जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र, जामिया नगर और शाहीन बाग के लोग राष्ट्रपति को पत्र लिखकर संशोधित नागरिकता कानून को निरस्त करने की मांग करेंगे. छात्रों द्वारा तैयार किए गए पत्र का एक प्रारूप शाहीन बाग, बाटला हाउस, नूर नगर, ओखला और आसपास के क्षेत्रों के निवासियों में वितरित किया जा रहा है. जामिया मिल्लिया के पूर्व छात्रों के संगठन के अध्यक्ष शिफा-उल-रहमान ने कहा, “ये पत्र व्यक्तिगत रूप से राष्ट्रपति के कार्यालय को भेजे जाएंगे. हमें इस मामले मे राष्ट्रपति को भेजने के लिए लोगों के 50,000 पोस्टकार्ड मिले हैं.”
उन्होंने कहा कि छात्रों और नागरिकों द्वारा अब तक 15,000 से अधिक पत्रों पर हस्ताक्षर किए गए हैं जिन्हें अगले सप्ताह राष्ट्रपति के कार्यालय में भेजा जाएगा. पत्र का मसौदा कहता है, सीएए भारत के संविधान जो कि सभी नागरिकों को उनकी जाति, पंथ, रंग और धर्म के बावजूद न्याय और समानता सुनिश्चित करता है, के खिलाफ है. अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता का अधिकार देता है. जबकि अनुच्छेद 15 घोषित करता है कि राज्य धर्म, जाति, जाति, लिंग और बहुलता के आधार पर नागरिकों के बीच भेदभाव नहीं कर सकता. इसलिए यह अधिनियम असंवैधानिक है. इससे राष्ट्रीय बहुलवाद और एकता खतरे में पड़ जाएगी.
सीएए पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में धार्मिक तौर पर प्रताड़ना के कारण 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैन, पारसियों और ईसाइयों को नागरिकता देने का प्रावधान करता है. शाहीन बाग और जामिया मिलिया इस्लामिया के बाहर नए कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों और निवासियों ने लिखा, हमारे बुजुर्गों ने देश की आजादी के लिए बलिदान दिया है. उन्होंने दो-राष्ट्र सिद्धांत का दृढ़ता से विरोध किया और सांप्रदायिक विभाजन को छोड़कर राष्ट्रवाद और गंगा-जमुनी तहज़ीब को प्राथमिकता दी.
जामिया के छात्र वसीम खान ने कहा कि हमने कुछ वरिष्ठों और अधिवक्ताओं की मदद से इस पत्र का मसौदा तैयार किया. छात्रों ने राष्ट्रपति से अनुरोध किया है कि संविधान की नींव की रक्षा के लिए और इसके मूल ढांचे को बरकरार रखने के लिए अधिनियम को निरस्त किया जाए.
Source : Bhasha