नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण नियमों के उल्लंघन को लेकर हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल)-विशाख रिफाइनरी पर 18.35 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. विशाखा पवन प्रजा कर्मिका संघम द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधिकरण की दक्षिणी क्षेत्र की खंडपीठ जिसमें न्यायमूर्ति पुष्पा सत्यनारायण और विशेषज्ञ सदस्य सैबल दासगुप्ता शामिल हैं, उन्होंने गुरुवार के आदेश में कहा कि संयुक्त समिति की सिफारिशों में दम है कि एचपीसीएल 2011 और 2020 के बीच लंबी अवधि के बावजूद प्रभावी कदम उठाने में विफल रही.
पीठ ने कहा, एचपीसीएल एक सीपीएसई उद्योग होने के नाते सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं को पर्यावरण मानकों के अनुपालन की एक आदर्श इकाई होनी चाहिए जो दुर्भाग्य से इस मामले में एक दशक से अधिक समय से नहीं थी. तदनुसार, ट्रिब्यूनल ने एचपीसीएल को निर्देश दिया कि वह सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम होने के नाते अपनी जानबूझकर लापरवाही के लिए 8,35,20,000 रुपये और 10,00,00,000 रुपये का पर्यावरणीय मुआवजा जमा करे, जिसे पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य की बहाली पर खर्च किया जा सकता है.
ग्रीन कोर्ट ने संयुक्त समिति को नियमित निगरानी सुनिश्चित करने और 15 मई, 2023 तक निरीक्षण के बाद एक स्वतंत्र अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया. याचिका में कहा गया है कि एमओईएफ और सीसी अनुपालन रिपोर्ट में यूनिट में उल्लंघन पाया गया है कि यूनिट में 33 प्रतिशत की अनिवार्य ग्रीन बेल्ट विकसित नहीं की गई थी. निगरानी रिपोर्ट के निष्कर्ष में यह भी कहा गया है कि इकाई की क्षमता को मूल क्षमता के 70 प्रतिशत तक कम किया जाना चाहिए.
यह भी आरोप लगाया गया है कि एचपीसीएल संयंत्र से निकलने वाली दुगर्ंध निवासियों, विशेषकर महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के लिए मतली, सांस फूलना, फेफड़े, हृदय, आंख और त्वचा रोग पैदा करती है. पिछले साल 25 मई को कंपनी की क्रूड डिस्टिलेशन यूनिट-3 में आग लग गई थी. यह कोई रहस्य नहीं है कि एक तेल रिफाइनरी या पेट्रोलियम उत्पाद उद्योग एक खतरनाक काम है. इन उद्योगों में गंभीर जोखिमों में से एक आग और विस्फोट की संभावना है.
आदेश में कहा गया है, इसलिए आग के जोखिम का आकलन करना महत्वपूर्ण है. प्रबंधन ने कई नियम और प्रथाएं भी लागू कीं और कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया कि खतरों को कैसे पहचाना जाए.
Source : IANS