राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कोरोना वायरस की दूसरी लहर की रफ्तार कम होते ही मरीजों की संख्या भी घटने लगी है. दिल्ली में हर दिन कोरोना के आंकड़े घटकर अब 3000 से कम हो गए हैं. मगर कोरोना की दूसरी लहर के बीच सबसे बड़ा खतरा म्यूकार्माइकोसिस यानी ब्लैक फंगस सामने नजर आ रहा है. देशभर में 9000 से ज्यादा मामले रिकॉर्ड किए गए हैं. 13 राज्यों ने इस रोग को महामारी करार दे दिया है. राजधानी दिल्ली में ब्लैक फंगस लोगों को अपना शिकार बना रहा है. दिल्ली के सरकारी आंकड़े तो 197 के हैं, लेकिन सूत्रों की मानें तो राजधानी में मरीजों की संख्या 500 से अधिक हो सकती है. ब्लैक फंगस के अटैक के बीच इसके इंजेक्शन भी कमी देखने को मिल रही है.
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दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने माना कि दिल्ली में ब्लैक फंगल इंफेक्शन के इलाज की भी भारी कमी है, क्योंकि इसके लिए एम्फोटेरिसीन-बी इंजेक्शन पहले राज्य सरकार प्राइवेट कंपनियों से खरीद के अस्पतालों तक पहुंचा रही थी. अभी तकरीबन 3 सरकारी और दर्जनभर निजी अस्पतालों में इसका इलाज चल रहा है, लेकिन अब केंद्र सरकार के निर्देशानुसार इस इंजेक्शन को केंद्र सरकार के तरफ से ही मुहैया कराया जाता है जो जरूरत के मुताबिक नहीं है, बल्कि जरूरत से काफी कम है.
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एम्फोटेरिसीन-बी उत्पादन सिर्फ देश की छह कंपनियां करती है, हालांकि अब पांच नई कंपनियों को इसका लाइसेंस दिया गया है. विदेशों से भी लाखों की संख्या में इंजेक्शन आयात किया जा रहा है. उसके बावजूद इसकी कमी नजर आ रही है. कमी की बड़ी वजह है जरूरत और आमतौर पर डॉक्टरों की मानें तो ब्लैक फंगल इन्फेक्शन में एक मरीज को 25 दिनों तक हर रोज 5 से 8 इंजेक्शन की जरूरत पड़ती है, यानी 100 से 200 इंजेक्शन तो एक ही मरीज के लिए जरूरी है, जबकि इसका उत्पादन जरूरत के हिसाब से बेहद कम है.
HIGHLIGHTS
- कोरोना के बीच ब्लैक फंगस का अटैक
- दिल्ली में बढ़े ब्लैक फंगस के मामले
- सत्येंद्र जैन बोले- इंजेक्शन की पड़ी कमी