दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) को नस्लवादी करार देते हुए खारिज कर दिया, जिसमें अफ्रीका के सभी लोगों के पासपोर्ट के साथ-साथ शहर में रहने वाले बांग्लादेशियों के पुलिस वेरिफिकेशन की मांग की गई थी, उन पर ड्रग पेडलर होने का आरोप लगाया गया था. चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि इन सभी लोगों के पास वैध पासपोर्ट हैं. इसमें कहा गया है, आपके द्वारा कोई रिसर्च नहीं किया गया है. इसका आधार क्या है? इन टिप्पणियों को नस्लवादी कहा जा सकता है. क्षमा करें, इसमें कुछ भी नहीं है.
अधिवक्ता सुशील कुमार जैन द्वारा दायर जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि शहर में अधिकांश अफ्रीकी ड्रग पेडलर के कारोबार में हैं और यह युवाओं और उनके भविष्य को प्रभावित कर रहा है. उन्होंने दावा किया कि ऐसे विदेशी नागरिक सीधे तौर पर देश के सामाजिक और आर्थिक ढांचे को बिगाड़ रहे हैं. उन्होंने दलील में कहा कि ये विदेशी छात्र या मेडिकल वीजा लेते हैं और ड्रग्स की तस्करी, मानव तस्करी और साइबर धोखाधड़ी जैसे अवैध काम करते हैं.
याचिका में कहा गया, छात्र वीजा और मेडिकल वीजा लेने वाले कई विदेशी अवैध कार्यों, नशीली दवाओं की तस्करी, मानव तस्करी और साइबर धोखाधड़ी जैसे अपराध में शामिल होते हैं. वेश्यावृत्ति के कारण दिल्ली में एड्स और कई अन्य यौन संचारित रोगों के प्रसार में सहायक (एसआईसी) रहा है. जैन ने आरोप लगाया कि अफ्रीकी लोग और बांग्लादेशी अपने जमींदारों द्वारा उचित वेरिफिकेशन किए बिना यहां किरायेदारों के रूप में रह रहे हैं.
याचिका में कहा गया, वे सभी दिल्ली में किरायेदारों के रूप में रह रहे हैं और उनके जमींदार उनके माध्यम से आसान तरीकों से मौद्रिक लाभ प्राप्त करने के लिए उनके उचित सत्यापन के बिना उन्हें आवास दे रहे हैं.. मकान मालिकों की यह आदत (बिना सत्यापन के विदेशियों को अवैध आश्रय प्रदान करना) आतंकवादियों के मंसूबों को आसान बनाने का काम करते है. जिससे आतंकी दिल्ली और पूरे देश में अपनी नापाक योजना में सफलता प्राप्त करते हैं.
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ न्यूज नेशन टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.
Source : IANS