बिहार में इनदिनों ठाकुर बनाम ब्राह्मण के नाम पर खूब सियासत हो रही है. RJD सांसद मनोज झा ने राज्यसभा में कविता क्या सुनाई. उस कविता में इस्तेमाल हुए ठाकुर शब्द पर बवाल खड़ा हो गया. बवाल भी ऐसा कि RJD के ही विधायक चेतन आनंद ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया. हालांकि RJD सुप्रीमो लालू यादव से लेकर कई नेताओं ने ये साफ कर दिया है कि चेतन आनंद के बयानों से RJD वास्ता नहीं रखती और पार्टी मनोज झा के समर्थन में है. बीजेपी इस ठाकुर बनाम ब्राहम्ण के मुद्दे को ठंडे बस्ते में जाने नहीं देना चाहती. बीजेपी का दावा है कि RJD बिहार में एक बार फिर से जातीय हिंसा की राजनीति शुरू करवाना चाहती है. बीजेपी ये भी दावा कर रही है कि वो जाति को जोड़ने की राजनीति कर रही है.
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ठाकुर बनाम ब्राह्मण
यहां सवाल उठता है कि क्या वाकई बिहार में पार्टियां चुनाव से पहले जातीय समीकरण के जोड़-तोड़ से खुद को अलग कर पाएगी. सवाल ये भी कि अचानक बिहार में अगड़ी जातियों पर सियासत कैसे शुरू हो गई और क्यों कोई भी दल सवर्णों के खिलाफ कुछ भी बोलने का रिस्क नहीं ले रहा. बारी-बारी से सवालों का जवाब देते हैं. पहला जवाब है, नहीं. बिहार में RJD हो , JDU हो, बीजेपी या कोई और पार्टी. बिना जातीय समीकरण के चुनावी समर में उतरने का सोच भी नहीं सकती. वहीं बात करें अगड़ी जातियों पर सियासत की तो बिहार की राजनीति जातियों के इर्द-गिर्द घूमती आई है.
जानिए बिहार में जातीय समीकरण
आजादी के बाद से बिहार की सियासत में अगड़ी जातियों का बोलबाला था, लेकिन 90 के दशक में मंडल-कमंडल की राजनीति ने बिहार की सियासत का नक्शा बदल दिया. ख़ास तौर पर बीते कुछ दशकों में पिछड़ा वर्ग का प्रभुत्व काफी बढ़ा. लालू यादव, राबड़ी देवी, नीतीश कुमार का सत्ता में आना इसी का उदाहरण है, लेकिन प्रदेश की सियासत ने नया मोड़ लिया 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही प्रदेश में अगड़ी जातियों की पूछ दोबारा बढ़ी. बता दें कि बिहार में अगड़ी जातियों की आबादी 15-20 प्रतिशत के बीच है. एक वक़्त था जब ये आबादी कांग्रेस का वोट बैंक हुआ करती थीं. बाद में अगड़ी जातीयों ने बीजेपी की ओर रुख किया.
चेतन आनंद का मनोज झा के खिलाफ मोर्चा
नीतीश कुमार के बीजेपी के साथ गठबंधन में होने से इनका समर्थन JDU को भी मिला, लेकिन 2020 के चुनाव में सवर्ण जातियों ने बीजेपी को तो वोट किया, लेकिन JDU को नहीं. लिहाजा JDU को पहली बार चुनाव में बीजेपी से कम सीट मिलीं. JDU की हालत देख RJD को भी समझ आ गया कि अब चुनाव MY समीकरण के भरोसे नहीं जीती जा सकती. मनोज झा और चेतन आनंद के विवाद में RJD का रुख ये साफ करता है कि पार्टी सवर्ण नेताओं के खिलाफ नहीं जाना चाहती, क्योंकि इससे उनका वोट बैंक प्रभावित हो सकता.
बिहार में राजनीति और जाति का चोली दामन का नाता
हालांकि RJD नेताओं का तो यही कहना है कि बिहार में जाति एक सत्य है, लेकिन RJD A टू Z की बात करती है. जाति की राजनीति के सवाल पर JDU भी सहयोगी RJD के सुर में सुर मिला रही है. JDU का कहना है कि बिहार समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने वाला स्टेट रहा है. हालांकि JDU का साफ स्टैंड है कि कोई भी ऐसी बात नहीं होनी चाहिए जिससे किसी की भावना को ठेस पहुंचे. अब राजनीतिक दल कुछ भी दावा करें. ये तो साफ है कि बिहार में राजनीति और जाति का चोली दामन का नाता रहा है. यही वजह है कि मनोज झा के बयान के बाद सभी दल अपने-अपने तरीके से इस मुद्दे को भुना रहे हैं. इन दलों को लग रहा है कि इसका राजनीतिक लाभ आगामी चुनाव में मिल सकता है. वर्ग विशेष के वोट की चाहत में एक बार फिर से बिहार में सियासत गर्म है, लेकिन देखना ये होगा कि इस जद्दोजहद का फायदा चुनाव में किसको मिलता है.
HIGHLIGHTS
- बिहार में ठाकुर बनाम ब्राह्मण
- चेतन आनंद का मनोज झा के खिलाफ मोर्चा
- जानिए बिहार में जातीय समीकरण
Source : News State Bihar Jharkhand