23 जून (शुक्रवार) को पूरे देश की नजर बिहार की राजधानी पटना पर टिकी थीं. विपक्षी एकजुटता को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई में पटना में महागठबंधन के दिग्गजों का जमावड़ा लगा था. इस जमघट में छह राज्यों के सीएम और 10 राज्यों के पार्टी प्रमुख शामिल हुए थे. इस महामंथन में 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी रथ को रोकना और बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने पर चर्चा हुईं और रणनीति बनीं. विपक्षी दलों का मनाना है कि अगर गैर भाजपा शासित सभी पार्टियां एक मंच पर आती है तो अगामी लोकसभा चुनाव में मोदी नेतृत्व वाली भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंका जा सकता है. चार घंटे तक चली बैठक के बाद विपक्षी नेताओं ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मीटिंग का निष्कर्ष बताया. बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के संयोजक नीतीश कुमार ने प्रेस वार्ता की शुरुआत करते हुए कहा बैठक में सभी नेताओं से मौजूदा राजनीति पर वार्ता हुई और एक साथ चलने पर सहमति बनी. साथ ही गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने पर सभी ने मुहर लगाई.
नीतीश कुमार ने कहा कि कुछ ही दिन बाद सभी पार्टी के नेता शिमला में एक साथ बैठेंगे. इसमें सीट शेयरिंग पर चर्चा की जाएगी और हर राज्य में अलग-अलग एजेंडों पर बातचीत होगी. महागठबंधन की बैठक के बीच ऐसी खबर भी सामने आई कि नीतीश कुमार को विपक्षी दलों का नया मुखिया चुना जाएगा. ऐसे बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या विपक्षी दलों की बैठक के बाद महागठबंधन का निर्माण हो गया. क्या विपक्षी दलों ने अपने नेता का चयन कर लिया, बस उसकी औपचारिक घोषणा 12 जुलाई को शिमला में होने वाली बैठक में की जाएगी.
अगली बैठक में सीट शेयरिंग पर बनेगी रणनीति
इस बैठक में भले ही अभी विपक्षी दलों का चेहरा कौन होगा इसके नाम का ऐलान नहीं किया गया है, लेकिन मीटिंग से इतर जो चर्चा है वह यह कि नीतीश कुमार के कंधे पर विपक्षी दलों को साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है. कयास लगाए जा रहे हैं कि नीतीश कुमार ने देशभर के विपक्षी नेताओं को पटना आने के लिए जिस तरह से आमंत्रण दिया है उससे लग रहा है कि नीतीश कुमार ही संयोजक बन सकते हैं. हालांकि, अभी इसकी किसी भी दलों ने तो पुष्टि की और ना ही औपचारिक घोषणा. दरअसल, ऐसा जानकारों का मानना है कि नीतीश कुमार को विपक्षी एकता का संयोजक बनाया जा सकता है. क्योंकि नीतीश कुमार 8 बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और उनके पास एनडीए के साथ गठबंधन में रहने का भी अच्छा खासा अनुभव है. साथ ही वह केंद्र सरकार में रेल मंत्री भी रह चुके हैं. इसके अलावा सभी विपक्षी दलों के बीच सर्वमान्य, और निर्विवादित चेहरा हैं, जिन पर परिवारवाद और भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है, लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या विपक्षी पार्टियां नीतीश कुमार को अपना नेता मानेंगी. क्या नीतीश की अगुआई में ये सभी नेता चुनाव लड़ने का मन बनाएंगे.
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किसके नेतृत्व में लड़ा जाएगा लोकसभा चुनाव
क्योंकि हाल ही में राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा कर देशभर में एक नई ऊर्जा का संचार किए हैं. पार्टी के कई नेता उन्हें पीएम मैटेरियल के तौर पर देख रहे हैं. वहीं, ममता बनर्जी का भी केंद्र और बीजेपी के साथ हमेशा से 36 का आंकड़ा रहा है. इधर अरविंद केजरीवाल ने अगामी बैठक में हिस्सा लेने के लिए शर्ते लागू कर दी है. ऐसे में यह कहना जल्दीबाजी होगी कि महागठबंधन का निर्माण हो गया है और नीतीश कुमार के नाम पर सभी दलों की रजामंदी हो सकती है.
पटना में विपक्षी दलों की बैठक कितनी कामयाब रही इस पर बिहार के वरिष्ठ पत्रकार और न्यूज नेशन के ब्यूरो चीफ विकास के ओझा कहते हैं कि इस बैठक में नीतीश कुमार एक मामले में तो जरूर सफल हुए हैं कि वह 2024 में बीजेपी को चुनौती देने के लिए देशभर में अलग थलग पड़े विपक्षी दलों को एक छत के नीचे लेकर आ गए हैं. हालांकि, महागठबंधन में हर कोई पीएम कैंडिडेट के रूप में खुद को प्रोजेक्ट करना चाहता है.वह चाहे राहुल गांधी हों, नीतीश कुमार हों या ममता बनर्जी, शरद पवार या फिर अरविंद केजरीवाल ये सभी अंदर ही अंदर प्रधानमंत्री बनने की महत्वकांक्षा रखते हैं.
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नीतीश कुमार को अध्यक्ष बनने की संभावना कम
नीतीश कुमार को संयोजक बनाने पर सहमति तो बन सकती है पर इस बात की संभावना कम ही नजर आती है कि नीतीश कुमार को यूपीए का नेता यानी अध्यक्ष चुना जायेगा.. बंगाल की मौजूदा हालात और सियासी इतिहास को देखते हुए विकास के ओझा बताते हैं कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच भी गठबंधन होना संभव नहीं लग रहा. पंचायत चुनाव में तृणमूल के खिलाफ कांग्रेस प्रदर्शन कर रही है. वहीं, लोकसभा चुनाव के लिए दोनों एक साथ किस समझौते पर आएंगे. हालांकि, महागठबंधन की बैठक में जिस तरह एकजुटता दिखाने की मुहिम शुरू हुई है. उससे यह तो साफ है कि सियासी हवा बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ चलेगी.