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बिहार: खुद मिले दान से गरीबों की मदद कर रहा युवा बौद्ध भिक्षु

युवा बौद्ध भिक्षु (Buddhist monk) अपने सहयोगियों के साथ गया जिले के गांवों में पहुंचकर जरूरतमंदों राशन (Buddhist monk help people) उपलब्ध करा रहे हैं. वे संस्था नमो बुद्धा टेंपल के बैनर तले अब तक कई जरूरतमंद परिवारों के घरों में राशन पहुंचा चुके हैं.

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Karm Raj Mishra
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Buddhist monk

Buddhist monk( Photo Credit : News Nation)

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देश और दुनिया में ज्ञानस्थली के रूप में चर्चित बिहार के गया जिले का बोधगया देश और विदेश को मानव कल्याण का संदेश देता आया है. इस बीच, इस कोरोना काल में यहां के एक युवा बौद्ध भिक्षु गांव-गांव जाकर मानव कल्याण का उदाहरण पेश कर रहे हैं. युवा बौद्ध भिक्षु (Buddhist monk) अपने सहयोगियों के साथ गया जिले के गांवों में पहुंचकर जरूरतमंदों राशन (Buddhist monk help people) उपलब्ध करा रहे हैं. कोरोना की दूसरी लहर में जब काम धंघे बंद हो गए और प्रवासी मजदूर भी गांवों में पहुंच गए और खेतों में काम बंद हो गए तब बौद्ध भिक्षु भंता विशाल इनके लिए मसीहा बनकर गांवों में पहुंचे और उनके लिए राशन की व्यवस्था की.

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भंता विशाल IANS को बताते हैं कि वे अब तक बांसडीह, टीकाबिगहा, खजवती, बतसपुर, सेराजपुर, गौरबिगहा, सेवाबिगहा सहित कई गांवों में तथा विष्णुपद मंदिर और मां मंगलागौरी मंदिर में जरूरतमंदों को राशन बांट चुके है. उन्होंने दावा करते हुए कहा कि संस्था नमो बुद्धा टेंपल के बैनर तले अब तक कई जरूरतमंद परिवारों के घरों में राशन पहुंचा चुके हैं. उन्होंने कहा कि इसके लिए वे जिला प्रशासन से अनुमति भी लेते हैं. 

भंता विशाल बताते हैं कि 15 अप्रैल से प्रारंभ सिलसिला अब तक अनवरत जारी है. रात में पॉकेट तैयार किया जाता है और सुबह निर्धारित गांवों में पहुंचकर घूम-घूमकर जरूरतमंदों को पॉकेट दिया जाता है. उन्होंने दावा करते हुए कहा कि प्रतिदिन 100 पॉकेट राशन बांटे जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि प्रत्येक पॉकेट में पांच किलोग्राम चावल, पांच किलोग्राम आंटा, दो किलोग्राम आलू, दो किलो चीनी, दो किलो दाल, सरसों तेल और एक साबुन होता है. उन्होंने कहा कि सडकों और फुटपाथों पर मिले जरूरमंदों को भी यह पॉकेट उपलब्ध कराया जा रहा है.

भंता बताते हैं कि बचपन से ही गरीबों, लाचारों की सेवा करने में प्रसन्नता का अनुभव होता है . यहीं कारण है कि बचपन में ही घर का त्यागकर वे बोधगया महाबोधि मंदिर पहुंच गए और दीक्षा लेकर भिक्षु बन गए. उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष जब कोरोना की पहली लहर आई थी और देश में लॉकडाउन में दैनिक मजदूरों, रिक्शा चालाकों के घरों में चूल्हे नहीं जल रहे थे, तब वे और उनके साथियों ने गांव-गांव में खाना बनवाकर गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन करवाने का कार्य किया था.

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वे बताते हैं कि मिले दान के पैसे और लोगों के सहयोग से यह कार्य चल रहा है. वे कहते हैं, '' दान के पैसों का इससे अच्छा उपयोग नहीं हो सकता है. कोई भी व्यक्ति दान अपनी तथा लोगों की खुशी के लिए करता है और इस कार्य से कई घरों में खुाशी पहुंच रही है.'' भंता विशाल एक-दो दिनों में पटना के कुछ इलाकों तथा झारखंड के सीमावर्ती गांवों में भी जरूरतमंदों को राशन पहुंचाने की योजना बना चुके हैं. उन्होंने कहा कि मरीजों को ऑक्सीजन सिलेंडर पहुंचाने की भी योजना बनाई गई है.

उन्होंने कहा कि जरूरमंदों की सेवा करना ही उनका मकसद है. उन्होंने कहा कि भविष्य में वे एक विद्यालय और अस्पताल खोलने की योजना पर काम कर रहे हैं, जिसमें गरीब के बच्चे निशुल्क पढ सके और गरीबों का अस्पताल में मुफ्त में इलाज हो सके.

HIGHLIGHTS

  • बौद्ध भिक्षु भंता विशाल कर रहे लोगों के खाने की व्यवस्था
  • रात में खाने के पॉकेट तैयार करते हैं, सुबह बांटते हैं
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