आधुनिक काल में जहां पिज्जा और बर्गर को युवा पसंद कर रहे हैं, वहीं बिहार के मुजफ्फरपुर खादी ग्रामोद्योग ने 'लोकल फॉर वोकल' के तहत अनूठी पहल करते हुए लोगों को ऑनलाइन मक्के की रोटी के साथ साग और चटनी परोस रहा है. इससे ना केवल लोगों को रोजगार मिल रहा है बल्कि विलुप्त होते जा रहे ऐसे खाद्य पदाथरें की जानकारी भी उपलब्ध हो रही है.
मुजफ्फरपुर खादी ग्रामोद्योग की इस पहल से आधुनिक युग में पुराने जमाने का भोजन मक्के की रोटी और साग को लोग पसंद भी कर रहे हैं. फोन से ऑनलाइन ऑर्डर कर 100 रुपए में साग, 2 मक्के की रोटी, देशी धनिया मिर्ची आंवले की चटनी लोगों को परोसी जा रही है.
खादी ग्रामोद्योग का मानना है कि इस भोजन की मांग बढ़ने के बाद आसपास के किसानों के लिए रोजगार भी पैदा होगा. साथ ही जिले में विलुप्त होती मक्के और सरसों की खेती को बढ़ावा मिल रहा है. ये व्यंजन मिट्टी के चूल्हे और लकड़ी के बर्तन में और परंपरागत चूल्हे पर तैयार किया जाता है. बैठ कर खाने के लिए चटाई और चारपाई की व्यवस्था की गई है.
मुजफ्फरपुर जिला खादी ग्रामोद्योग के अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार ने आईएएनएस को बताया कि मोबाइल से ऑनलाइन ऑर्डर मिल रहा है और ऐसे लोगों को होम डिलीवरी भी की जा रही है. उन्होंने कहा कि जिन्हें पसंद होता है वे लोग परिवार के साथ यहां पहुंचकर भी मक्के की रोटी का स्वाद चख रहे हैं. उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में लिट्टी और चोखा भी लोगों के लिए उपलब्ध करवाया गया है. फिलहाल प्रतिदिन 40 से 50 लोगों का ऑर्डर मिल रहा है.
उन्होंने बताया कि मक्के की रोटी और साग तैयार करने में ग्रामीण महिलाओं को लगाया गया है. उन्होंने कहा कि इस कार्य में स्वच्छता और पौष्टिकता का पूरा ख्याल रखा जाता है.
उन्होंने बताया कि मक्के के बाद मड़ुआ, बाजरा, जौ, चावल की रोटी भी उपलब्ध कराए जाने की योजना है. साथ ही दही, घी, व गुड़ तैयार करने की भी योजना बनाई गई है. खादी ग्रामोद्योग संघ का मानना है कि इस काम से रोजगार का नेटवर्क बढ़ेगा. इसमें अनाज लाने, भोजन तैयार करने, घरों तक पहुंचाने की एक लंबी चेन तैयार होगी और लोगों को घर में ही रोजगार का सृजन होगा. उन्होंने कहा कि इसके लिए किसानों का समूह तैयार किया गया है.
उन्होंने कहा कि लकड़ी के जलावन वाले चूल्हे पर चाय व कॉफी तैयार की जा रही है, जिसे भी लोग खूब पसंद कर रहे हैं. अध्यक्ष ने बताया कि 30 से 40 हजार रुपये की पूंजी लगाई गई है. अब परिसर में आकर लोग चाय-कॉफी, रोटी-साग का आनंद ले रहे हैं. किसान समूह बनाकर इस काम को आगे बढ़ाया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि यह दुकान प्रतिदिन 10 बजे से शाम छह बजे तक खुलती है. उन्होंने कहा कि फिलहाल 15 स्थानीय लोगों को यहां काम मिला है. इधर, रोटी बनाने वाली सुमित्रा देवी भी रोजगार मिलने से प्रसन्न हैं. उन्होंने आईएएनएस से कहा कि मांग के मुताबिक रोटी बनानी पड़ती है. घर के जैसा माहौल और काम है, जिसमें कोई परेशानी नहीं है और आर्थिक लाभ भी हो रहा है.
Source : IANS