JDU पार्टी में अगर दरार आई तो उसकी वजह दो लोगों को माना जाता है, जो कभी JDU पार्टी के सबसे शक्तिशाली नेता माने जाते थे. करोड़ों की संपत्ति को लेकर चर्चा में आए आरसीपी सिंह कभी नीतीश कुमार के बेहद करीबी थे, लेकिन शायद दोनों के बीच में कुर्सी आ गई. आज समय के साथ ही दोनों के बीच इतनी दूरियां आ गई है कि अगर एक जगह दोनों मिल भी जाए तो सीएम उन्हें नज़रअंदाज कर देते हैं. वहीं जेडीयू ने पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह की मुश्कलें बढ़ गई हैं. खुद नालंदा जिले के जेडीयू प्रखंड अध्यक्ष ने आरसीपी सिंह को शो कॉज नोटिस भेजकर उनपर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है. यह नीतीश कुमार की जीरो टॉलरेंस नीति है.
जब IPS रहते हुए सीएम नीतीश के आए थे करीब
1996 में जब नीतीश कुमार केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री थे तो उसी दौरान उनकी नजर आरसीपी सिंह पर पड़ी. इस दौरान उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी आरसीपी सिंह केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के निजी सचिव के तौर पर काम कर रहे थे. इसके बाद नीतीश कुमार जब रेल मंत्री बने तो उन्होंने आरसीपी सिंह को अपना विशेष सचिव बनाया. 2005 में जब बिहार विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने आरसीपी सिंह को दिल्ली से बिहार बुला लिया. 2005 से 2010 के बीच आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के प्रधान सचिव के तौर पर कार्यरत रहे.
राज्यसभा जाने के लिए रूठ कर बैठ गए थे आरसीपी सिंह
2010 में राज्यसभा का चुनाव होना था और तब RCP सिंह ने ये जिद पकड़ ली थी कि वो राज्यसभा जायेंगे, लेकिन सीएम नीतीश चाहते थे कि वो अभी प्रधान सचिव के तौर पर ही काम करें. फिर क्या था, वो रूठ कर अपने आवास पर चले गए. फिर ललन सिंह ही उनके पास पहुंचे थे, उन्हें मनाने. जब वो नहीं मानें तो उनकी बातों को ललन सिंह ने ही सीएम नीतीश के सामने रखा था और फिर आरसीपी सिंह JDU की तरफ से राज्यसभा भेजे गए थे यानि कि उन्हें राजनीति में लाने वाले भी ललन सिंह ही थे.
JDU पार्टी में क्या थी उनकी अहमियत
राज्यसभा सांसद बनकर RCP जदयू के सर्वेसर्वा बन गये. पूरा संगठन उनके इशारे पर ही चलता रहा. वैसे भी नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी के संगठन महासचिव का पद दिया था. उसके बाद से पार्टी का सारा काम आरसीपी सिंह ही देख रहे थे. पार्टी की बैठक हो या सार्वजनिक कार्यक्रम, सभी में उनका रूतबा दिखता रहा है. इन कार्यक्रमों में RCP नीतीश के ठीक पहले भाषण देते हैं. ये तो हर कोई जानता है कि आरसीपी सिंह जब नीतीश कुमार के प्रधान सचिव थे, तब भी असली पॉवर उनके हाथों में ही थी.
लालच ने सीएम नीतीश से किया दूर
बिहार विधानसभा चुनाव के बाद जेडीयू और बीजेपी के बीच संबंध उतने अच्छे नहीं रह गए थे. 2021 में केंद्र में नरेंद्र मोदी ने मंत्रिमंडल का विस्तार किया. ये वो वक़्त था, जब 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद जेडीयू और बीजेपी के रिश्ते ख़राब हो गये थे. नीतीश कुमार की बीजेपी के किसी बड़े नेता से बात नहीं हो रही थी, लेकिन तय ये हुआ कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में जेडीयू शामिल होगी. नीतीश कुमार ने जेडीयू की ओर से बातचीत करने के लिए आरसीपी सिंह को अधिकृत कर दिया. RCP पार्टी के बदले खुद मंत्री बनने का जुगाड़ कर आये. राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा आम है कि उस वक्त नीतीश कुमार की ओर से ललन सिंह को भी मंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन आरसीपी सिंह ने बीजेपी के साथ ऐसी सेटिंग की थी कि बीजेपी आरसीपी के अलावा जेडीयू के किसी और सांसद को मंत्री बनाने को राजी नहीं थी. उनकी ये सेटिंग उन पर ही भारी पर गयी और उनका चैप्टर ही क्लोज कर दिया.
Source : Rashmi Rani