भारत में जात-पात से ऊपर दो ऐसे वर्ग हैं, जिनके नाम पर सियासत तो खूब होती है, लेकिन उनके दर्द को समझने की ईमानदार कोशिश शायद ही कभी होती है. ये दो वर्ग है नौजवान और किसान. नौजवान बेरोजगारी और नौकरी के लिए लाठी खाते हैं और सियासत अपने अपने हिसाब से उन्हें नौकरी देने का लॉलीपॉप देते हैं. किसान कभी फसल बर्बाद होने पर मुआवज़ा के लिए तो कभी खाद और यूरिया के लिए परेशान होते हैं और सियासत उन्हें आश्वासन और वादें थमाती है, लेकिन हम अपने डिबेट शो में अक्सर इन्हीं दो वर्गों की आवाज़ उठाते है. नौजवानों की बात हम उठाते रहते हैं लेकिन आज बात किसानों की करते हैं.
वो किसान जो हर 6 महीने में बुआई के सीजन में चाहे खरीफ हो या रबी... खाद की किल्लत से परेशान होते हैं. खेत में फसल बुआई का वक्त हाथ से फिसलता रहता है और खाद के लिए कतार में अपने पैर जमाए रहते हैं इस आस में कि खाद मिल जाए, लेकिन सड़े सिस्टम के कारण जो खाद किसानों के खेत में होनी चाहिए, वो किसी माफिया के होटल के बेसमेंट में पड़ा रहता है.
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सवाल उठता है तो छापेमारी होती है लेकिन वो सिर्फ खानापूर्ति होती है और फिर अगले ही साल उसी होटल में खाद की बोरियां भरी पड़ी रहती है और फिर वही कार्रवाई का झुनझुना. तो क्या वाकई कृषि विभाग में सिस्टम ऐसा हो चुका है कि खाद की किल्लत का माहौल बनाया जाता है और खाद की कालाबाजारी होती है? तो क्या पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने सही कहा था कि वो चोरों के सरदार हैं? क्या वाकई खाद की किल्लत को लेकर केंद्र और राज्य के बीच आरोप प्रत्यारोप दरअसल खाद के खेल को छिपाने के लिए होता है? आज बिहार के 85 लाख किसानों के लिए इन्हीं बड़े सवालों पर सबसे बड़ी बहस 'सवाल आज का' में
'सवाल आज का' कार्यक्रम में कुमार सर्वजीत (कृषि मंत्री, बिहार), जेडीयू प्रवक्ता लव कुमार सिंह, अमरेन्द्र सिंह (पूर्व कृषि मंत्री, बिहार), रणधीर झा ( किसान नेता) ने अपना-अपना पक्ष रखा. कार्यक्रम के होस्ट सुमित झा जिम्मेदारों से कड़वे और तीखे सवाल पूछे.
सवाल आज का
- एक साल पहले खाद सिंडिकेंट के रद्द लाइसेंस को कैसे मिला लाइसेंस?
- एक साल पहले जिस होटल में खाद मिला, फिर उसी होटल में खाद कैसे?
- जिन गोदामों को सील किया गया, उसे तोड़ कर खाद का स्टॉक कैसे?
- 6 दिन बीतने के बाद भी खाद की बोरियों की गिनती या कार्रवाई क्यों नहीं?
- खाद के लिए किसान परेशान, वहीं हजारों बोरियां खाद गोदाम में बंद क्यों?
- खाद की किल्लत का रोना, खाद की कालाबाजारी पर लगाम क्यों नहीं?
- कृषि विभाग की मिलीभगत के बिना क्या खाद का खेल संभव है?
- सुधाकर सिंह के आरोपों को खारिज करने से क्या सबकुछ ठीक हो जाएगा?
Source : Shailendra Kumar Shukla