तीन दिसंबर यानि देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की जयंती का दिन है . इस दिन पूरे भारत देश के लोग इस महान सपूत को याद कर श्रद्धांजलि देते हैं. लोग उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने की संकल्प और कसमे खाते हैं. डॉ राजेन्द्र प्रसाद महात्मा गांधी के प्रिय शिष्यों में से एक थे देश के लिए मर मिटने की उन्होंने कसम खा ली थी. स्वतंत्रता सेनानी में इनका भी नाम लिया जाता है. बिहार की धरती आज उनके कारण खुद को गौरवान्वित महसूस करती है.
सीवान की धरती पर हुआ था जन्म
सीवान जिला मुख्यालय से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जीरादेई गांव जिसने देश को एक महान स्वतंत्रता सेनानी और देश का पहला राष्ट्रपति दिया. गणतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति और देशरत्न की उपाधि से नवाजे जाने वाले बाबू राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसम्बर, 1884 में इसी जीरादेई की धरती पर हुआ था. विद्वता और सादगी की प्रतिमूर्ति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने तीन बार देश का राष्ट्रपति बन देश की कमान संभाली थी.
पांच साल की उम्र से जाते थे उर्दू सीखने
पांच साल की उम्र से उनके माता पिता उन्हें एक मौलवी के यहां भेजते थे ताकि उन्हें फारसी, उर्दू, हिंदी की भी तालीम मिल सके. डॉ. राजेंद्र प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा उन्हीं के गांव जीरादेई में हुई. बचपन से ही पढ़ने में इनकी काफी दिलचस्पी थी. अपने भाई महेंद्र प्रताप के साथ वे पटना के टी के घोष अकैडमी में जाने लगे. जिसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ कलकत्ता में प्रवेश के लिए परीक्षा दी, जिसमें उन्हें बहुत ही अच्छे नंबर प्राप्त हुए. इस कारण उन्हें हर महीने 30 रुपय की स्कॉलरशिप मिलने लगी. उनके गांव से पहली बार किसी छात्र ने कलकत्ता विश्विद्यालय में प्रवेश पाने में सफलता प्राप्त की थी, जो उनके परिवार के लिए गर्व की बात थी. 1902 में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया, जहां से उन्होंने स्नातक किया. वहीं, 1907 में यूनिवर्सिटी ऑफ़ कलकत्ता से इकोनॉमिक्स में एमए किया. साल 1915 में कानून में मास्टर की डिग्री ली, जिसके लिए उन्हें गोल्ड मेडल से भी सम्मानित किया गया था. यही नहीं उन्होंने कानून में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की.
गांधीजी की विचारधारा से थे बेहद प्रभावित
उस वक्त बिहार में अंग्रेज सरकार किसानों से जबरदस्ती नील की खेती करवा रहे थे, जिसमें यहां के स्थानीय लोग भी मजदूरी करते थे. इसके बावजूद सरकार मजदूरों को उचित वेतन नहीं देती थी, जिसको लेकर आंदोलन शुरू हुआ. जिसके बाद 1917 में गांधीजी ने बिहार आकर इस सम्स्या को दूर करने की पहल की थी और ये वहीं वक्त था, जब डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की मुलाकात गांधीजी से पहली बार हुई थी. उनकी विचारधारा से वो बहुत ज्यादा प्रभावित थे. 1919 में पूरे भारत में सविनय आंदोलन की लहर थी. गांधीजी ने सभी स्कूल, सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करने की अपील देशवासियों से की थी, जिसके बाद डॉ प्रसाद ने अपनी नौकरी ही छोड़ दी.
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गांधीजी के वफदारों में से एक थे
चंपारण आंदोलन के दौरान अगर महात्मा गांधी जी का कोई सबसे ज्यादा वफादार था, तो वो डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ही थे. गांधी जी के करीब आने के बाद उन्होंने अपने पुराने और रूढ़िवादी विचारधारा को त्याग दिया था और एक नई ऊर्जा के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया. 1931 में कांग्रेस ने आंदोलन छेड़ दिया था और देश के लिए लड़ते हुए उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा था. उनके काम से प्रभावित होकर उन्हें 1934 में बम्बई कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था. वे एक से अधिक बार अध्यक्ष बनाये गए थे. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने भाग लिया था. जिस कारण उन्हें गिरिफ्तार भी किया गया था और नजर बंद रखा गया.
देश का पहला इंसान, जिसे दोबारा राष्ट्रपति बनाया गया
26 जनवरी 1950 को भारत का प्रथम राष्ट्रपति बनाया गया था. 1957 में फिर से राष्ट्रपति चुनाव हुए, जिसमें दोबारा राजेंद्र प्रसाद जी को ही राष्ट्रपति चुना गया था . देश में ये पहली बार था, जब एक ही इंसान को दो बार लगातार राष्ट्रपति बनाया गया था. बात दें कि1962 तक वे इस सर्वोच्च पद पर विराजमान रहे, लेकिन 1962 में ही उन्होंने अपने पद को त्याग दिया और पटना चले आए. जहां बिहार विद्यापीठ में रहकर उन्होंने जन सेवा कर अपना जीवन व्यतीत किया.
उनकी याद में बना ‘राजेन्द्र स्मृति संग्रहालय’
28 फरवरी, 1963 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का निधन हो गया था . भारतीय राजनैतिक इतिहास में उन्हें एक महान और विनम्र राष्ट्रपति माना गया है. पटना में उनकी याद में ‘राजेन्द्र स्मृति संग्रहालय’ का निर्माण भी कराया गया है.
Source : News State Bihar Jharkhand