दिल्ली पारसी अंजुमन (डीपीए) ने दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा है कि अग्नि मंदिर में रजस्वला महिलाओं के प्रवेश पर रोक की वजह पवित्र अग्नि का संरक्षण करना है. संस्था ने यह भी कहा है कि पारसी धर्म समेत किसी भी धर्म की रजस्वला महिला के अग्नि मंदिर में प्रवेश की न तो कानूनी रूप से और न ही संवैधानिक रूप से इजाजत है. मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए.जे.भमभानी की पीठ को सौंपे एक हलफनामे में डीपीए ने कहा है कि यहां तक कि किसी भी ऐसे पारसी पुरुष को भी अग्नि मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं होती जिसके शरीर में चोट लगी हो और रक्त बह रहा हो. डीपीए ने कहा कि यह प्रतिबंध न तो सदा के लिए होता है और न ही मनमाने तरीके से. यह केवल मासिक धर्म की अवधि के लिए होता है. इसका मकसद पवित्र अग्नि की हिफाजत है और यह पारसी धर्म का अभिन्न हिस्सा है.
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अदालत, वकील संजीव कुमार की याचिका पर सुनवाई कर रही है. इस याचिका में डीपीए स्थित पवित्र अग्नि मंदिर के गर्भगृह में गैर पारसी पुरुषों और महिलाओं के प्रवेश पर रोक को गैरकानूनी और असंवैधानिक करार देने का आग्रह किया गया है. डीपीए ने अपने जवाब में कहा है कि याचिका गलत विचार पर आधारित है और पारसी धर्म के मूल सिद्धांतों, विश्वासों, ढांचों और कानूनी स्थिति से अनभिज्ञ है. डीपीए ने यह भी कहा है कि गर्भगृह में तयशुदा पुजारी का ही प्रवेश होता है और पारसी पुरुष भी मंदिर में एक निश्चित स्थान से आगे नहीं जा सकते. डीपीए ने कहा है कि उसका गठन 16 सितंबर 1959 को डिक्लेरेशन आफ ट्रस्ट के तहत हुआ, यह निजी स्तर पर वित्तपोषित है.
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यह केवल पारसी लोगों के लिए है और इनके अलावा किसी अन्य व्यक्ति को डीपीए के अग्नि मंदिर सहित अन्य सुविधाओं का इस्तेमाल करने या प्रवेश करने की मांग करने का कोई कानूनी और संवैधानिक अधिकार नहीं है. संस्था ने कहा कि यह याचिका और कुछ नहीं बस एक अन्य धर्म के पूजास्थल में प्रवेश की अवैध कोशिश है. अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 26 अगस्त की तारीख मुकर्रर की.
Source : IANS