Advertisment

Mumbai: हाईकोर्ट ने सरोगेसी पर सुनाया बड़ा फैसला, स्पर्म या ऐग डोनर का बच्चे पर कोई कानूनी अधिकार नहीं

याचिकाकर्ता के पति का दावा था उसकी साली एक ऐग डोनर है इसलिए उसे इन जुड़वा के बच्चों की बायोलॉजिकल मां होने का कानूनी हक है. लेकिन उसकी पत्नी को कोई अधिकार नहीं है.

author-image
Yashodhan.Sharma
New Update
Bombay HC on surrogacy
Advertisment

महाराष्ट्र में सरोगेसी को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. एचसी ने कहा है कि स्पर्म या ऐग डोनर बच्चे पर कानूनी अधिकार नहीं रखता. इसके तहत मंगलवार (13 अगस्त) को एक 42 वर्षीय महिला को उसकी पांच साल की जुड़वां बेटियों से मिलने का अधिकार दे दिया. बता दें कि याचिकाकर्ता ने कोर्ट में अपील की थी कि उसकी बेटियां पति और ऐग डोनर छोटी बहन के साथ रह रही हैं. याचिकाकर्ता के पति का दावा था उसकी साली एक ऐग डोनर है इसलिए उसे इन जुड़वा के बच्चों की बायोलॉजिकल मां होने का कानूनी हक है. लेकिन उसकी पत्नी को कोई अधिकार नहीं है. हालांकि, जस्टिस मिलिंद जाधव ने इस तर्क को खारिज किया और याचिकाकर्ता को उसकी बेटियों से मिलने का अधिकार दे दिया.

पूरा मामला क्या है

बता दें कि दंपति गर्भधारण नहीं कर सकते थे, जिस वजह से याचिकाकर्ता की छोटी बहन ने कपल को स्वेच्छा से अपने ऐग देने का फैसला किया. इसके बाद एक सरोगेट महिला की मदद से अगस्त 2019 में जुड़वां लड़कियों का जन्म हुआ. अप्रैल 2019 में ऐग डोनर बहन और उसके परिवार का एक्सीडेंट हुआ, जिसमें उसके पति और बेटी की मौत हो गई. 

याचिकाकर्ता अगस्त 2019 से मार्च 2021 तक अपने पति और जुड़वां बेटियों के साथ रहती थी, लेकिन मार्च 2021 में वैवाहिक कलह के बाद पति अपनी पत्नी को बिना बताए बच्चों के साथ दूसरे फ्लैट में रहने चला गया. इस बीच उस व्यक्ति ने यह भी दावा किया था कि उसकी पत्नी की बहन (ऐग डोनर) सड़क दुर्घटना के बाद डिप्रेशन में चली गई.

इसके बाद में जुड़वा बच्चों की देखभाल करने के लिए ऐग डोनर बहन उसके साथ रहने लगी.  फिर याचिकाकर्ता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और स्थानीय अदालत में अर्जी दी कि उसे अपनी बेटियों से मुलाकात का अधिकार मिले. हालांकि लोकल कोर्ट ने सितंबर 2023 में उसका आवेदन खारिज कर दिया था.

छोटी बहन के पास दावा करने का कोई अधिकार नहीं

इसके बाद पीड़िता ने हाई कोर्ट का रुख किया. यहां जस्टिस मिलिंद जाधव की एकल पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की ऐग डोनर छोटी बहन के पास यह दावा करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है कि वह जुड़वां बच्चों की बायोलॉजिकल मां है. 

यह भी पढ़ें: INDIA एलायंस को AIMIM नेता ने दिया बड़ा ऑफर, कहा- बाद में लगेगा झटका

अदालत ने कहा कि छोटी बहन अपनी इच्छा से डोनर बनी और अधिक से अधिक वह जेनेटिक मां बनने के योग्य हो सकती है. इससे अधिक कुछ नहीं. अदालत ने यह भी साफ किया कि नियम के अनुसार, ऐग डोनर और सरोगेट मां को अपने सभी पैरेंटल अधिकार छोड़ने होंगे और इस मामले में याचिकाकर्ता और उसके पति ही जुड़वां बच्चियाों के पैरेंट्स होंगे. इसके साथ ही हाई कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता को हर सप्ताह तीन घंटे के लिए जुड़वां बच्चों से मिलने का अधिकार दे.

maharashtra Surrogacy Bombay High Court
Advertisment
Advertisment