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उपेंद्र कुशवाहा को नहीं मिला मंत्रालय, नीतीश कुमार के कहने पर बदल लिया था 'नाम'

बिहार में सियासी उलटफेर के बाद एक बार फिर महागठबंधन की सरकार बनी है. नीतीश कुमार ने 8वीं बार सीएम पद की शपथ ली तो वहीं तेजस्वी यादव ने उपमुख्यमंत्री का पदभार संभाला.

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Vineeta Kumari
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Upendera Kushwah

उपेंद्र कुशवाहा ( Photo Credit : फाइल फोटो)

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बिहार में सियासी उलटफेर के बाद एक बार फिर महागठबंधन की सरकार बनी है. नीतीश कुमार ने 8वीं बार सीएम पद की शपथ ली तो वहीं तेजस्वी यादव ने उपमुख्यमंत्री का पदभार संभाला. मंगलवार को नीतीश की कैबिनेट का विस्तार किया गया और 31 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली. जिसमें गृह मंत्रालय को सीएम ने अपने पास ही रखा. तेजस्वी को स्वास्थ्य मंत्रालय मिला तो वहीं तेजप्रताप यादव को को पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन विभाग की जिम्मेवारी मिली है. इसी बीच नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाली उपेंद्र कुशवाहा की नाराजगी की खबरें सामने आ रही है.

कुछ मीडिया रिपोर्ट की मानें तो उपेंद्र कुशवाहा स्वास्थ्य मंत्रालय की मांग कर रहे थे लेकिन जब पार्टी ने उनकी बात नहीं मानी तो वह नाराज हो गए और दिल्ली निकल गए. तमाम खबरों के बीच कुशवाहा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि यह सारी खबरें बेबुनियाद है. वह अपने पारिवारिक और निजी कार्य से बिहार से बाहर हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वह पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत बनाने में लगे हुए हैं. 

नीतीश के कहने पर बदल लिया 'नाम'
उपेंद्र राजनीति में आने से पहले अपना पूरा नाम उपेंद्र सिंह लिखा करते थे लेकिन नीतीश कुमार के सुझाव पर उन्होंने अपना सरनेम सिंह से बदलकर कुशवाहा कर लिया. बता दें कि बिहार में हमेशा से जाति की राजनीति होती रही है और खास वर्ग तक अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कुशवाहा ने अपना नाम बदल लिया. बिहार में करीब 7 फीसदी आबादी कुशवाहा यानी कोइरी तबके से हैं और उनका वोट हमेशा राजनीतिक पार्टी के लिए अहम रोल अदा करता है. 

नीतीश कुमार के साथ शुरू हुआ राजनीतिक करियर
नीतीश कुमार, लालू यादव, राम विलास पासवान की राजनीतिक शुरुआत जेपी आंदोलन से हुई थी, उसी समय उपेंद्र कुशवाहा की भी राजनीतिक करियर का प्रारंभ हुआ. नीतीश, उपेंद्र के सीनियर थे.  उपेंद्र नीतीश कुमार से काफी प्रभावित थे और उन्होंने उनसे राजनीति की बारीकियां भी सीखी. 1985 में उपेन्द्र कुशवाहा ने राजनीति में कदम रखा और लोक दल के यूथ विंग के साथ जुड़े. 

उपेन्द्र कुशवाहा ने साल 2000 में जन्दाहा से पहली बार चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. साल 2004 में समता पार्टी ने जदयू से मिलकर सबसे बड़ी अपोजिशन पार्टी बनाई, जिसके बाद कुशवाहा को विपक्ष का नेता बनाया गया लेकिन अपनी महत्वाकांक्षाओं की वजह से वह साल 2007 में वो जदयू से अलग हो गए. साल 2009 में उन्होंने समता पार्टी बनाई और लोकसभा चुनाव लड़ा, जिसमें कुशवाहा की पार्टी बुरी तरह हार गई और एक बार फिर कुशवाहा जदयू से मिल गए. इस बार नीतीश कुमार ने उन्हें राज्य सभा का सांसद पद दिलवाया लेकिन फिर  सीटों के बंटवारे को लेकर कुशवाहा जदयू से अलग हो गए.

2013 में उपेन्द्र कुशवाहा ने जदयू का दामन छोड़कर राज्यसभा से भी इस्तीफा दे दिया और अपनी एक नई पार्टी राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी नाम बना ली. 2014 में कुशवाहा ने बीजेपी का दामन थामा और 3 सीटों पर चुनाव लड़े. तीनों ही सीट पर कुशवाहा को जीत हासिल हुई, जिसके बाद उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय का पदभार सौंपा गया. लेकिन 2019 में लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर एक बार फिर मतभेद के चलते कुशवाहा भाजपा से अलग हो गए. जदयू से अलग होने के बाद वह वापिस से जदयू में शामिल हो गए और जदयू के साथ ही अपनी पार्टी का विलय कर दिया.

Source : News Nation Bureau

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