Delhi Govt vs LG Case: देश की सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली की केजरीवाल सरकार को ही राजधानी का असली बॉस बना दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल के अधिकारों को सीमित करने के साथ ही केजरीवाल सरकार का दायरा बढ़ा दिया है. अब आप की सरकार अधिकारियों की नियुक्ति से लेकर तबादले तक सबकुछ खुद करेगी. यही नहीं उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की हर सलाह भी मानना होगी. दिल्ली सरकार को मिली ये जीत इतनी आसान नहीं है. इसके पीछे छिपा है 9 साल का कड़ा संघर्ष. दिल्ली में आप की सरकार आने के बाद से ही वर्चस्व को लेकर एक लंबी जंग चली हैं. आइए एक टाइमलाइन के जरिए जानते हैं कि आखिर इस जंग में कैसे उतार-चढ़ाव आए और फिर केजरीवाल सरकार को जीत मिली.
'जंग' से शुरू हुई अधिकारों की लड़ाई
- 1 अप्रैल 2015: उपराज्यपाल नजीब जंग ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे सीएम केजरीवाल के किसी भी आदेश को नहीं मानें. फिर चाहे वो पुलिस से जुड़ा हो या फिर पब्लिक से.
- 29 अप्रैलः सीएम केजरीवाल ने अधिकारियों से कहा कि सभी फाइलें लेकर एलजी को परेशान ना करें
- 15 मई: LG ने शकुंतला गमलिन को बतौर चीफ सेक्रेटरी अपॉइंट किया, ये केजरीवाल सरकार खिलाफ उनका बड़ा कदम रहा
- 21 मई: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गजट अधिसूचना जारी की. इसमें LG का अधिकार क्षेत्र सेवा, लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि पर है. वह अपने विवेकाधिकार से इस मुद्दे पर सीएम से चर्चा कर सकते हैं.
- 27 जनवरी 2016: केंद्र ने हाईकोर्ट से कहा कि दिल्ली केंद्र के अधीन आती है और उसे पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है.
- 28 मई 2016: AAP सरकार ने MHA के नोटिफिकेशन को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी, वहीं केंद्र HC के 25 मई के आदेश के खिलाफ अधिसूचना को 'संदिग्ध' करार देने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची.
- 8 जुलाई 2016: सर्वोच्च न्यायालय ने केजरीवाल सरकार की याचिका पर विचार से मना कर दिया. HC ने कहा पहले ये तय करें कि क्या केंद्र और राज्य के विवाद में हमारे क्षेत्र में या फिर सुप्रीम कोर्ट विशेष सुनवाई करे
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- 4 अगस्त 2016: HC का फैसला, LG दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख हैं और कैबिनेट की सलाह से नहीं जुड़े
- 15 फरवरी 2017: सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल सरकार के आवेदन को संविधान पीठ को रेफर किया
- 20 फरवरी 2018: चीफ सेक्रेटरी अंशु प्रकाश ने आप नेताओं पर लगाया पिटाई का आरोप
- 11 जून 2018: आईएएस अधिकारियों की हड़ताल के विरोध में एलजी ऑफिस में धरने पर बैठे आप नेता और कार्यकर्ता
- 4 जुलाई 2018: शीर्ष अदालत ने कहा कि LG के पास निर्णय लेने का स्वतंत्र अधिकार नहीं. वह कैबिनेट की सलाह पर काम करने को बाध्य है. साथ ही आर्टिकल 239AA की व्याख्या को लेकर दायर अर्जी नियमित पीठ को भेजी गई.
- 14 फरवरी 2019: दो जजों की पीठ ने अलग-अलग निर्णय देते हुए चीफ जस्टिस से 3 जजों की पीठ गठित करने की सिफारिश की.
- 9 नवंबर 2022: 5 जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की.
- 18 जनवरी 2023: सर्वोच्च अदाल ने वर्चस्व मामले में फैसला सुरक्षित रखा.
- 11 मई 2023: शीर्ष अदालत ने बड़ा फैसला दिया, लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि के मामले छोड़ दिल्ली सरकार का सेवाओं पर विधायी और कार्यकारी अधिकार है.
Source : News Nation Bureau