गैर भाजपा शासित राज्यों में अब बीजेपी की राजनीति का तरीका बदलने जा रहा है. खासकर उन राज्यों में जहां, पार्टी की सत्ता नहीं है और जमीनी स्तर पर संगठन कमजोर है. ऐसा ही एक राज्य छत्तीसगढ़ है. जहां बीजेपी 2018 के बाद से ही सत्ता में वापसी की कोशिश में जुटी है, लेकिन उसे वैसी कामयाबी नहीं मिल पा रही है, जैसा कि अन्य राज्यों में मिल रही है. 2018 के बाद जितने भी उपचुनाव हुए हैं. उनमें भाजपा की करारी हार हुई. यहां तक कि निकाय चुनावों में भी कांग्रेस ने क्लीन स्वीप किया है. हालांकि पिछले एक साल से बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व छत्तीसगढ़ को लेकर सक्रिय हुआ है, जिसके बाद से पार्टी में हलचल तेज हो गई है.
किसानों और ग्रामीणों में लोकप्रिय हैं बघेल
मौजूदा स्थिति में चूंकि बीजेपी की टक्कर भूपेश बघेल से है. बघेल की किसानों और ग्रामीणों के बीच अच्छी पकड़ मानी जाती है. शायद इसलिए भाजपा को जमीनी पैठ बढ़ाने में दिक्कत हो रही है. ऐसे में अब बीजेपी मोदी के मंत्र पर आगे बढ़ रही है और प्रदेश भर में संघर्ष यात्रा की जगह स्नेह यात्रा निकालने जा रही है. हालांकि, दिक्कत ये है कि यात्रा अभी शुरू भी नहीं हुई है , लेकिन इस पर अभी से सियासी आंच तेज हो गई है.
ये भी पढ़ेंः महाराष्ट्र से आई बड़ी खबर, शिंदे और उद्धव मिलकर भाजपा संग चलाएंगे सरकार !
बघेल ने जूते और दुशाला के साथ स्नेह की सियासत में की एंट्री
बघेल ने जूते और दुशाला के साथ स्नेह की सियासत में एंट्री की है, जिसके बाद अब बघेल के बयान पर सियासी संग्राम छिड़ गया है. भूपेश बघेल ने सवाल उठाए हैं कि बांटने की सियासत करने वाले स्नेह यात्रा कैसे निकालेंगे? वैसे कहा तो ये भी जा रहा है कि बीजेपी जिस ट्रैक पर प्रदेश की सियासत को ले जाना चाहती है, सूबे की राजनीतिक हवा भी उधर बहती दिख रही है, क्योंकि स्नेह की सियासत सुलगेगी तो ध्रुवीकरण की स्थिति बनेगी और उस स्थिति में बीजेपी को फायदा हो सकता है. हालांकि, बीजेपी के सामने कुछ चुनौतियां भी हैं, जिससे उसे पार पाना होगा. मसलन पार्टी अभी तक किसी जन सरोकार के मुद्दे पर कोई बड़ा आंदोलन नहीं कर पाई है. ऐसे में सिर्फ स्नेह यात्रा से जमीनी पैठ बढ़ाना एक चुनौती भरा काम है.
HIGHLIGHTS
- 18 में सत्ता गंवाने के बाद से पस्त ही भाजपा की हालत
- सभी उपचुनाव व निकायों में कांग्रेस ने किया क्लीन स्वीप
Source : Vikash Kumar Pandey