छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने लॉकडाउन के दौरान राजनांदगांव जिले की एक महिला चिकित्सक के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया है. अदालत ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के अंतर्गत किए गए अपराध के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के अंतर्गत कोई प्रथम सूचना प्रतिवेदन पंजीबद्ध नहीं किया जा सकता है. उच्च न्यायालय के अधिवक्ता शाल्विक तिवारी ने बताया कि राजनांदगांव जिले के अम्बागढ़ चौकी की निवासी मेडिकल ग्रेजुएट डॉक्टर अपूर्वा घिया (25) लॉकडाउन के दौरान सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए दिल्ली में थी. परिवहन सेवाएं बहाल होने के बाद अपूर्वा ने ई-पास के लिए आवेदन किया और सात जून को दिल्ली से राजनांदगांव और अगले दिन अपने घर अम्बागढ़ चौकी पहुंची. तिवारी ने बताया कि अम्बागढ़ चौकी पहुंचकर अपूर्वा ने नियमानुसार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में अपना मेडिकल चेकअप कराया और 10 जून को मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी को अपने पहुंचने की जानकारी दी लेकिन अम्बागढ़ चौकी नगर पंचायत के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) को इसकी जानकारी नहीं दे सकी.
सीएमओ को इसकी जानकारी मिलने पर उन्होंने अपूर्वा और उनके परिवार के अन्य सदस्यों की कोविड-19 की जांच कराई. अपूर्वा 16 जून को कोरोना वायरस से संक्रमित पाई गई. वहीं उनके पिता की दुकान के दो कर्मचारी भी कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए. अधिवक्ता ने बताया कि इसके बाद सीएमओ की शिकायत पर अम्बागढ़ चौकी थाने में अपूर्वा के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा धारा 188 के तहत 18 जून को प्राथमिकी दर्ज की गई. उन्होंने बताया कि अपूर्वा ने इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी और इसे रद्द करने का आग्रह किया. तिवारी ने बताया कि उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति संजय के अग्रवाल की एकल पीठ के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से मामले की सुनवाई हुई. याचिकाकर्ता और राज्य सरकार तथा अन्य के अधिवक्ताओं को सुनने के बाद बीते 27 अगस्त को उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. न्यायालय ने सात अक्टूबर को इस मामले में फैसला सुनाते हुए अपूर्वा खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया.
Source : Bhasha