बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री व राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा कि जातीय सर्वे की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद सत्ता से जुड़ी चुनिंदा जातियों को छोड़ कर लगभग सभी जातियों के लोग ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा और जदयू के एक सांसद सहित अनेक लोग जब सर्वे के आंकड़ों को विश्वसनीय नहीं मान रहे हैं, तब सर्वे प्रक्रिया की समीक्षा करायी जानी चाहिए. बिहार में जातीय सर्वे कराने के सरकार के नीतिगत निर्णय पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगने के बाद अब कानूनी रूप से सर्वे को लेकर कोई कानूनी मुद्दा नहीं है.
- वैश्य, निषाद सहित कई जातियों को उपजातियों में बांट कर दिखाया गया
- सत्ता-समर्थक खास जातियों के आंकड़े पेश किये गए बढ़ा कर
- सर्वे पर कोई कानूनी मुद्दा नहीं, विश्वसनीयता पर संदेह
इसके साथ ही कहा कि दूसरी तरफ सर्वे की विश्वसनीयता जनता का मुद्दा बन गया है. ऐसी शिकायतें मिली कि प्रगणकों ने अनेक इलाकों के आंकड़े घर बैठे तैयार कर लिए. वैश्य, निषाद जैसी कुछ जातियों के आंकड़े 8-10 उपजातियों में तोड़ कर दिखाये गए, ताकि उन्हें अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास नहीं हो. यह किसके इशारे पर हुआ? राज्य में वैश्य समाज की आबादी 9.5 फीसद से अधिक है, लेकिन यह सर्वे में दर्ज नहीं हुआ.
उन्होंने कहा कि जिस जाति-धर्म के लोग वर्तमान सत्ता के साथ हैं, उनकी संख्या को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने के लिए उपजातियों के आंकड़े छिपाये गए. जातीय सर्वे पर जो संदेह-सवाल उठ रहे हैं, उनका उत्तर राज्य सरकार को देना चाहिए, पार्टी प्रवक्ताओं को नहीं. बता दें कि जातीय गणना के आंकड़ें जब से सामने आए हैं. बिहार में सियासी हलचलें तेज हो चुकी है.
HIGHLIGHTS
- सुशील मोदी का बड़ा बयान
- सर्वे से खुद को ठगा महसूस कर रही कई जातियां
- जातीय गणना की हो समीक्षा
Source : News State Bihar Jharkhand