अशिक्षितों से बेहतर शिक्षा का महत्व कौन जान सकता है. खुद न पढ़ पाने का मलाल शिक्षा की ललक बन जब उभरी तो पदमूर के निवासियों ने अपने बच्चों के लिए ज्ञान की छत खड़ी कर दी. इस गांव के बच्चों को पढ़ने के लिए चेरपाल पोटा केबिन जाना पड़ता था या फिर आसपास के आश्रम में जाना पड़ता था.
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असुविधा की वजह से कुछ तो स्कूल ही नहीं जा पाते थे. लिहाजा ग्रामीणों ने शिक्षा विभाग के लोगों से सम्पर्क कर गांव में स्कूल खोलने का केवल आग्रह ही नहीं किया बल्कि स्कूल भवन का इंतजाम होने तक एक झोपड़ी खुद ही बना दी. 24 जुलाई को बीईओ एवं समीप के स्कूलों के शिक्षकों और ग्रामीणों की मौजूदगी में इसका उद्घाटन किया गया.
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लोगों ने बताया कि स्कूल नहीं होने से उन्हें बच्चों को आठ किमी दूर चेरपाल भेजना पड़ता था. रास्ते में कोटेर नदी पड़ती है जो बारिश में लबालब हो जाती है. इससे वहां जाना मुश्किल हो जाता है. इस गांव में कुल आठ पारा हैं. पहले दिन ही पदमूर के स्कूल में 52 बच्चों का दाखिला हुआ. बताया गया कि अभी दो टोलों के बच्चे नहीं आए हैं. जिनके आने से विद्यार्थियों की संख्या करीब 65 तक हो जाएगी.
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इस अवसर पर बच्चों को चॉकलेट बांटे गए और लेखन सामग्री के अलावा किताबें दी गईं. खेलने के लिए दो फुटबॉल भी दिए गए. स्कूल में सहायक शिक्षक की पदस्थापना भी कर दी गई है. मध्याह्न भोजन पहले ही दिन से शुरू कर दिया गया है और दो रसोइयों को पदस्थ कर दिया गया है. स्थानीय विधायक व सीईओ जिला पंचायत का भी विशेष सहयोग मिला.
Source : News Nation Bureau