छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा विभाग से जुड़े संशोधन विधेयकों की मंजूरी को लेकर राज्य सरकार और राजभवन आमने सामने हैं. राज्य सरकार के मंत्रियों ने गुरुवार को राज्यपाल अनुसुईया उइके से मिलकर विधेयकों को जल्द मंजूरी देने का आग्रह किया. वहीं राज्यपाल ने कहा है कि वह पहले कानूनी प्रक्रिया को समझना चाहती हैं. छत्तीसगढ़ में विधानसभा के बीते बजट सत्र में राज्य सरकार ने उच्च शिक्षा विभाग से संबंधित संशोधन विधेयकों को पारित करवाया था. इन विधेयकों में विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति समेत अन्य संशोधन किए गए थे. राज्य सरकार चाहती है कि राज्यपाल इन विधेयकों को जल्द अनुमति दें.
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राज्य के विधि और विधायी कार्य मंत्री रविंद्र चौबे ने गुरुवार को बताया कि मंत्रिमंडल के चार सदस्यों ने राज्यपाल से मुलाकात कर छत्तीसगढ़ के विकास के संबंध में चर्चा की. चौबे ने बताया कि राज्य सरकार ने बीते बजट सत्र में विश्वविद्यालयों के संबंध में कुछ संशोधन विधेयक सदन में पारित किए थे. लेकिन राजभवन के दफ्तर में वह आगे नहीं बढ़ पाया था. मंत्रिमंडल के सदस्य आग्रह करने गए थे कि विश्वविद्यालयों में कक्षाएं नहीं लग रही हैं लेकिन कही कुलपति के चयन का मामला है, कहीं अनुदान का मामला है और भी कई अन्य विषय है वह लंबित है. इसलिए उन विधेयकों में राज्यपाल की स्वीकृति आवश्यक है.
मंत्री ने बताया कि मंत्रिमंडल के सदस्य उन सभी विधेयकों पर राज्यपाल से आग्रह करने गए थे कि लंबित विधेयकों पर वह अपनी स्वीकृति प्रदान करें. इधर राज्यपाल उइके ने संवाददाताओं से चर्चा के दौरान कहा कि बृहस्पतिवार को मंत्री रविंद्र चौबे, वन मंत्री मोहम्मद अकबर, उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल और नगरीय प्रशासन मंत्री शिव डहरिया उनसे मिलने आए थे. मंत्रिमंडल के सदस्यों ने विधेयकों के बारे में उनसे आग्रह किया.
उइके ने कहा कि विधानसभा में उच्च शिक्षा विभाग से संबंधित संशोधन विधेयक लाए गए थे. इनमें विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति और उनके कार्यकाल समेत अन्य प्रावधानों के बारे में उल्लेख था.
उन्होंने बताया कि जब संशोधन विधेयक लाए गए तब उन्होंने राज्य सरकार से ऐसे अन्य राज्यों में जहां इस तरह के प्रावधान किए गए हैं वहां के बारे में जानकारी मांगी थी. साथ ही यह भी पूछा था कि इस तरह का प्रावधान लाने का औचित्य क्या है, क्या विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिशा निर्देशों का पालन किया गया है. यह जानकारी सरकार से अप्रैल माह में मांगी गई थी जो अब कुछ दिनों पहले ही मिली है.
उइके ने कहा कि कुलपति की नियुक्ति को लेकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का दिशा निर्देश है. इन दिशा निर्देशों का उलंघन किया जाता है तब अनुदान नहीं देने की भी बात कही गई है इसलिए इस संबंध में वह यूजीसी से भी मार्गदर्शन लेंगी. चुंकि यह शिक्षा से ज़ुड़ा हुआ है इसलिए वह नियमों की जानकारी लेंगी. वह राष्ट्रपति तक भी इस संबंध में राय ले सकती हैं.
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राज्यपाल ने कहा कि उनका इरादा फाइलों को रोकना नहीं है. इसकी कानूनी प्रक्रिया को समझने की भी जरूरत है. वहीं इसमें उनके तरफ से देरी नहीं हुई है क्योंकि उन्होंने राज्य सरकार से अप्रैल में इस संबंध में जानकारी मांगी थी जिसका जवाब कुछ ही दिनों पहले आया है. उन्होंने कहा कि जवाब से उन्हें पूरी तरह से संतुष्टि नहीं हुई है. इसलिए वह सभी पहलू को देखने के बाद ही इस पर निर्णय लेंगी और वह कानूनी प्रक्रिया को समझकर ही इस संबंध में फैसला करेंगी.
राज्य में कानून के जानकारों का कहना है कि राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति को ले कर राज्य सरकार ने राज्यपाल जो कुलाधिपति होते हैं उनका अधिकार कम करने की कोशिश की है. वहीं राज्य के पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पृष्ठभूमि वाले प्रोफेसर बलदेव भाई शर्मा की नियुक्ति के बाद कांग्रेस की सरकार और राजभवन के मध्य इस मामले को लेकर टकराहट की स्थिति है.