Delhi : दिल्ली की शिक्षा मंत्री आतिशी ने शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार शुक्रवार देर रात एक अध्यादेश लेकर आई. इस अध्यादेश से सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली को दिए गए संवैधानिक अधिकार को छीनने की कोशिश है. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. जब पहली बार आम आदमी पार्टी की सरकार बनी थी, उसके बाद मई 2015 में केंद्र ने ऐसी ही एक कोशिश की थी और दिल्ली से अफसरों के ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकारी छीन लिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने 8 साल बाद कहा कि वो गैर संवैधानिक था.
आतिशी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने तीन सिद्धांतों की बात कही थी; फेडरल स्ट्रक्चर, लोकतंत्र का अधिकार, अधिकारियों की चुनी हुई सरकार के प्रति जवाबदेही. SC के इस आदेश का मतलब है कि अगर जनता ने अरविंद केजरीवाल को चुना है तो उन्हें ही निर्णय लेने का अधिकार है. लेकिन केंद्र को यह सहन नहीं हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल को ताकत दे दी है और पीएम को डरावने सपने आने लगे.
उन्होंने आगे कहा कि क्या फर्क पड़ता है कि वो तरीका गैर संवैधानिक है. केंद्र ने सोचा कि कुछ दिन के लिए ही सही केजरीवाल के काम को रोका जाए, इसलिए रात के अंधेरे में सुप्रीम कोर्ट की छुट्टी होने के बाद वे एक गैर संवैधानिक अध्यादेश लेकर आए. उन्हें पता है कि सुप्रीम कोर्ट इस अध्यादेश को स्ट्राइक डाउन कर देगा. यह अध्यादेश कहता है कि दिल्ली सरकार को सर्विसेज पर कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं है. ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए नई अथॉरिटी बनाई जाएगी, जिसमें 3 सदस्य होंगे. मेंबर में सीएम चेयरमैन होंगे और चीफ सेक्रेटरी एवं होम सेक्रेटरी भी होंगे, लेकिन इन दोनों अधिकारियों को केंद्र सरकार नियुक्त करेगी. यानी सीएम चेयरमैन तो होंगे, लेकिन वे माइनोरॉटी में होंगे. और इसका निर्णय मेजोरिटी से होगा. यानी केंद्र के अधिकारियों के जरिए निर्णय होगा और अगर गलती से इस अथॉरिटी ने कोई ऐसा फैसला लिया जो केंद्र को पसंद नहीं है तो एलजी को उसे पलटने का अधिकार होगा.
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आतिशी ने आगे कहा कि यह अध्यादेश कहता है कि चाहे दिल्ली की जनता भारी बहुमत से केजरीवाल को चुने, लेकिन केंद्र सरकार दिल्ली को चलाएगी. संविधान के अनुसार केंद्र के पास ऐसा अध्यादेश लाने की ताकत नहीं है और ऐसा सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है. कोर्ट को ऐसा शक था, इसलिए कोर्ट ने आदेश के जरिए ऐसे रास्ते को बंद कर दिया है. बाबा साहेब के संविधान ने एक लोकतांत्रिक ताकत दी है. इस अध्यादेश से अरविंद केजरीवाल के ताकत को कुछ दिनों के लिए रोक सकते हैं, लेकिन जनता को नहीं रोक सकते हैं.