ओडिशा के बालासोर में हुए दर्दनाक रेल हादसे की तस्वीर ना जाने कब तक हमारे जहन में रहेगी. टुकड़ों में बंटी ट्रेन, लाशों का ढेर, लोगों की चीख-पुकार और लाशों के बीच अपनों को खोजती आंखों का मंजर देश कभी भूल नहीं पाएगा. इससे भी भयानक तस्वीर देश ने देखी है. बिहार में हुए रेल हादसे का वो दिन जिसे देश के इतिहास का काला पन्ना कहा जाता है. 6 जून 1981 को बिहार में देश का अब तक का सबसे बड़ा रेल हादसा हुआ था. इस हादसे में पैसेंजर ट्रेन की सात बोगियां बागमती नदी में समा गई थी, जिससे सैकड़ों लोगों की मौत हो गई. कई का तो आज तक पता नहीं चल सका, लेकिन आज तक ये रेल हादसा अपने आप में एक अनसुलझा रहस्य बनकर रह गया है.
भारत के इतिहास का काला दिन
दरअसल 6 जून 1981 में 416 डाउन पैसेंजर ट्रेन एक मात्र ऐसी ट्रेन थी, जो खगड़िया से सहरसा तक का सफर तय करती थी. ट्रेन में काफी भीड़ थी. लगभग हर बोगी लोगों से खचाखच भरी हुई थी. जब ट्रेन बागमती नदी के पास से गुजर रही थी तब वहां मौसम खराब था. आंधी और बारिश हो रही थी. ट्रेन ने बदला स्टेशन पार किया तब तक भी सब ठीक था. किसी को अंदाजा नहीं था कि चंद दूरी पर ही मौत उनका इंतजार कर रही है. ट्रेन को बागमती नदी पर बने पुल संख्या 51 से गुजर रही थी, लेकिन तभी ड्राइवर ने इमरजेंसी ब्रेक लगा दी. इमरजेंसी ब्रेक लगते ही ट्रेन की 7 बोगियां पटरी से उतर गई और बागमती नदी में जा गिरी.
1 नदी... 7 बोगियां... हजारों जिंदगी
कुछ मिनटों के अंदर ही पूरा मंजर ही बदला गया. चारों ओर भयानकर चीखें सुनाई देने लगी. भारी बारिश होने के चलते नदी में डूबे लोगों को तुरंत मदद भी नहीं मिल पाई. मदद पहुंचने में घंटों का समय लग गया. तब तक सैकड़ों लोग पानी में डुब चुके थे. सरकारी आंकड़ों की मानें तो हादसे में करीब 300 लोगों की मौत हुई थी, लेकिन कहा जाता है कि मरने वालों की संख्या इससे कई ज्यादा थी. क्योंकि हादसे के बाद कई लोग लापता हुए, जिन्हें आज तक नहीं ढूंढा जा सका.
आज भी रहस्य है रेल हादसे की असली वजह
इस भीषण हादसे की वजह आज तक पता नहीं चल पाई है. सैंकड़ों लोगों की जान लेने वाला ये हादसा हुआ कैसे ये आज भी एक सवाल बनकर रह गया है. ट्रेन के ड्राइवर ने अचानक इमरजेंसी ब्रेक क्यों लगाई ये गुत्थी सुलझ नहीं पाई है. हालांकि हादसे की वजह को लेकर कई कहानियां जरूर हैं. हालांकि ये कहानियां सिर्फ स्थानीय लोगों से ही सुनने को मिलती है. असल में किसकी गलती का खामियाजा हजारों लोगों को भुगतना पड़ा ये आज तक पता नहीं चल सका. आज इस हादसे को बीते 42 साल हो गए हैं, लेकिन वो पुल और वो नदी लोगों की आंखों में उस दर्दनाक मंजर को ताजा कर देती है. अभी भी जब इस रास्ते से जब लोग गुजरते हैं तो वो दिन और वो चीखें उनकी रूह कंपा देती है.
रिपोर्ट : मथुरेश
HIGHLIGHTS
- 42 साल पहले दहला था बिहार
- भारत के इतिहास का काला दिन
- मंजर को याद कर सहम जाते हैं लोग
Source : News State Bihar Jharkhand