोटीफिकेशन जारी किया गया था तो उसमें इस बात का जिक्र किया गया है कि जातीय जनगणना से जो भी डाटा सामने आएगा उसे तमाम जनप्रतिनिधियों से खासकर रूलिंग पार्टी और अपोजिशन पार्टी के नेताओं से साझा की जाएगी, जो कि एक बड़ा मुद्दा है. ऐसे में एक बड़ा सवाल 'निजता के अधिकार का हनन' भी खड़ा हो रहा है. डाटा सार्वजनिक करने से लोगों की निजता का हनन होगा और ये सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी अवहेलना होगी.
बिहार सरकार तुरंत रोके जातीय जनगणना: आदेश के पेज नंबर 31 पर ही 31 नंबर प्वाइंट में बिहार सरकार को हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि वह तुरंत जातीय जनगणना को रोक दे साथ ही जो भी डाटा अभी तक सरकार द्वारा इकट्ठा किया गया है उसे सुरक्षित रखे और वह लीक ना होने पाए.
आदेश के पेज नंबर 29-30 पर प्वाइंट नंबर 29 में ये बात हाईकोर्ट द्वारा बिहार सरकार द्वारा दिए गए तथ्यों के आधार पर ही कहा है कि सरकार का कहना है कि 80 फीसदी जातीय जनगणना का काम पूरा हो चुका है. शेष 20 फीसदी काम 15 मई 2023 तक पूरा हो जाएगा. साथ ही हाईकोर्ट द्वारा ये भी कहा गया है कि कोई विशेष कारण सरकार द्वारा बिहार में जातीय जनगणना कराने के लिए नोटीफिकेशन में नहीं बताया गया है.
जातीय जनगणना में कितना खर्च: बिहार में हो रही जातीय जनगणना का पूरा खर्च खुद बिहार सरकार उठा रही है. जातीय जनगणना में लगभग 500 करोड़ रुपए का खर्च आएगा. ऐसे में अगर 80 फीसदी काम पूरा हो गया तो इसका मतलब ये हुआ कि मोटा-मोटा 400 करोड़ रुपया बिहार के सरकारी खजाने से खर्च हो चुका है. बिहार सरकार द्वारा जातीय जनगणना के लिए अपने आकस्मिक कोष से ये राशि खर्च की गई है और सर्वे के लिए सामान्य प्रशासन डिपार्टमेंट को नोडल विभाग बनाया गया है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि जो अबतक 400 करोड़ रुपया खर्च हो चुका है उसकी भरपाई जनता की जेब से, राज्य के खजाने से क्यों की जा रही है और खासकर जब नोटीफिकेशन में भी राज्य सरकार द्वारा जातीय जनगणना कराने का मुख्य उद्देश्य नहीं सार्वजनिक किया गया है.
न्यूज स्टेट बिहार झारखंड के सवाल
-80 फीसदी जातीय जनगणना होने का खर्च किसकी जेब से होगा?
-क्या जनता के पैसों का नीतीश सरकार कर रही है दुरुपयोग?
-आखिर जातीय जनगणना की बिहार सरकार को क्यों पड़ी जरूरत?
HIGHLIGHTS
Source : Shailendra Kumar Shukla