( रिपोर्टर - सुशील पांडेय )
दिल्ली हाई कोर्ट ने सदर बाजार स्थित शाही ईदगाह पार्क में झांसी की रानी की प्रतिमा स्थापित करने पर रोक लगाने के मांग वाली शाही ईदगाह कमेटी की याचिका को खारिज कर दिया. हाई कोर्ट ने केस खारिज करते हुए कहा था कि इसमें कोई ठोस आधार नहीं है. दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद DDA झांसी की रानी की प्रतिमा की खातिर जमीन कब्जे में करने के लिए शाही ईदगाह पहुंच गया.
दिल्ली हाई कोर्ट ने लगाई फटकार
दिल्ली हाई कोर्ट ने शाही ईदगाह कमिटी को कड़ी फटकार लगाई कोर्ट ने कहा कि कृपया 'सांप्रदायिक राजनीति' को अदालत की चौखट से बाहर रखें. कोर्ट में.दाखिल अर्जी में इस्तेमाल भाषा को अपमानजनक मानते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि साफ तौर पर यहां अदालत के जरिए सांप्रदायिक राजनीति करने की कोशिश हो रही है. यहां अदालत को संबोधित नहीं किया जा रहा है..बल्कि अदालत के जरिए किसी और को संबोधित किया जा रहा है.
MCD ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा
वही दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता शाही ईदगाह (वक्फ) प्रबंध समिति को दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा शाही ईदगाह के आसपास के पार्क या खुले मैदान के रखरखाव का विरोध करने और इस प्रकार दिल्ली नगर निगम द्वारा उसके आदेश पर प्रतिमा की स्थापना का विरोध करने का कोई कानूनी या मौलिक अधिकार नहीं है. हालकि हाई कोर्ट ने कहा अगर यह मान भी लें कि याचिकाकर्ता के पास याचिका दायर करने का अधिकार है तो भी इस कोर्ट को यह नहीं लग रहा कि किस तरह से उनके नमाज अदा करने या किसी भी धार्मिक अधिकार का पालन करने के अधिकार को किसी भी तरह से खतरे में डाला जा रहा है.
अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया
दिल्ली हाई ने कहा यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग द्वारा यथास्थिति बनाए रखने का आदेश स्पष्ट रूप से किसी अधिकार क्षेत्र से परे था. अदालत ने शाही ईदगाह पर अतिक्रमण न करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया..जिसमें दावा किया गया था कि यह एक वक्फ संपत्ति है. समिति ने 1970 में प्रकाशित एक गजट अधिसूचना का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि शाही ईदगाह पार्क मुगल काल के दौरान निर्मित एक प्राचीन संपत्ति है, जिसका उपयोग नमाज अदा करने के लिए किया जा रहा है.
वक्फ प्रॉपर्टी का दावा किया खारिज
मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट जस्टिस ने कहा यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग द्वारा यथास्थिति बनाए रखने का आदेश स्पष्ट रूप से किसी अधिकार क्षेत्र से परे था. अदालत ने शाही ईदगाह पर अतिक्रमण न करने के लिए निकाय प्राधिकारों को निर्देश देने के अनुरोध वाली याचिका को खारिज कर दिया..जिसमें दावा किया गया था कि यह एक वक्फ संपत्ति है. समिति ने 1970 में प्रकाशित एक गजट अधिसूचना का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि शाही ईदगाह पार्क मुगल काल के दौरान निर्मित एक प्राचीन संपत्ति है..जिसका उपयोग नमाज अदा करने के लिए किया जा रहा है.
शाही ईदगाह के आसपास के पार्क या खुले मैदान DDA की संपत्ति
समिति अपने गजट अधिसूचना के हवाले से यह भी कहा कि इतने बड़े परिसर में एक समय में पचास हजार से अधिक लोग नमाज अदा कर सकते हैं. हाई कोर्ट की डबल बेंच ने हाई कोर्ट की सिंगल बेंच द्वारा पारित आदेश का हवाला दिया और कहा कि फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया कि शाही ईदगाह के आसपास के पार्क या खुले मैदान DDA की संपत्ति हैं और इनका रखरखाव DDA के बागवानी प्रभाग-दो द्वारा किया जाता है. कोर्ट ने कहा इसके अलावा, दिल्ली वक्फ बोर्ड भी धार्मिक गतिविधियों के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए पार्क के उपयोग को अधिकृत नहीं करता है. मुख्य बात यह है कि चूंकि शाही ईदगाह से सटे और ईदगाह की दीवारों के भीतर स्थित पार्क/खुला मैदान DDA की संपत्ति है.. इसलिए यह पूरी तरह से DDA की जिम्मेदारी है कि वह जैसा उचित समझे उक्त भूमि के कुछ हिस्सों को सार्वजनिक उपयोग के लिए आवंटित करे..