बिहार और उत्तर प्रदेश में प्रचलित छठ पूजा की अलग ही मान्यता है. खासकर बिहार में लगभग हर घर में इसे मनाया जाता है. हालंकि अब केवल देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इसे मनाया जाता है. चार दिन तक चलने वाले इस छठ पूजा को सबसे पवन पर्व माना जाता है. साफ सफाई का खास ध्यान रख जाता है. छठ महापर्व की शुरुआत 28 अक्टूबर से होने जा रही है जो 29 अक्टूबर को खरना, 30 अक्टूबर को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य और अगले दिन सुबह उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने के साथ चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व का समापन होगा.आज हम जानेंगे की आखिर इसकी शुरुआत कैसे हुई और क्यों ये पर्व बेहद खास है.
महान योद्धा सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी, छठ पर्व की शुरुआत
हिंदू मान्यता के मुताबिक कथा प्रचलित है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी. इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था. कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे. सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने. आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है.
द्रोपदी ने भी रखा था छठ व्रत
छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है. कहा जाता है कि जब पांडव सारा राजपाठ जुए में हार गए, तब द्रोपदी ने छठ व्रत रखा था. इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया था. लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है. इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है.
नहाय खाय के साथ होती है इसकी शुरुआत
इस दिन छठ व्रती को नहाय के नियमों का पालन करना होता है. घर में साफ सफाई का खास ध्यान रखा जाता है. इस दिन व्रती किसी नदी या तालाब में स्नान करके छठ व्रत करने का संकल्प लेते हैं. इसके बाद कद्दू चने की सब्जी, चावल, सरसों का साग खाते हैं. इसके अगले दिन खरना किया जाता है.
खरना में पुरे दिन रहती है व्रती भूखी
खरना में व्रती पूरे दिन निराहार रहकर शाम में मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ और चावल की खीर और रोटी का छठी मैया को भोग लगाते हैं. इसी प्रसाद को खाकर व्रती छठ व्रत समाप्त होने तक निराहार रहकर व्रत का पालन करते हैं. खरना के अगले दिन अस्तगामी सूर्य को नदी, तलाब के किनारे अर्घ्य दिया जाता है. इसे पहला अर्घ्य भी कहते हैं.
तलाब या नदी के किनारे दिया जाता है अर्घ्य
अर्घ्य के दौरान नदी तट पर बांस की बनी टोकरी में मौसमी फल, मिठाई और प्रसाद में ठेकुआ, गन्ना, केले, नारियल, खट्टे के तौर पर डाभ नींबू और चावल के लड्डू रखे जाते हैं. इस टोकरी को लोग सिर पर डालकर नदी तट पर लेकर जाते हैं. सिर पर लेकर जाने का उद्देश्य प्रसाद को आदर पूर्वक छठी मैया को भेंट करने से है.
चौथे दिन उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने से होती है इसकी समाप्ति
छठ घाट की तरफ जाती हुए महिलाएं रास्ते में छठी मैया के गीत गाती हैं. इनके हाथों में अगरबत्ती, दीप, जलपात्र होता है. घाट पर पहुंचकर व्रती कमर तक जल में प्रवेश करके सूर्य देव का ध्यान करते हैं. संध्या कल में जब सूर्य अस्त होने लगते हैं तब अलग-अलग बांस और पीतल के बर्तनों में रखे प्रसाद को तीन बार सूर्य की दिशा में दिखाते हुए जल से स्पर्श कराते हैं. ठीक इसी तरह अगले दिन सुबह में उगते सूर्य की दिशा में प्रसाद को दिखाते हुए तीन बार जल से प्रसाद के बर्तन को स्पर्श करवाते हैं. परिवार के लोग प्रसाद पर लोटे से कच्चा दूध अर्पित करते हैं.
HIGHLIGHTS
- . सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी, छठ पर्व की शुरुआत
. खरना में पुरे दिन रहती है व्रती भूखी
. चौथे दिन उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने से होती है समाप्ति
Source : News State Bihar Jharkhand