"घर में बंद रहेंगे तो खाएंगे क्या?" वायु प्रदूषण पर छलका दिहाड़ी मजदूरों का दर्द

दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण विभिन्न सख्तियों और पाबंदियों को लागू किया गया है. इन उपायों का सबसे गहरा असर निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा है. जो अब अपनी रोज़ी-रोटी के लिए जूझ रहे हैं.

दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण विभिन्न सख्तियों और पाबंदियों को लागू किया गया है. इन उपायों का सबसे गहरा असर निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा है. जो अब अपनी रोज़ी-रोटी के लिए जूझ रहे हैं.

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Garima Sharma
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"घर में बंद रहेंगे तो खाएंगे क्या?" वायु प्रदूषण पर छलका दिहाड़ी मजदूरों का दर्द

दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते हालात लगातार बिगड़ रहे हैं. इससे न केवल आम लोग प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि निर्माण कार्यों में लगे दिहाड़ी मजदूरों की जिंदगी भी कठिन हो गई है. निर्माण स्थलों पर काम की रफ्तार धीमी पड़ गई है, और इसका सबसे बुरा असर उन मजदूरों पर पड़ रहा है जो अपनी दैनिक कमाई पर निर्भर रहते हैं. इन मजदूरों के सामने अब भूख और आर्थिक संकट जैसी समस्याएं खड़ी हो गई हैं. 

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प्रदूषण के कारण लागू हुईं सख्त पाबंदियां

दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता इंडेक्स (AQI) 450 के पार चला गया, जिसके बाद GRAP-IV (ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान) लागू कर दिया गया. इसके तहत निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध, ट्रकों के प्रवेश पर रोक, और स्कूलों की बंदी जैसी सख्त पाबंदियां लगाई गईं. इस सबका सबसे बड़ा असर उन दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा है, जो रोज़ी-रोटी के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं. 

"घर बैठेंगे तो क्या खाएंगे?" सुमन की चिंता

एक मीडिया चैनल से बात करते हुए सुमन, जो दो बच्चों की मां हैं, ने हाल ही में अपने श्रमिक कार्ड को रिन्यू कराया था. उन्हें उम्मीद थी कि सरकारी सहायता मिल सकेगी, लेकिन वह कहती हैं कि यह एक व्यर्थ प्रयास साबित हुआ. सुमन का कहना है, "अगर हम घर बैठेंगे, तो क्या खाएंगे? बच्चों को क्या खिलाएंगे?" सुमन और उनके जैसे अन्य मजदूरों के लिए काम न मिलना जीवन के लिए सबसे बड़ा संकट बन गया है. 

कर्ज में डूबे दिहाड़ी मजदूर

63 वर्षीय बाबू राम, एक निर्माण श्रमिक, कहते हैं कि वह कर्ज में डूबे हुए हैं और उनका कहना है, "हम जैसे लोगों के लिए कोई पेंशन नहीं है. सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार है, बिचौलिये सब कुछ ले जाते हैं और हमें कुछ नहीं मिलता. अगर काम नहीं कर पाता, तो मेरा परिवार कैसे चलेगा?" बाबू राम के लिए यह संकट न केवल आर्थिक, बल्कि मानसिक रूप से भी बेहद कठिन हो गया है. 

परिवार के लिए जिम्मेदारी उठाता मजदूर

42 वर्षीय राजेश कुमार, जो बिहार से हैं, बताते हैं कि उनका पूरा परिवार उन्हीं की भेजी गई रकम पर निर्भर करता है. राजेश का कहना है, "मैंने अब तक शादी नहीं की है क्योंकि मेरे ऊपर कई जिम्मेदारियां हैं, जिनमें मेरी बहन की शादी भी शामिल है. मैं 6 लाख का कर्ज़ चुका रहा हूं." ऐसे मजदूरों के लिए वायु प्रदूषण के चलते काम रुकना, किसी आपातकाल से कम नहीं है. 

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