केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन पिछले 23 दिन से जारी है. कड़ाके की ठंड और खुले आसमान के नीचे हजारों की संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं. एक तरफ जहां किसान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं तो दूसरी तरफ उनके इस आंदोलन पर सियासत के अलग-अलग पहलू भी दिखाई दे रहे हैं. किसान आंदोलन पर खूब सियासी रोटियां सेकी जा रही हैं और राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप की जंग छिड़ी हुई है. इस बीच बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को कृषि कानूनों पर खुली बहस की चुनौती दी है.
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दिल्ली के पूर्व मंत्री और बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने ट्वीट किया, 'मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जी, तीनों किसान बिलों के एक एक क्लॉज, एक एक मुद्दे पर आपको कैमरे के सामने सीधे डिबेट की चुनौती दे रहा हूं. जनता के सामने इन तीनों बिलों पर आपके और मेरे बीच डिबेट. मुझे आशा है कि आप इस गंभीर मुद्दे पर डिबेट की मेरी चुनौती को स्वीकार करने का साहस करेंगे.'
CM @ArvindKejriwal जी
— Kapil Mishra (@KapilMishra_IND) December 18, 2020
तीनों किसान बिलों के एक एक क्लॉज, एक एक मुद्दे पर आपको कैमरे के सामने सीधे डिबेट की चुनौती दे रहा हूं
जनता के सामने इन तीनों बिलों पर आपके और मेरे बीच डिबेट
मुझे आशा है आप इस गंभीर मुद्दे पर डिबेट की मेरी चुनौती को स्वीकार करने का साहस करेंगें
कपिल मिश्रा का यह ट्वीट दिल्ली विधानसभा में केजरीवाल द्वारा तीनों कानूनों की प्रतियों को पढ़ने के बाद आया है. दरअसल, गुरुवार को दिल्ली विधानसभा में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तीनों कानूनों की प्रतियों को फाड़ते हुए कहा कि वह देश के किसानों के साथ छल नहीं कर सकत. मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि कानूनों को भाजपा के चुनावी ‘फंडिंग’ के लिए बनाया गया है और यह किसानों के लिए नहीं है.
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केजरीवाल ने तीनों कानूनों की प्रतियों को फाड़ते हुए कहा, 'मुझे ऐसा करते हुए बहुत दुख हो रहा है. मैं ऐसा नहीं करना चाहता था लेकिन मैं देश के किसानों के साथ छल नहीं कर सकता...जो ठंड में सड़कों पर सो रहे हैं..जब तापमान दो डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है.' उन्होंने कहा, 'मैं सबसे पहले इस देश का नागरिक हूं, मुख्यमंत्री बाद में. विधानसभा तीनों कानूनों को खारिज करती है और केंद्र सरकार को किसानों की मांगों को स्वीकार करना चाहिए.'
केजरीवाल ने कहा कि अब तक 20 प्रदर्शनकारी किसानों की मौत हो चुकी है और कहा कि केंद्र को अब ‘जाग’ जाना चाहिए. उन्होंने कहा, 'केंद्र इस मुगालते में ना रहे कि किसान वापस अपने घर चले जाएंगे. वर्ष 1907 में किसानों का प्रदर्शन नौ महीनों तक चलता रहा जब तक कि ब्रिटिश शासकों ने कुछ कानूनों को निरस्त नहीं कर दिया.'
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मुख्यमंत्री ने सवाल किया, 'जब कानूनों के फायदे के बारे में पूछा गया तो भाजपा के हरेक नेता ने कहा कि किसान देश में कहीं भी अपने उत्पाद बेच सकते हैं...ऐसा लगता है कि उन्होंने अफीम का सेवन किया है...किसानों को अपनी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर बेचने के लिए कहां जाना चाहिए? उत्तरप्रदेश और बिहार में किसान एमएसपी से कम कीमत पर धान बेच रहे हैं.'