DJ वाले 'बाबू' को पुलिस ने मारा, हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी-'ऐसा तो अंग्रेजों के समय में नहीं हुआ!'

याचिकाकर्ता को सिर्फ लाउड स्पीकर बजाने के कारण पुलिस द्वारा अरेस्ट कर लिया गया था और उसे जेल भेज दिया गया था.

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Shailendra Shukla
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सुनावाई के दौरान की तस्वीर( Photo Credit : सोशल मीडिया)

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बिहार पुलिस को हाईकोर्ट में कई बार अपने कारनामों की वजह से शर्मसार होना पड़ा है. एक बार फिर से गोपालगंज जिले के एसपी को अपने मातहतों की वजह से भरी कोर्ट में अपमानित होना पड़ा. दरअसल, मामला डीजे/लाउड स्पीकर बजाने के मामले में डीजे संचालक के खिलाफ कार्रवाई किए जाने, उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने और उसपर पुलिसिया बल के इस्तेमाल से जुड़ा है. पीड़ित डीजे संचालक द्वारा पटना हाईकोर्ट में  पुलिस के खिलाफ कंप्लेन की गई. याचिका को सुनने योग्य हाईकोर्ट द्वारा समझा गया और फिर क्या था हाईकोर्ट ने सीधा गोपालगंज के एसपी को तलब कर लिया. यहां एक बात और जानने वाली ये है कि डीजे संचालक द्वारा डीजे बजाने के एसडीओ से अनुमति भी ली गई थी. बावजूद पुलिस ने उसे मारा पीटा और उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. याचिकाकर्ता को सिर्फ लाउड स्पीकर बजाने के कारण पुलिस द्वारा अरेस्ट कर लिया गया था और उसे जेल भेज दिया गया था.

मामले में सुनवाई करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि हम लोग यानि जजेस कॉ़लोनी में जहां पर रहते हैं वहां पर आस - पास के लोग 11-11 बजे रात्रि तक लाउड स्पीकर बजाते हैं लेकिन कोई भी उन्हें गिरफ्तार करने नहीं आता. लेकिन यहां पर याचिकाकर्ता के पास एसडीओ द्वारा डीजे बजाने के लिए अनुमति भी दी गई थी तो उसे क्यों गिरफ्तार किया गया? न्यायाधीश ने एसपी गोलपालगंज से तल्ख लहजे में पूछा कि क्या ये मामले पुलिस द्वारा अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने का नहीं है? 

दरअसल, पेश मामले में याचिकाकर्ता पर ये आरोप FIRमें लगाया गया था कि उसने दिन में ही 11 बजे से साम 5 बजे तक किसी स्थान पर किसी सामाजिक/राजनीतिक कार्यक्रम में लाउड स्पीकर का प्रयोग भाषण लोगों को सुनाने  के लिए किया था और वो भी बिना परमिशन के. जबकि एडीओ द्वारा लाउड स्पीकर के इस्तेमाल की अनुमति पहले ही डीजे संचालक को दी गई थी. आरोप था कि लाउड स्पीकर के माध्यम से साम्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का प्रयास भाषणों के दौरान किया गया था.

सरकारी वकील की दलील सुनते ही न्यायाधीश भड़क उठे और कहा कि आप स्टेट को बचाने के लिए नहीं हैं आप कोर्ट के ऑफिसर हैं इस बात का ध्यान रहे. आगे न्यायाधीश ने कहा कि अभी आप अगर किसी को फंसाना चाहें तो कोर्ट के बाहर जाकर सिर्फ इतना कह दें कि ये व्यक्ति सांम्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का प्रयास कर रहा है और पुलिस बिना कोई सवाल-जवाब किए उसे उठाकर सिर्फ ये कहते हुए जेल में डाल देती है कि साम्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का प्रयास किया था. जबकि ना तो कोई मारपीट हुई थी और ना ही कोई घटना घटी थी.

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गोपालगंज के एसपी द्वारा बताया गया कि आरोपी को मुकदमा दर्ज करने के 6 माह बाद गिरफ्तार किया गया. न्यायाधीश ने सवाल कि 6 माह बाद क्यों? ऑन द स्पॉट गिरफ्तारी आरोपी की क्यों नहीं की गई? न्यायाधीश ने कहा कि जब आरोपी ने साम्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का वास्तव में प्रयास किया था तो उसकी गिरफ्तारी ऑन द स्पॉट क्यों नहीं की गई? उसे गिरफ्तार करने में 6 माह पुलिस को क्यों लगे? खासकर जब कार्यक्रम हुआ था तो वहां पुलिस भी मौजूद थी. घटना के 24 घंटे बाद मुकदमा पंजीकृत किया गया था तो आरोपी को क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया? 

न्यायाधीश ने एसपी गोपालगंज से FIR की कॉपी देखने को कहा और पूछा कि तुरंत एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की गई? 24 घंटे  के बाद एफआईआर दर्ज की जाती है ऐसा क्यों? न्यायाधीश ने फिर सवाल किया कि पुलिस की मौजूदगी में साम्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का प्रयास किया गया लेकिन अनुमंडल पदाधिकारी गोपालगंज द्वारा 24 घंटे बाद मुकदमा दर्ज कराया जाता है ऐसा क्यों?

न्यायाधीश ने आगे कहा कि उन्हें लाउड स्पीकर का इस्तेमाल करने का परमिशन भी आप के द्वारा दी जाती है और फिर कार्यवाई की जाती है और गिरफ्तारी मुकदमा दर्ज करने के 6 माह बाद दर्ज की जाती है. क्या आपको जानकारी है कि आपके द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना की गई है? माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का मजाक बनाया गया है?क्या आपको ऑफिसर्स को नियमों और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बारे में नहीं पता है? आरोपी को पुलिस द्वारा इतना मारा पीटा गया कि उसके शरीर पर कई चोटों के निशान पाए गए मेडिकल के दौरान, ऐसा तो अंग्रेजों के जमाने में भी नहीं हुआ.

वहीं, इंजरी रिपोर्ट सबमिट ना करने पर सिविल सर्जन को भी कोर्ट ने फटकार लगाई. सुनवाई के दौरान सिविल सर्जन को भी कोर्ट में तलब किया गया था. जवाब में सिविल सर्जन ने बताया कि आई.ओ. द्वारा ओ.डी. स्लिप भी उन्हें मुहैया नहीं कराई गई थी. जब सीजेएम कोर्ट से इंजरी रिपोर्ट उनसे मांगी गई तब उन्होंने पत्र पाने के 24 घंटे के अंदर इंजरी रिपोर्ट दी थी. सिविल सर्जन ने भी आई.ओ. की लापरवाही बताई. 

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता द्वारा बताया गया कि घटना के 5 साल बाद इंजरी रिपोर्ट प्रस्तुत की गई और सिविल सर्जन द्वारा पूर्व में एफिटेविड भी दिया गया था. कोर्ट में सुनवाई के दौरान सिविल सर्जन द्वारा इंजरी रिपोर्ट गलत तरीके और गलत ढंग से लिखे सीरियल नंबर के हिसाब से पेश किया गया था. न्यायाधीश ने तुरंत गलती पकड़ी तो ये कहा गया कि गलती से सीरियल नंबर गलत लिख उठा था. सिविल सर्जन पर तंज कसते हुए न्यायाधीश ने कहा कि जल्दबाजी में गलतियां करते समय पेन अपने आप थोड़ा बहुत हिल-डुल जाता है. गलती करते समय इंसान के अंदर से आवाज आती है और तभी पेन गलती करता है. न्यायाधीश ने कहा कि इस केस में पुलिस से लेकर डॉक्टर तक सबने गलती की है.

न्यायाधीश ने कहा कि आप कोर्ट के आदेश को नहीं मानते, आप सीजेएम के ऑर्डर का पालन नहीं करते, पुलिस किस तरह से काम कर रही है? गोपालगंज एसपी से न्यायाधीश ने पूछा कि आपको पता नहीं कानून क्या होता है? नयायाधीश ने चेतावनी भरे लहजे में एसपी गोपालगंज और सिविल सर्जन गोपालगंज को कहा कि जो भी गड़बड़ी किए हो साफ-साफ बताइए. जितना छिपाओगे उतना ही फंसते हुए चले जाओगे. इसके अलावा भी न्यायाधीश ने सिविल सर्जन, सरकारी वकील और एसपी गोपालगंज को जमकर फटकार लगाई. न्यायाधीश ने कहा कि कचहरी में आने के बाद अच्छे-अच्चों को जवाब देना पड़ता है. 

HIGHLIGHTS

  • गोपालगंज एसपी और सिविल सर्जन को मिली फटकार
  • हाईकोर्ट ने गलती पाने पर लगाई फटकार
  • सीजेएम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं हुआ था
  • डीजी संचालक को पुलिस ने बहुत मारा-पीटा था

Source : Shailendra Kumar Shukla

Patna High Court
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