बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई की चर्चा ना सिर्फ बिहार में बल्कि पूरे देश में हो रही है. फिलहाल आनंद मोहन बड़े बेटे चेतन आनंद की सगाई को लेकर 15 दिन के पेरोल पर बाहर आए हुए हैं. 25 अप्रैल को पटना में शाही अंदाज में बेटे की सगाई हुई. इस दौरान बिहार के सीएम नीतीश कुमार के साथ तमाम बड़े नेता सगाई में शामिल हुए. वहीं, राज्य सरकार की तरफ से इसको लेकर नोटिफिकेशन भी जारी किया है, जिसके बाद से सियासी हलचलें और भी तेज हो गई है. बीजेपी समेत कई पार्टी आनंद मोहन की रिहाई पर सवाल उठा रहे हैं. वहीं, बसपा नेता और यूपी की पूर्व सीएम मायावती ने भी इस रिहाई को गलत बता चुकी हैं.
श्री आनंद मोहन जी की रिहाई पर अब भाजपा खुलकर आई है। पहले तो यू पी की अपनी बी टीम से विरोध करवा रही थी।
बीजेपी को यह पता होना चाहिए कि श्री नीतीश कुमार जी के सुशासन में आम व्यक्ति और खास व्यक्ति में कोई अंतर नही किया जाता है। श्री आनंद मोहन जी ने पूरी सजा काट ली और जो छूट किसी… pic.twitter.com/t58DkvoK3r
— Rajiv Ranjan (Lalan) Singh (@LalanSingh_1) April 25, 2023
ललन सिंह ने ट्वीट कर बीजेपी पर साधा निशाना
इस बीच जदयू ने बीजेपी पर हमला बोला और मायावती को भी बीजेपी की बी टीम तक बता दिया. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया कि श्री आनंद मोहन जी की रिहाई पर अब भाजपा खुलकर आई है। पहले तो यू पी की अपनी बी टीम से विरोध करवा रही थी.
बीजेपी को यह पता होना चाहिए कि श्री नीतीश कुमार जी के सुशासन में आम व्यक्ति और खास व्यक्ति में कोई अंतर नही किया जाता है। श्री आनंद मोहन जी ने पूरी सजा काट ली और जो छूट किसी भी सजायाफ्ता को मिलती है वह छूट उन्हें नहीं मिल पा रही थी क्योंकि खास लोगो के लिए नियम में प्रावधान किया हुआ था। श्री नीतीश कुमार जी ने आम और खास के अंतर को समाप्त किया और एकरूपता लाई तब उनकी रिहाई का रास्ता प्रशस्त हुआ। अब भाजपाइयों के पेट में न जाने दर्द क्यों होने लगा है. भाजपा का सिद्धांत ही है विरोधियों पर पालतू तोतों को लगाना, अपनों को बचाना और विरोधियों को फंसाना... वहीं श्री नीतीश कुमार जी के सुशासन में न तो किसी को फंसाया जाता है न ही किसी को बचाया जाता है.
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आनंद मोहन पर क्या है आरोप
90 के दशक में आनंद मोहन राजनीति का बड़ा चेहरा बनकर उभर रहे थे. उस समय बिहार के सीएम लालू यादव थे. 1993 में सवर्णों के हक के लिए आनंद मोहन ने बिहार पीपल्स पार्टी बनाई. उस समय लालू और आनंद मोहन को राजनीति विरोधी माना जा रहा था. इस बीच बिहार पीपल्स पार्टी के नेता छोटन शुक्ला की 1994 में पुलिस के द्वारा मार गिराया गया. छोटन शुक्ला और आनंद मोहन करीबी माने जाते थे. छोटन शुक्ला की हत्या के बाद हजारों की भीड़ में शवयात्रा निकाली गई थी, जिसकी अगुआई आनंद मोहन कर रहे थे.
फांसी से उम्रकैद में तब्दील हुई सजा
उस समय गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैय्या थे. शवयात्रा में भीड़ उग्र हो गया और डीएम की गोली मार कर हत्या कर दी गई. भीड़ को उकसाने का आरोप आनंद मोहन पर लगा और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई. साल 2008 में उनकी फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दी गई. 2012 में आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट से सजा कम करने की अपील की थई लेकिन उसे खारिज कर दिया गया था.
HIGHLIGHTS
- आनंद मोहन की रिहाई पर सियासत तेज
- जदयू ने बीजेपी को दिया जवाब
- आनंद मोहन पर क्या है आरोप
Source : News State Bihar Jharkhand