बिहार... जी हां अपना बिहार जिसे क्रांतिकारियों और राजनीतिज्ञों की धरती कहा जाता है. बात अगर राजनीति की हो तो बिहार इसका जन्मदाता है. बात जेपी आंदोलन की हो या लालू यादव, नीतीश कुमार या दूसरे नेताओं की. बिहार हमेसा से ही राजनीति में आगे रहा है. जेपी आंदोलन के बाद बिहार समते कई राज्यों में दलों की बाढ़ सी आ जाती है . लेकिन जेपी आंदोलन से पहले भी सूबे ने कई ऐसी राजनेताओं को जन्म दिया है जिन्होंने ने न सिर्फ राज्य को आगे बढ़ाने का काम किया है. बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में भी शामिल रहे हैं. इन्हीं राजनेताओं में से एक थे बिहार के पहले मुख्यमंत्री बिहार केसरी श्री कृष्ण सिन्हा जी.
- महात्मा गांधी के साथ मिलकर किया था अंग्रेजी हुकूमत का विरोध
- जेल से सीएम की कुर्सी तक का सफर नहीं था आसान
बिहार की धरती क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों के साथ-साथ राजनेताओँ की धरती है इसमें कोई शक नहीं है. स्वतत्रता संग्राम की बात रही हो या फिर सत्ता सग्राम की… बिहार के लालों का नाम हमेशा सुर्खियों में बना रहता है. वैसे तो बिहार की मिट्टी से कई लाल निकले हैं जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में दुनिया को अचंभित करने वाले मुकाम हासिल किए हैं. फेहरिस्त तो बहुत लंबी है लेकिन आज हम जिनकी बात करने जा रहे हैं उनका योगदान अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने से लेकर बिहार का भाग्य बनाने तक में रहा है.
- श्री कृष्ण सिन्हा यानि ‘बिहार केसरी’
- स्वंतत्रा की लड़ाई हो या सत्ता की लड़ाई
- 'बिहार केसरी' का रहा हर समय जलवा
- श्री बाबू, बिहार केसरी के नाम से भी प्रसिद्ध थे श्री कृष्ण सिन्हा
21 अक्टूबर 1887 को शेखपुरा के बाउर गांव में एक भुमिहार ब्राम्हण के घर में जन्में बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिन्हा. नाम तो श्री कृष्ण सिन्हा था लेकिन लोग प्यार से उन्हें श्री बाबू जी और बिहार केसरी कहते थे. ये दो नाम श्री कृष्ण सिन्हा को यूं ही नहीं मिल गए थे. इसके लिए उन्होंने बिहार को आगे ले जाने के लिए जीतोड़ मेहनत की. 2 अप्रैल 1946 को बिहार के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर गद्दी संभालने के बाद श्री कृ्ष्ण सिन्हा के सामने राज्य को आगे ले जाने की एक सबसे बड़ी चुनौती थी. शासनकाल में बिहार में उद्योग, कृषि, शिक्षा, सिंचाई, स्वास्थ्य, कला व सामाजिक क्षेत्र में की उल्लेखनीय कार्य हुये. उनमें स्वतंत्र भारत की पहली रिफाइनरी- बरौनी ऑयल रिफाइनरी, स्वतंत्र भारत का पहला खाद कारखाना- सिन्दरी व बरौनी रासायनिक खाद कारखाना, एशिया का सबसे बड़ा इंजीनियरिंग कारखाना-भारी उद्योग निगम (एचईसी) हटिया, देश का सबसे बड़ा स्टील प्लांट-सेल बोकारो, बरौनी डेयरी, एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड-गढ़हरा, स्वतंत्री के बाद गंगोत्री से गंगासागर के बीच प्रथम रेल सह सड़क पुल-राजेंद्र पुल, कोशी प्रोजेक्ट, पुसा व सबौर का एग्रीकल्चर कॉलेज, बिहार, भागलपुर, रांची विश्वविद्यालय इत्यादि जैसे अनगिनत उदाहरण हैं। उनके शासनकाल में संसद के द्वारा नियुक्त फोर्ड फाउंडेशन के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री एपेल्लवी ने अपनी रिपोर्ट में बिहार को देश का सबसे बेहतर शासित राज्य माना था और बिहार को देश की दूसरी सबसे बेहतर अर्थव्यवस्था बताया था.
- 1916 में महात्मा गांधी से मुलाकात
- 1922 में पहली बार की जेल यात्रा
श्री बाबू ने पांचवी तक पढ़ाई मुंगेर जिले के ही एक प्राइमरी स्कूल में की. फिर उच्च शिक्षा के लिए 1906 में पटना कॉलेज में एडमिशन लिया और फिर पटना यूनिवर्सिटी से डॉयरेक्टरेट ऑफ लॉ की उपाधि ली और 1915 में श्री बाबू मुंगेर में वकालत करने लगे. 1921 तक उन्होंने वकालत की. कानून, संविधान, सामाजिक मामलों, लोगों के अधिकारों की वकालत करने के क्रम में के श्री बाबू 1916 में वाराणसी स्थित सेंटर हिंदू कॉलेज में महात्मा गांधी से मिले. बस यहीं से श्री कृष्ण सिन्हा का राजनीतिक कैरियर शुरू हुआ हालांकि इसकी अभी घोषणा नहीं हुई थी. श्री बाबू ने महात्मा गांधी के साथ मिलकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ नमक सत्याग्रह में भी अहम भूमिका निभाई. दिन-ब-दिन श्री बाबू का कद बढ़ता रहा और 1922 में अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने के कारण शाह मोहम्मद जुबैर के घर से गिरफ्तार कर लिया गया और जेल भेज दिया गया.
- ‘नमक सत्याग्रह’ में भी निभाई अहम भूमिका
- 1927 से की सक्रिय राजनीति की शुरुआत
श्री बाबू को जेल में तो डाल दिया गया लेकिन तबतक श्री बाबू लोगों को दिलों में उतर चुके थे और लोगों ने उन्हें 'बिहार केसरी' यानि बिहार का शेर नाम दे दिया था. अब श्री कृष्ण सिन्हा की जगह उन्हे बिहार केसरी के नाम से जाना जाने लगे. 1923 में जेल से रिहा होने के बाद उनकी असली राजनीतिक पारी शुरू हुई और वो भारतीय कांग्रेस कमिटी के सदस्य बन गए. 20 जुलाई 1937 को जब कांग्रेस केंद्र में थी तो श्री बाबू को बिहार के कर्ता धर्ता के रूप में जिम्मेदारी सौंपी गई. भारत सरकार के अधिनियम 1935 के तहत श्री बाबू ने 20 जुलाई 1937 को बिहार की पहली कैबिनेट का गठन किया. इस बीच एक बार फिर से श्री बाबू को फिर से भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेने की वजह से जेल जाना पड़ा और वह नवंबर 1940 से अगस्त 1941 तक हजारीबाग जेल में बंद रहे. 20 जुलाई 1937 से लेकर 26 जनवरी 31 अक्टूबर 1939 तक वह बिहार की बागडोर संभाले रहे उसके बाद 2 अप्रैल 1946 से लेकर 31 जनवरी 1961 तक बिहार बिहार के मुख्यमंत्री रहे. . अगर आज बिहार आत्मनिर्भर के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखता है तो उसके जनक श्री बाबू, बिहार केसरी. श्रीकृष्ण सिन्हा ही थे.
Source : News State Bihar Jharkhand