कहानी बिहार के उस बाहुबली नेता की जिसने जेल में रहकर कई बार जीता था चुनाव

16 सालों से जेल में बंद आनंद मोहन की तूती बोलती है. सहरसा से लेकर पूरे बिहार में इस नाम में लोग खौफ खाते है. एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के घर में पैदा हुए आनंद मोहन कैसे अपराधी छवि के नेता बन गए ये कहानी भी अपने आप में दिलचस्प है .

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Rashmi Rani
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Anand Mohan( Photo Credit : फाइल फोटो )

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बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन हमेशा से सुर्खियों में रहे है. बिहार की राजनीति में जब भी दंबग और अपराधिक छवि के नेताओं का नाम आता है तो अनंत सिंह उस फेहरिश्त में सबसे पहली जगह पाते है. गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में सहरसा जेल में बंद आनद मोहन की  अपने परिवार के साथ एक तस्वीर जब सोशल मीडिया पर वायरल हुई. जिसमें वो पेशी के लिए पटना लाए गए थे लेकिन पेशी से पहले वो अपने घर पर पत्नी लवली आनंद और बेटे चेतन आनंद के साथ फोटो खिचवाते नजर आए. तस्वीर वायरल हुई तो कहा जाने लगा कि बिहार में एक बार फिर जंगलराज लौट आया है. दरअसल आनंद मोहन का किरदार ही कुछ ऐसा है उनकी दागदार छवि ,धमक और रुतबा ही ऐसा है कि सुर्खिया उन्हे घेरे रहती है. ये बात दिगर है कि बदनामी से बचने के लिए प्रशासन को उन्की इस हरकत के चक्कर में छह पुलिसकर्मियों को सस्पेंड करना पड़ा. खैर ये आनंद मोहन के लिए आम बात है.

बीते 16 सालों से जेल में बंद आनंद मोहन की तूती बोलती है. सहरसा से लेकर पूरे बिहार में इस नाम में लोग खौफ खाते है. एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के घर में पैदा हुए आनंद मोहन कैसे अपराधी छवि के नेता बन गए ये कहानी भी अपने आप में दिलचस्प है .

आनंद मोहन का जन्म 26 जनवरी 1956 को बिहार के सहरसा जिले के नवगछिया गांव में एक स्वतंत्रता सेनानी के परिवार में हुआ था. आनंद मोहन के दादा एक स्वतंत्रता सेनानी थे. उनके पिता परिवार के मुखिया थे. जब आनंद मोहन केवल 17 साल के थे तो बिहार में जेपी आंदोलन शुरू हुआ और यहीं से उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई. कहते हैं कि बिहार की राजनीति दो धूरियों पर टिकी है पहली जाति और दूसरा खौफ. आनंद मोहन ने भी इन दोनों हथियारो का बखूबी इस्तेमाल किया और राजनीति में कदम बढाते चले गए.

आरक्षण के सख्त विरोधी थे आनंद मोहन

जब देश में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू की गई थीं तो इन सिफारिशों में सबसे अहम बात ये थी कि सरकारी नौकरियों में ओबीसी को 27% का आरक्षण देना. जहां जनता दल पार्टी ने भी इसका समर्थन किया लेकिन आनंद मोहन आरक्षण के खिलाफ खड़े हुए और 1993 में जनता दल से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई, जिसका नाम ‘बिहार पीपुल्स पार्टी’ यानी बीपीपी रखा और बाद में समता पार्टी से हाथ मिला लिया.

पहले नेता जिन्हें मिली मौत की सजा

ये उस वक़्त की बात है जब आनंद मोहन ने अपनी चुनावी राजनीति शुरू की थी, उसी समय बिहार के मुजफ्फरपुर में एक नेता हुआ करते थे छोटन शुक्ला. आनंद मोहन की छोटन शुक्ला से गहरी दोस्ती थी . दोनों दोस्तो की जोड़ी ऐसी जैसे सगे भाई हो. लेकिन 1994 में छोटन शुक्ला की हत्या हो गई. इस हत्या ने आनंद मोहन को अंदर से झखझोर दिया । आनंद मोहन जब अपने भाई जैसे दोस्त के अंतिम संस्कार में पहुंचे तो अंतिम यात्रा के बीच से एक लालबत्ती की गाड़ी गुजर रही थी, जिसमें सवार थे उस समय के गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया. जिसे देख सभी का गुस्सा फुट पड़ा और जी कृष्णैया को पीट-पीटकर मौके पर ही मार डाला गया. जी कृष्णैया की हत्या का आरोप आनंद मोहन पर लगा. कहा गया कि भीड़ ने आनंद मोहन के इशारों पर ही डीएम की गाड़ी पर हमला बोला. इस मामले में आनंद मोहन को जेल हो गई. 2007 में निचली अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुना दी थी. हालांकि, पटना हाईकोर्ट ने दिसंबर 2008 में मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था.

जेल से ही चुनाव जीतते रहे बाहुबली नेता

1996 में लोकसभा चुनाव हुए उस वक्त आनंद मोहन जेल में थे. जेल से ही उन्होंने समता पार्टी के टिकट पर शिवहर से चुनाव लड़ा और जनता दल के रामचंद्र पूर्वे को 40 हजार से ज्यादा वोटों से हराया दिया. 1998 में एक बार फिर उन्होंने शिवहर से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार राष्ट्रीय जनता पार्टी के टिकट पर ये चुनाव भी उन्होंने जीत लिया. 1999 और 2004 के लोकसभा चुनाव में भी आनंद मोहन खड़े हुए, लेकिन इस बार उनकी किस्मत ने साथ नहीं दिया और वो हार गए.

पत्नी को भी राजनीति में लेकर लाए बाहुबली नेता

आनंद मोहन ने 13 मार्च 1991 को लवली सिंह से शादी की थी. लवली भी उन्ही की ही तरह स्वतंत्रता सेनानी परिवार से थी उनके पिता माणिक प्रसाद सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे.  शादी के तीन साल बाद 1994 में लवली आनंद की राजनीति में एंट्री उपचुनाव से हुई. 1994 में वैशाली लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुए, जिसमें लवली आनंद यहां से जीतकर पहली बार संसद पहुंचीं थी. बिहार में लवली आनंद को लोग भाभीजी कहकर बुलाते हैं. उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि जब लवली आनंद उर्फ़ भाभीजी रैली करने आती थीं, तो लाखों की भीड़ इकट्ठा होती थी. इतनी भीड़ तो आनंद मोहन की रैलियों में भी नहीं आती थी. बिहार की राजनीति को करीब से देखने वालों का कहना है कि लवली आनंद की रैलियों में भीड़ देखकर उस समय लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जैसे सरीखे नेता भी दंग रह जाते थे. बहरहाल एक बार फिर बिहार में आनंद मोहन के रुतबे की हवा बह रही है. लोग दबी जुबान में कह रहे है कि आनंद मोहन वक्त एक बार फिर लौटेगा.

Source : News Nation Bureau

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