क्या पूरी दुनिया में एक बार फिर मंदी छाने वाली है? क्या आपकी नौकरी पर खतरा हो सकता है? क्या आपके होम लोन की EMI बढ़ने वाली हैं? क्या अमेरिका बर्बाद होने वाला है? श्रीलंका और पाकिस्तान के बाद भारत की मुश्किलें बढ़ने वाली है? क्या सर्विस सेक्टर तबाह होने वाला है? अगर हां तो आपको क्या करना चाहिए? कोरोना लॉकडाउन के बाद अगर आप भी जमकर शॉपिंग या सैरसपाटा कर रहे हैं तो सावधान हो जाइए और पैसा बचाना शुरू कर दीजिए. क्योंकि पूरी दुनिया में चर्चा है कि मंदी आने वाली है. दरअसल में ऐसा हम क्यों कह रहे हैं...इसकी वजह आपको डिटेल में समझनी चाहिए.
आर्थिक जानकर बता रहे हैं कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद कोरोना के चलते पूरी दुनिया ने सबसे ज्यादा तबाही झेली. अब तक 60 लाखसे ज्यादा जानें जा चुकी हैं. बीते करीब ढाई-तीन साल में दुनियाभर में कई सेक्टर तबाह हुए. करोड़ों लोगों की नौकरियां गईं।कारोबार ठप हो गए. भारत की अर्थव्यवस्था भी इससे अछूती नहीं रही. कोरोना के चलते बचत 20 साल के न्यूनतम स्तर पर थी. पूंजी निवेश 6 साल के न्यूनतम स्तर पर, खपत 3 साल के न्यूनतम स्तर पर जबकि बैंकों का कर्ज रिकार्ड स्तर पर! आंकड़ें बताते हैं कि इसआर्थिक संकट से मुल्क में करीब 12 करोड़ लोगों के रोजगार छिन गए जबकि 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए! जीडीपी मेंकरीब 55% हिस्सेदारी रखने वाला सर्विस सेक्टर पूरी तरह बर्बाद हो चुका था. केन्द्र से लेकर राज्य सरकारों ने इस संकट से उबरने के लिए ढेरों कदम भी उठाए जैसे कारोबारी जगत को आर्थिक पैकेज, ईएमआई के मोर्चे पर मोरेटोरियम और जरूरतमंदों को मुफ्त राशन!
जिंदगी और अर्थव्यवस्था दोनों ही पटरी पर
बीतते वक्त के साथ लगा मानों हालात सुधर रहे हैं. जिंदगी और अर्थव्यवस्था दोनों ही पटरी पर आ रहे हैं, लेकिन अब मंहगाई के आंकड़ें दुनिया भर को डरा रहे हैं. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका में 40 साल के बाद मंहगाई दर 8% से ज्यादा है. यूरोप में भी मंहगाई का यही हाल है. ब्रिटेन में मंहगाई दर 40 साल बाद 9% को पार कर चुकी है. ब्राजील में इस वक्त मंहगाई 11.7%, पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में 14% और यूक्रेन से युद्व कर रहे रूस में मंहगाई का आंकड़ा 17% है. भारत में भी इन्फ्लेशन 7 प्रतिशत है! हमारे यहां थोक मंहगाई दर भी इस वक्त 30 साल में सबसे ज्यादा है. जानकार बता रहे हैं कि भारत में मंहगाई की मार लंबी रहेगी साल2024 तक. यानी अगले डेढ़ साल मंहगाई के मोर्चे पर राहत नहीं है. हाल ही में रिजर्व बैंक की मोनेटरी पॉलिसी कमेटी ने विकास केमोर्चे पर इस डायन मंहगाई को बड़ी बाधा माना है. बैठक का लब्बोलुआब समझें तो आने वाला वक्त मुश्किल भरा हो सकता है. दुनियाभर की तर्ज पर हमारे यहां भी ब्याज दरें और बढ़ सकती हैं. ये तब है जबकि रिजर्व बैंक 1 महीने में 2 बार ब्याज दरें पहले ही बढ़ा चुका है! यानी हाल ही में मंहगी हुई आपकी ईएमआई और मंहगी हो सकती है.
दुनियाभर में महामंदी की ओर इशारा
ये आंकड़ें दुनियाभर में महामंदी की ओर इशारा कर रहे हैं. अमेरिका में पहली तिमाही में गिरावट दिखी है. इंतजार दूसरी तिमाही केनतीजों का है. यूएस फेड के चेयरमैन की मंदी की ओर इशारा कर चुके हैं. साथ ही अमेरिका अपनी ब्याज़ दरों में 28 साल बाद रिकार्डइजाफा कर बड़ा झटका दे चुका है. किसी देश की जीडीपी में लगातार 2 तिमाही यानी 6 महीने की गिरावट को मंदी माना जाता है. जीडीपी में लगातार मंदी को आर्थिक सुस्ती जबकि जीडीपी में लगातार 2 तिमाही 10 फीसदी से ज्यादा की गिरावट को डिप्रेशन या महामंदी माना जाता है। 1930 के दशक में पहले विश्व युद्ध के बाद दुनिया ने ऐसी महामंदी झेली थी. वैसे दुनिया ने कोरोना से पहले हालही में साल 2008 में अमेरिका की मंदी झेली थी, जिसने अमेरिका में 1 करोड़ लोगों को बेरोजगार कर दिया था. 16 ट्रिलियन डॉलर कानुकसान हुआ था. तब की अमेरिकी मंदी का असर भारत में भी दिखा था. 2009 के सरकारी सर्वे के मुताबिक हमारे यहां 5 लाखनौकरियां चली गई थीं. बीपीओ, जेम्स-ज्वैलरी, गारमेंट्स-टेक्स्टाइल और मेटल समेत कई सेक्टर्स में काफी तबाही दिखी थीं
शेयर बाजार में भारी गिरावट मानों मंदी की दस्तक
मौजूदा वक्त में भी एक बड़े तबके को आर्थिक मोर्चे पर हालात उसी ओर जाते दिखते हैं. बीते 2 साल में कोरोना अर्थव्यवस्थाओं कोचौपट कर चुका है. दुनिया की फैक्टरी कहे जाना वाला चीन जीरो कोरोना पॉलिसी के लिए सख्त लॉकडाउन पर काम कर रहा है, जिसने सप्लाई चेन पर व्यापक असर डाला है. रूस-यूक्रेन युद्ध आग में घी का काम कर रहा है. भारी बिकवाली के साथ शेयर बाजार में भारी गिरावट मानों मंदी की दस्तक दे चुकी है. शेयर बाजार मंदी तब मानता है जब मार्केट में 20 फीसदी की गिरावट हो. अमेरिकी डाउजोन्स और एस एंड पी सूचकांक पिछले 6 महीने में 15 और 20 फीसदी नीचे जा चुके हैं. अकेले भारत में ही इस साल 13 जून कोनिवेशकों का 6 लाख करोड़ रूपया डूब चुका है, जो देश के ज्यादातर राज्यों के सालाना बजट से कहीं ज्यादा है. लॉकडाउन शुरू होनेके साथ ही भारत में शेयर बाजार में कूदने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी थी. भारत सरकार के मुताबिक बीते 3 साल में देश में डीमैटखाता धारकों की संख्या में दोगुने का इजाफा हो चुका है. मौजूदा वक्त में देश में 7 करोड़ 38 लाख डीमैट खाता धारक हैं, जबकि 2 करोड़ 75 लाख म्यूचल फंड के निवेशक.
जानकारों के मुताबिक मौजूदा वक्त में अमेरिका के मुकाबले भारत की मुश्किलें कहीं ज्यादा हैं. एक बड़ी वजह एनर्जी के मोर्चे पर भारतका इंपोर्ट पर टिका होना और रूपए का कमजोर होना भी है! पूरी दुनिया की करेंसी डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रही है. पाउंड 11 फीसदी कमजोर हुआ है तो यूरो 7.6 फीसदी, येन में 17.2 फीसदी की गिरावट है तो यूआन में 5.6 फीसदी का. भारतीय रूपया भीरिकार्ड पहली बार 4.7 फीसदी गिरा है. यानी कारोबार करना मुश्किल होगा. इस बीच दुनियाभर की एंजेसी भारत के विकास दर केअनुमान घटा चुके हैं. विश्व बैंक 8.7 फीसदी से घटाकर 7.5 फीसदी और आरबीआई 7.8 से घटाकर 7.2 फीसदी कर चुका है, फिचरेटिंग्स का ताजा अनुमान 7.8 फीसदी है, जो पहले 10.3 फीसदी था. वैसे भारतीय अर्थव्यवस्था के पक्ष में कुछ दलील भी हैं. मसलन, जीएसटी कलेक्शन, जो सालाना 44 फीसदी इजाफे के साथ लगातार तीसरे महीने 1 लाख 40 हजार करोड़ रूपए से ज्यादा है। मईमहीने में निर्यात के मोर्च पर 24 फीसदी की बढ़ोतरी उम्मीदें बांधती है. उम्मीदें खेती-किसानी से भी हैं, जिसने कोरोना के संकट कालमें भी अर्थव्यवस्था को बचाया था। हालांकिं सवाल मंदी की अवधि को लेकर भी होते हैं. एनबीईआर के मुताबिक साल 1945 से2009 तक दुनियाभर में आई मंदी औसतन 11 महीने चलीं हालांकिं फरवरी 2020 में शुरू हुई मंदी सिर्फ 2 महीने चली. सबसे अहमसवाल ये कि मौजूदा वक्त भारत के लिए आपदा है या अवसर? मसलन क्या मैन्यूफैक्चरिंग के मोर्चे पर भारत चीन की मुश्किलें बढ़ासकता है? इसका असर आने वाले वक्त में साफ़ हो सकेगा.
फ़िलहाल इतना तो तय है कि दुनियाभर में आर्थिक मोर्चे पर हालात सामान्य नहीं हैं. संकट गहरा सकता है. चुनौती ना सिर्फ़ सरकार केसामने है, बल्कि व्यक्तिगत तौर पर आपके सामने भी. लिहाज़ा जितना मुमकिन हो ग़ैर ज़रूरी ख़र्चों से बचें और बचत पर फ़ोकस करें.
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Source : Facts With Anurag