आम आदमी पार्टी के कैंपेन सॉन्ग ‘जेल का जवाब वोट से’ को बैन कराने की साजिश विफल हो गई है. इसे लेकर आप का कहना है, आखिरकार सत्य की जीत हुई है और चुनाव आयोग ने बिना किसी बदलाव के पार्टी कैंपेन सॉन्ग ‘जेल का जवाब वोट से’ को अधिकारिक रूप से मंजूरी दे दी है. इस जानकारी को साझा करते हुए सोमवार को पार्टी मुख्यालय में ‘आप’ के वरिष्ठ नेता दिलीप पांडे ने कहा कि हम केंद्र के दबाव में नहीं झुके. इसका परिणाम यह हुआ कि चुनाव आयोग को हमारे कैंपेन सॉन्ग को इजाजत दे दी है. हमने आयोग की किसी भी आपत्ति को स्वीकार नहीं किया है. वहीं आपत्ति पर सवाल भी उठाए. 27 अप्रैल को चुनाव आयोग ने ‘आप’ के कैंपेन सॉन्ग पर रोक लगाकर मान लिया कि केंद्र सरकार तानाशाही है.
'संवैधानिक संस्थाओं का दुरूपयोग करने में लगी केंद्र सरकार'
‘आप’ के वरिष्ठ नेता एवं विधायक दिलीप पांडे के अनुसार, केंद्र सरकार बदगुमानी में सभी संवैधानिक संस्थाओं का दुरूपयोग करने में लगी है. वह देश के लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या कर रही है. संविधान को मिट्टी में मिलाने का काम कर रही है. उन्होंने कहा कि जब नाश मनुष्य पर छाता है तो पहले विवेक मर जाता है. इसका नतीजा यह हुआ कि 27 अप्रैल को चुनाव आयुक्त ने एक पत्र लिखकर आम आदमी पार्टी के कैंपेन सॉन्ग को बैन कर दिया. इस पर कई आपत्तियां बता दीं. चुनाव आयोग की आपत्तियां बे-सिर पैर की हैं. ये आपत्तियां चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल उठा दिए हैं.
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दिलीप पांडे ने बताया कि चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के कैंपेन सॉन्ग पर आपत्ति जताई है कि उसमें जिस जेल का जवाब वोट से देने की बात कही जा रही है, वो ठीक नहीं है. जबकि हम गाने में कह रहे हैं कि विपक्षी दलों के नेताओं को जेल भेजने की राजनीति का हम अपनी वोट की ताकत से जवाब देंगे. इससे ज्यादा लोकतांत्रिक बात और क्या होगी? हमें हंसी आती है, जब चुनाव आयोग इसे न्यापालिका पर आक्रमण जैसा बताता है.
उन्होंने कहा कि चुनाव आयुक्त ने कहा है कि गाने में तानाशाही पार्टी को हम चोट देंगे, कहना ठीक नहीं है, क्योंकि इससे हिंसा को बढ़ावा मिलेगा. आयोग की हिंदी इतनी कमजोर है कि वो चोट को केवल हिंसा से जोड़कर देख रही है. चोट दिल, दिमाग, अहंकार, कुशासन और गुंडागर्दी पर भी लगती है. चोट के कई सारे संदर्भ हैं, लेकिन आयोग केवल इतना ही समझ पाया. साथ ही आयोग ने इसे सत्ताधारी पार्टी से जोड़ दिया.
बीजेपी का लोकतंत्र में विश्वास नहीं: दिलीप पांडे
दिलीप पांडे ने कहा कि इस देश के संविधान ने हमें यही सिखाया है कि अगर आप किसी पार्टी को सत्ता से बाहर करना चाहते हैं तो आप अपने वोट का इस्तेमाल उसके खिलाफ करिए. चुनाव आयोग को तानाशाही और गुंडागर्दी के खिलाफ वोट देने की बात से भी आपत्ति है. चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखने से पहले सोच लेना चाहिए था कि या तो हम एक्सपोज होंगे या हमें फैसला देना होगा कि सभी देशवासी गुंडागर्दी के हक में वोट करें. चुनाव आयोग अपने प्रचार में कहता है कि सच्चा और अच्छा चुनिए, लेकिन चुनिए जरूर. ये सब उनका ब्रांड एंबेसडर कहता है. लेकिन जब हम गुंडागर्दी के खिलाफ वोट डालने की बात करते हैं तो आयोग उस पर आपत्ति जताता है.
अपने वोट की ताकत का इस्तेमाल करेंगे: दिलीप पांडे
दिलीप पांडे ने कहा कि कैंपेन सॉन्ग में इस तरह से पक्तियों का इस्तेमाल काफी पुराना है. हमारे राजनीतिक पूर्वजों ने इतिहास में इससे भी ज्यादा तीखे स्लोगन का इस्तेमाल किया है. जिसे देखकर चुनाव आयोग को शर्म आएगी. आयोग कहता है कि गाने में आम आदमी को जेल में डालने की बात भी सही नहीं है. जबकि हमने सिर्फ इतना कहा कि जिन लोगों ने भी इनका विरोध किया, इन्होंने उसे जेल में डाल दिया. अब ऐसे लोगों को हम वोट के जरिए सत्ता में जाने से रोकेंगे. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और हम कह रहे हैं कि इन सब चीजों के खिलाफ अपने वोट की ताकत का इस्तेमाल करेंगे.
चिट्ठी का खंडन करते हुए हर प्वॉइंट का जवाब दिया: दिलीप पांडे
उन्होंने बताया कि हमने 30 अप्रैल को चुनाव आयोग की चिट्ठी का खंडन करते हुए हर प्वॉइंट का जवाब दिया. हमने चुनाव आयोग की हर टिप्पणी पर अपनी आपत्ति जताई. हमने चुनाव आयोग की किसी भी आपत्ति और सुझाव को नहीं स्वीकार किया. हमने अपने चुनावी कैंपेन सॉन्ग के किसी भी शब्द में बदलाव नहीं किया है. हमने चुनाव आयोग की तानाशाही के आगे घुटने नहीं टेके.
Source : News Nation Bureau