लोकसभा चुनाव 2024 जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे सियासी गलियारों में गर्माहट लगातार बढ़ती जा रही है. सभी दल व घटक अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं लेकिन जीत किसकी होगी ये तो जनता ही तय करती है. लेकिन किसी भी सीट पर जीत या हार तय करते हैं तो वो हैं आंकड़े. आंकड़े इतिहास होते हैं और इन्ही आंकड़ों के बूते ही कोई नेता अपनी जीत का दावा करता है. ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं अररिया लोकसभा सीट के आंकड़ों के बारे में. हम जातीय समीकरण के बारे में भी आपको जानकारी देंगे.
अररिया में मतदान के दौरान की तस्वीर (फाइल फोटो)
अररिया लोकसभा सीट
अररिया लोकसभा सीट का चुनावी समीकरण MY समीकरण पर आधारित है. हालांकि, यहां का चुनावी संग्राम आसान नहीं है. कोई भी दल या नेता अपनी जीत का दावा पूरे दिल से नहीं कर सकता. 1967 में अररिया लोकसभा सीट अस्तित्व में आई लेकिन किसी भी एक दल का कब्जा यहां नहीं रहा. हर समय यहां के माननीय संसद सदस्य बदलते रहे हैं. 2014 में जब देश में मोदी लहर थी तो भी यहां बीजेपी नहीं जीत पाई थी और आरजेडी को जीत मिली थी वहीं 2019 में आरजेडी की हार हुई थी और बीजेपी के प्रदीप कुमार सिंह को जीत मिली थी. प्रदीप कुमार पहले भी अररिया के सांसद रह चुके हैं.
कब-किसे मिली जीत?
कुल मिलाकर अगर अररिया लोकसभा सीट के इतिहास पर नजर डालें तो 1967 और 1971 यानि दो बार लगातार कांग्रेस के तुलमोहन राम को जीत मिली थी, 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी के महेंद्र नारायण सरदार को जीत मिली थी, 1980 और 1084 में कांग्रेस के डुमर लाल बैठा को माननीय संसद सदस्य बनने का मौका मिला था, 1989, 1991, 1996 में जनता दल के सुखदेव पासवान को जीत मिली थी. इसके अलावा 1998 में रामजीदास रिशिदेव को बीजेपी से जीत मिली थी. 1999 में सुकदेव पासवान को आरडेजी से जीत मिली थी और सुकदेव पासवान ने 2004 में बीजेपी से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 2009 में मौजूदा सांसद प्रदीप कुमार सिंह ने बीजेपी से जीत हासिल की. हालांकि, 2014 में इस सीट पर आरजेडी का एक बार फिर से कब्जा हो गई. 2014 में देश में मोदी लहर होने के बावजूद आरजेडी के तसलीमुद्दीन को जीत मिली थी. हालांकि, 2019 में एक बार फिर से बीजेपी के प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह जीतकर संसद पहुंचे.
प्रदीप कुमार सिंह, बीजेपी सांसद, अररिया (फाइल फोटो)
- 1967 और 1971 यानि दो बार लगातार कांग्रेस के तुलमोहन राम को जीत मिली
- 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी के महेंद्र नारायण सरदार को जीत मिली
- 1980 और 1084 में कांग्रेस के डुमर लाल बैठा को जीत मिली
- 1989, 1991, 1996 में जनता दल के सुखदेव पासवान को जीत थी
- 1998 में रामजीदास रिशिदेव को बीजेपी से जीत मिली थी
- 1999 में सुकदेव पासवान को आरजेडी से जीत मिली थी
- सुकदेव पासवान ने 2004 में बीजेपी से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की
- 2009 में मौजूदा सांसद प्रदीप कुमार सिंह ने बीजेपी से जीत हासिल की
- 2014 में आरजेडी के तसलीमुद्दीन को जीत मिली थी
- 2019 में एक बार फिर से बीजेपी के प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह जीत मिली
कुल मिलाकर अगर एक वाक्य में कहें तो अररिया लोकसभा सीट से तीन बार कांग्रेस को जीत मिली, एक बार जनता पार्टी को तीन पर आम चुनाव और उपचुनाव को मिलाकर जनता दल को जीत मिली. वहीं, आरजेडी को दो बार जीत मिली जबकि बीजेपी को तीन बार जीत मिली. इस हिसाब से देखा जाए तो मौजूदा NDA घटक और INDIA गठबंधन दोनों के बीच कांटे की टक्कर इसबार देखने को मिल सकती है.
विधानसभा चुनाव के मामले में NDA-INDIA बराबरी पर
अररिया में कुल 6 विधानसभा सीट हैं. जिनमें नरपतगंज, रानीगंज, फरबिसगंज, अररिया, जोकीहाट और सिक्ती शामिल है. इनमें नरपतगंज, फरबिसगंज, और सिक्ती विधानसभा सीट पर बीजेपी को जीत मिली जबकि रानीगंज सीट पर जेडीयू, अररिया सीट पर कांग्रेस और जोकीहाट सीट से आरजेडी को जीत मिली. ऐसे में अगर लड़ाई NDA बनाम INDIA की होती है तो दोनों घटक एक-दूसरे को कड़ी टक्कर देने में पूरी तरह से सक्षम है.
तस्वीर: प्रतीकात्मक तस्वीर
NOTA की भी भूमिका अहम
वैसे तो जनप्रतिनिधि सभी वोटों पर अपना दावा करते हैं लेकिन खेल बिगाड़ते हैं वोटकटवा नेता. वोटकटवा नेता या पार्टी के जीत की रेस में शामिल होने वाले प्रत्याशी अपने साथ लेने का प्रयास करते हैं और उन्हें कैसे भी करके चुनाव लड़ने से रोकते हैं. इसके लिए साम, दाम, दंड और भेद सारे पैतरे जीतने वाला प्रत्याशी अपनाने के लिए तैयार रहता है. इन सबके बीच अगर किसी पर जनप्रतिनिधियों का ध्यान नहीं जाता तो वो है NOTA पर. 2014 आम चुनाव, 2018 By Election और 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में NOTA की भी बड़ी भूमिका रही है. 2014 में 16,608 वोट NOTA के पक्ष में पड़े, 2018 By Election में 17,607 वोट और 2019 में 20,618 वोट NOTA के पक्ष में पड़े जो कि कई पार्टियों को मिले वोट से कहीं ज्यादा थे.
2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे
2014 लोकसभा चुनाव में देश में मोदी लहर थी लेकिन अररिया में अलग ही लहर थी. मोदी लहर होने के बाद भी अररिया लोकसभा सीट पर बीजेपी की करारी हार हुई थी. बीजेपी ने मौजूदा सांसद प्रदीप कुमार सिंह को प्रत्याशी बनाया था और आरजेडी ने तस्लीमुद्दीन को अपना प्रत्याशी बनाया था. आरजेडी प्रत्याशी तस्लीमुद्दीन को विजय मिली थी. तस्लीमुद्दीन को 4,07,978 वोट मिले थे और बीजेपी प्रत्याशी प्रदीप कुमार को 2,61,474 वोट मिले थे और JDU के प्रत्याशी विजय कुमार मंडल को 2,21,769 वोट मिले थे. यानि कि विजयी प्रत्याशी और नंबर दो पर आए प्रत्याशी के बीच जीत का मार्जिन लगभग दो गुना का था.
तस्वीर: साभार विकिपीडिया
2018 By Election में कमजोर होने के बावजूद RJD को मिली जीत
2018 के By Election में एक बार फिर से बीजेपी ने अपने हारे हुए प्रत्य़ाशी प्रदीप कुमार सिंह पर भरोसा जताया. वहीं, RJD ने सरफराज आलम को अपना प्रत्याशी बनाया. बीजेपी ने 2014 में मिली हार से सबक लिया और पूरा दमखम लगा दिया लेकिन इस बार भी बीजेपी की जीत नहीं हुई लेकिन बीजेपी ने अपनी हार का फासला जरूर कम कर लिया था. 2018 के By Election में RJD प्रत्याशी सरफराज आलम को 5,09,334 वोट मिले जबकि बीजेपी प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह को 4,47,546 वोट मिले यानि कि बीजेपी ने इस बार काफी बढ़त बना ली थी. यहां ये भी कहना सही होगा कि अगर JDU और कांग्रेस By Election में चुनाव लड़ती तो निश्चित तौर पर RJD के वोट्स में और गिरावट देखने को मिलती और बीजेपी को आसानी से जीत मिल जाती. कांग्रेस और JDU द्वारा उपचुनाव नहीं लड़ने के कारण ही RJD को जीत मिली थी, अगर ऐसा कहा जाए तो बिल्कुल भी बेमानी नहीं होगी.
तस्वीर: साभार विकिपीडिया
2019 में खिला 'कमल'
2019 में एक बार फिर से अपने हारे हुए प्रत्याशी प्रदीप सिंह पर बीजेपी ने दांव लगाया और इस बार प्रदीप सिंह ने बाजी मार ली और दूसरी बार अररिया सीट से लोकसभा पहुंचे. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 618,434 वोट मिले जबकि RJD को 4,81,193 वोट मिले. आरजेडी की तरफ से 2019 में भी सरफराज को ही प्रत्याशी बनाया था.
तस्वीर: साभार विकिपीडिया
अररिया लोकसभा सीट की बात करें तो 1998 से 2019 तक हुए चुनाव में लड़ाई RJD बनाम BJP रही है. हालांकि, ज्यादा समय तक बीजेपी ने ही इस सीट से संसद में प्रतिनिधित्व किया.
अररिया के सामाजिक समीकरण
'MY' वोटर्स की वजह से यहां आरजेडी को जीत मिलती रही है. हालांकि, इस बार 'MY' समीकरण का कितना असर देखने को मिलेगा इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि MY समीकरण होने के बाद भी बीजेपी के ही प्रदीप सिंह इस सीट से तीन बार संसद पहुंच चुके हैं. अगर अररिया सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां 44 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं, 56 फीसदी हिंदू वोटर हैं. अगर अकेले Y कि बात करें तो यहां 15 फीसदी यादव हैं, वहीं, पिछड़ा, अतिपिछड़ा व महादलित को वोट में हिस्सेदारी 28 फीसदी की है. इसके अलावा 13 फीसदी सवर्ण वोटर अररिया लोकसभा सीट में हैं.
अररिया की 2023 में अनुमानित आबादी
अगर अररिया की 2023 में अनुमानित आबादी की बात करें तो हिंदु 1,967,047, मुस्लिम 1,490,466, ईसाई 5,081, सिख 458, बौद्ध 231, जैन 2,358, अघोषित 4,882, व अन्य 78 है. यानि अररिया में 56.68% हिंदू आबादी है और 42.95% मुस्लिम आबादी है.
मतदाताओं की स्थिति (2019 के आंकडों के मुताबिक)
कुल मतदाताओं की संख्या : 18,01,185
कुल पुरुष मतदाता : 9,48,077
महिला मतदाता : 8,53,045
थर्ड जेंडर : 1,723
HIGHLIGHTS
- फिलहाल बीजेपी से प्रदीप कुमार सिंह हैं सांसद
- प्रदीप कुमार सिंह का लगातार बढ़ता गया कद
- हार के बाद भी BJP ने लगातार प्रदीप सिंह पर बनाए रखा भरोसा
- आरजेडी के जबड़े से प्रदीप कुमार सिंह ने छीनी जीत
- RJD और BJP के बीच होता रहा है मुकाबला
Source : Shailendra Kumar Shukla