देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलानेवाले दीवानों में एक नाम था सरदार हरिहार सिंह. 4 माह के लिए बिहार के सीएम भी हरिहर सिंह बनाए गए थे लेकिन आज बिहार के इतिहास के पन्नों में उनका नाम दबकर रह गया है. हरिहर सिंह को आज लोग भूल चुके हैं. 1925 में बक्सर के चौंगाई में जन्में स्वतंत्रता संग्राम से राजनीति के क्षितिज पर पहुंचने वाले पूर्व मुख्यमंत्री सरदार हरिहर सिंह की स्मृति में कुछ नहीं होना. यह सबित करता है कि अपनो के बीच बेगाने हो गए है.
- बचपन से ही जुझारू शख्स थे सरदार हरिहर सिंह
- स्कूल के दिनों से ही ही शुरू कर दिये थे स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई
जन्मस्थली चौंगाई से लेकर बक्सर के बीच ऐसा कुछ भी नहीं है. जिसे देखकर आने वाली पीढ़ियां गौरवान्वित महसूस कर सकें. बक्सर जिले के डुमरांव अनुमंडल के चौंगाई गांव में हरिहर सिंह के भीतर शुरू से जुझारूपन था. आरा के जिला स्कूल में पढ़ाई के दौरान आजादी की लड़ाई से जुड़ गए. पढ़ाई छोड़कर अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा बुलंद करने लगे. स्वयं कविताएं बनकर गीत के रुप में स्वर देकर आजादी के दीवानों में जोश भरने काम करते रहे. लोग बताते हैं कि उनके नेतृत्व क्षमता और जुझारुपन को देखते हुए सरदार की उपाधि मिली थी. स्कूली जीवन से लेकर जीवन के अंतिम क्षण तक देश और आम जनता के लिए समर्पित रहे.
- 'अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा करने लगे थे बुलंद
- अपने गीतों और कविताओं से स्वतंत्रता सेनानियों में भरते थे जोश
सरदार हरिहर सिंह की राजनीतिक की शुरुआत 1937 से हुई थी. उस वक्त पहली बार सरदार साहब सासाराम अनुमंडल विधानसभा से चुने गये थे. 1946 में आरा सदर और 1952 में कांग्रेस की टिकट पर डुमरांव से विधायक बने. 1957 में चुनाव हारने के बाद विधान परिषद के लिए चुने गये. 1967 में डुमरांव से निर्दलीय चुनकर विधान सभा पहुंचे और शोषित दल की सरकार में कृषि मंत्री बने. फिर 1969 में कांग्रेस की टिकट पर डुमरांव से विजयी हुए और बिहार के मुख्यमंत्री बने.
- 1937 से शुरू किया सियासी सफर
- 1946 में सदर और 1952 में डुमराव सीट से बने विधायक
- बिहार सरकार में कृषि मंत्री भी रहे
- 26 फरवरी 1969 से 22 जून 1969 तक रहे बिहार के सीएम
- राजनीति में नहीं की धन की कमाई, उल्टा पैतृक जमीन-जायदाद गंवाई
संघर्षों के बीच जीवन की शुरुआत करने वाले सरदार साहब के जीवन का अंत भी संघर्षो के बीच हुआ. आधुनिक राजनेता राजनीति को पैसों का पेड़ समझते हैं. आम जनता के हक के पैसे डकार जाते हैं और पानी भी नहीं पीते. लेकिन सरदार हरिहर सिंह ऐसे राजनेता नहीं थे. कई महत्वपूर्ण पदों पर रहने के बाद भी सरदार बाबू की संपत्ति में इजाफा नहीं हुआ. हां ये अलग बात है कि चुनावी खर्च में पैतृक संपत्ति बिक गई.
- किसी भी माननीय ने नहीं ली सरदार साहब की सुधि
- सिर्फ लालू यादव को आई थी सरदार की याद
नब्बे के दशक में बिहार की राजनीति में परिवर्तन हुआ. जेपी आंदोलन से निकले लोगों की सरकार बनी. उस दौर में सरदार साहब की स्मृतियों को सहेजने का सवाल उठा. 1994 में डुमरांव डीएसपी आवास के समीप तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने सरदार साहब की प्रतिमा लगाने हेतु शिलान्यास किया था. समय के साथ सब कुछ ओझल होता गया. अब तो शिलान्यास स्थल अवशेष भी नहीं बचा है. चौंगाई से लेकर जिला मुख्यालय के बीच ऐसी कोई स्मृति चिन्ह नहीं जिसे देखकर आने वाली पीढि़यां गौरव महसूस कर सके. कुछ ऐसी थी बिहार के पूर्व सीएम सरदार हरिहर सिंह की कहानी जो अब सिर्फ इतिहास बनकर रह गईं हैं. इतिहास भी ऐसा जिसे अब कूरेदने और याद करने वाले बहुत ही कम लोग बचे हैं.
Source : News State Bihar Jharkhand