छत्तीसगढ़ में राम वन गमन परिपथ को एक पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जा रहा है. कोरिया से लेकर सुकमा तक रामवनगमन पथ का कण कण राममय होगा. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लॉकडाउन के बीच पर्यटन में तेजी लाने और युवाओं को रोजगार दिलाने का अथक प्रयास किया है, जिसके चलते छत्तीसगढ़ में श्रीराम के वनगमन से जुड़े सभी स्थलों को भव्य रूप से सजाने की तैयारी चल रही है. मुख्यमंत्री बघेल ने जो कार्य योजना तैयार की है उसमें 51 स्थलों का चयन किया गया है, जिसके लिए लगभग 137 करोड़ 75 लाख का बजट तय किया गया है, जहां पहले चरण में 8 स्थलों को विकसित करने के बाद अगले चरण में राम वनगमन पथ के 16 जिलों के शेष 43 स्थलों का प्लान तैयार होगा.
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व्यापक शोध के आधार पर इन स्थलों को राज्य सरकार ने अपनी सूची में शामिल किया है, जिसमें तीर्थ एवं पर्यटन स्थलों के प्रवेश द्वार से लेकर लैंप-पोस्ट और बैंच तक के सौंदर्यीकरणका विशेष ध्यान रखा गया है. श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों को राम वन गमन पथ की यात्रा के दौरान पग-पग पर रामलला के दर्शन होंगे. परिपथ को मुख्य मार्ग सहित उप मार्गां की कुल लम्बाई लगभग 2260 किमी है. इसके किनारे लगाये जाने वाले संकेत को पर तीर्थ स्थलों एवं भगवान श्री राम के वनवास से जुड़ी कथाओं की जानकारी होगी.
चंदखुरी से की गई शुरूआत
रामलला के ननिहाल चंदखुरी का सौंदर्य अब पौराणिक कथाओं के नगरों जैसा ही आकर्षक होगा. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के निकट स्थित इस गांव के प्राचीन कौशल्या मंदिर के मूल स्वरूप को यथावत रखते हुए, पूरे परिसर के सैंदर्यीकरण की रूपरेखा तैयार कर ली गई है. चंदखुरी, जो कि भगवान राम का ननिहाल है, जहाॅं सातवीं सदी में निर्मित माता कौशल्या का प्राचीन मंदिर है. माता कौशल्या मंदिर परिसर के सौंदर्यी करण और विकास के लिए 15 करोड़ 45 लाख रुपए की योजना तैयार की गई है. योजना के मुताबिक, चंदखुरी में मंदिर के सौंदर्यीकरण और परिसर विकास का कार्य दो चरणों में पूरा किया जाएगा. पहले चरण में 6 करोड़ 70 लाख रुपए खर्च किए जाएंगे, जबकि दूसरे चरण में 8 करोड़ 75 लाख रुपए खर्च होगे. योजना के मुताबिक चंदखुरी के पर्यटन-तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया जाना है. इसलिए यहां स्थित प्राचीन कौशल्या माता मंदिर के सौंदर्यीकरण के साथ-साथ नागरिक सुविधाओं का विकास भी किया जाएगा.
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भूमि पूजन के साथ बैंक खोलने का निर्देश
पिछले साल 22 दिसंबर को चंदखुरी स्थित माता कौशल्या मंदिर के सौंदर्यीकरण के लिए भूमि-पूजन किया गया था. वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 29 जुलाई को अपनी पत्नी मुक्तेश्वरी बघेल और परिवार के सदस्यों के साथ चंदखुरी पहुंचकर प्राचीन मंदिर में पूजा-अर्चना की थी. साथ ही परिसर में आंवला, पीपल, अमरूद और करंज आदि के पौधे भी लगाए. मुख्यमंत्री ने इन रौपे गए पौध पर सेरीखेड़ी महिला समूह द्वारा बांस से बनाए जा रहे ट्री-गार्ड को लगवाया. वहीं मुख्यमंत्री ने ग्रामीणों की मांग पर मंदिर के पास से बाईपास सड़क निर्माण की भी स्वीकृत प्रदान की है. साथ ही चंदखुरी में राष्ट्रीय बैंक की शाखा खोलने का निर्देश भी दिया है.
धनुष व राम पताका आकर्षण का केंद्र
राम वन गमन पथ पर पहले चरण में जिन 8 स्थानों का चयन किया गया हैं, उन सभी में आकर्षक लैंडस्केप तैयार किया जाएगा. सभी स्थानों पर भव्य द्वार बनाए जाएंगे, जिनके शीर्ष पर भगवान राम का धनुष और उसकी प्रत्यंचा पर रखा हुआ तीर होगा. द्वार पर जय श्रीराम के घोष के साथ राम-पताका लहरा रही होगी. एक अन्य डिजाइन में लैंप पोस्ट के शीर्ष पर भी तीर-धनुष स्थापित किया जाएगा.
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पहले चरण में इन 8 स्थानों का होगा विकास
चंदखुरीः चंदखुरी को भगवान श्री राम की माता कौशल्या की जन्मस्थली की मान्यता प्राप्त है. रायपुर जिले के 126 तालाबों वालें चंदखुरी गांव में जलसेन तालाब के बीच में माता कौशल्या का मंदिर है जो दुनिया में माता कौशल्या का एकमात्र मंदिर है. माता कौशल्या के जन्म स्थल के कारण ही इसे रामलला का ननिहाल कहा जाता है.
सीतामढ़ी हर चैका: कोरिया जिले में है. राम के वनवास काल का पहला पड़ाव यही माना जाता है. यह नदी के किनारे स्थित है, जहां गुफाओं में 17 कक्ष हैं. इसे सीता की रसोई के नाम से भी जाना जाता है.
रामगढ़ की पहाड़ीः सरगुजा जिले में रामगढ़ की पहाड़ी में तीन कक्षाओं वाली सीता बेंगरा गुफा है. देश की सबसे पुरानी नाट्यशाला कहा जाता है. कहा जाता है वनवास काल में राम यहां पहुंचे थे, यह सीता का कमरा था. महाकवि कालिदास ने अपनी विश्वविख्यात काव्य मेघदूतम की
रचना यहीं की थी.
शिवरी नारायणः जांजगीर चांपा जिले के इस स्थान पर रुककर भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे. यहां जोकि, महानदी और शिवनाथ नदी का संगम है. यहां नर-नारायण और शबरी का मंदिर भी है. मंदिर के पास ऐसा वटवृक्ष है, जिसके पत्ते दाने के आकार के हैं.
तुरतुरियाः बलौदाबाजार भाटापारा जिले के इस स्थान को लेकर जनश्रुति है कि महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यहीं था. तुरतुरिया ही लव-कुश की जन्मस्थली थी. बलभद्री नाले का पानी चट्टानों के बीच से निकलता है जिससे तुरतुर की ध्वनि निकलने के कारण इसका तुरतुरिया नाम पड़.
राजिमः यह देश भर में छत्तीसगढ़ के प्रयाग के रूप में प्रतिष्ठित है जहां सोंढुर, पैरी और महानदी का संगम है. कहा जाता है कि वनवास काल में राम ने इस स्थान पर अपने कुलदेवता महादेव की पूजा की थी, इसलिए यहां कुलेश्वर महाराज का मंदिर है. यहां मेला भी लगता है.
सिहावाः धमतरी जिले के सिहावा की विभिन्न् पहाड़ियों में मुचकुंद आश्रम, अगस्त्य आश्रम, अंगिरा आश्रम, श्रृंगि ऋषि, कंकर ऋषि आश्रम, शरभंग ऋषि आश्रम एवं गौतम ऋषि आश्रम आदि ऋषियों का आश्रम है. श्रीराम ने दण्डकारण्य के आश्रम में ऋषियों से भेंट कर कुछ समय व्यतीत किया था.
जगदलपुरः बस्तर जिले का यह मुख्यालय है. चारों और वन से घिरा हुआ है. कहा जाता है कि वनवास काल में राम जगदलपुर क्षेत्र से गुजरे थे, क्योंकि यहां से चित्रकोट का रास्ता जाता है. पाण्डुओं के वंशज काकतीय राजा ने जगदलपुर को अपनी अंतिम राजधानी बनाया था.
दूसरे चरण में इनका होगा विकास
कोरियाः सीतामढ़ी घाघरा, को टाडोल, सीमामढ़ी छतौड़ा (सिद्ध बाबा आश्रम), देवसील, रामगढ़ (सोनहट), अमृतधारा
सरगुजाः देवगढ़, महेशपुर, बंदरकोट (अंबिकापुर से दरिमा मार्ग), मैनपाट, मंगरेलगढ़, पम्पापुर
जशपुरः किलकिला (बिलद्वार गुफा), सारासोर, रकसगण्डा
जांजगीर चांपा: चंद्रपुर, खरौद, जांजगीर
बिलासपुरः मल्हार
बलौदाबाजार भाटापारा: धमनी, पलारी, नारायणपुर (कसडोल)
महासमुंदः सिरपुर
रायपुरः आरंग, चंपारण्य
गरियाबंदः फिंगेश्वर
धमतरीः मधुबन (राकाडीह), अतरमरा (अतरपुर), सीतानदी
कांकेरः कांकेर (कंक ऋषि आश्रम)
कोंडागांवः गढ़धनोरा (केशकाल), जटायुशीला (फरसगांव)
नारायणपुरः नारायणपुर (रक्सा डोंगरी), छोटे डोंगर
दंतेवाड़ाः बारसूर, दंतेवाड़ा, गीदम
बस्तरः चित्रकोट, नारायणपाल, तीरथगढ़
सुकमा: रामाराम, इंजरम, कोंटा
इन स्थानों पर मिलेंगी यह सुविधाएं
राम वन गमन पथ के स्थलों में प्रवेश द्वार, इंटरप्रिटेशन सेंटर, कैफिटेरिया, दुकानों में एकरूपता, पर्यटकों को जानकारी देने के लिए साइन बोर्ड, इंटरप्रिटेशन सेंटर में स्थल विशेष के राम कथा से संबंध का तो उल्लेख होगा ही बल्कि राम वन गमन पथ के लिए प्रतीक चिन्ह (लोगों) भी तैयार किया जाएगा. इसके अलावा यज्ञशाला, योगा, मेडिटेशन सेंटर, प्रवचन केंद्र, धर्मशाला का निर्माण होगा. सिरपुर को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा. वन विभाग को दी पौधरोपण की जिम्मेदारी राम वन गमन के मार्ग के दोनों किनारों पर डेढ़ लाख से अधिक पौधेरोपित करने की जिम्मेदारी वन विभाग को दी गई है. मूल परियोजना पर काम शुरु होने से पहले ही विभाग ने अपना 90 प्रतिशत काम पूरा भी कर लिया है. पूरे मार्ग पर पीपल, बरगद, आम, हर्रा, बेहड़ा, जामुन, अर्जुन, खम्हार, आंवला, शिशु, करंज, नीम आदि के पौधों का रोपण किया जा रहै.
Source : News Nation Bureau