राष्ट्रीय राजधानी में बच्चों के लापता होने की दर आज भी सर्वाधिक है. यह जानकारी बच्चों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन, क्राई ने आरटीआई के जरिए दिल्ली पुलिस से प्राप्त आंकड़े के आधार पर मंगलवार जारी की है. संस्था ने दिल्ली में लापता होने वाले बच्चों पर मंगलवार को एक रपट जारी की, और इस समस्या के समाधान तलाशने के लिए एक परामर्श भी आयोजित किया.
संस्था की तरफ से जारी बयान के अनुसार, 2017 में दिल्ली में कुल 6,450 बच्चे (3,915 लड़कियां और 2,535 लड़के) लापता हुए, लगभग 18 बच्चे प्रतिदिन. इस तरह दिल्ली उन शहरों की सूची में सबसे उपर है, जहां हर साल बड़ी संख्या में बच्चे लापता हो रहे हैं.
चाइल्ड राईट्स एंड यू (क्राई) और अलायन्स फॉर पीपल्स राईट (एपीआर) की सहभागिता में यहां आयोजित राज्यस्तरीय परामर्श के दौरान नीतियों एवं कार्यक्रमों, इनके कार्यान्वयन और इनमें मौजूद खामियों तथा समुदायों में निवारक प्रणाली को सशक्त बनाने के तरीकों पर रोशनी डाली गई.
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दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) की सदस्य, सामराह मिर्जा की अध्यक्षता में पहले सत्र में क्राई की सहयोगी संस्थाओं द्वारा बनाए गए समूहों के सदस्यों ने अपनी बात रखी. सशक्त निवारक प्रणाली को सुनिश्चित करने के लिए एपीआर और क्राई ने एक कम्युनिटी विजिलेन्स के रूप में एक मॉडल सिस्टम पेश किया. इसके माध्यम से बताया गया कि कैसे हर समुदाय को अपने क्षेत्र में बच्चों पर निगरानी रखने के लिए सक्षम और सशक्त बनाया जा सकता है.
दूसरे चर्चा सत्र की अध्यक्षता क्राई की क्षेत्रीय निदेशक (उत्तर) सोहा मोइत्रा ने की, जिसमें दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव संजीव जैन, पुलिस उपायुक्त (अपराध शाखा) डॉ. जॉय तिर्की, दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में सहायक निदेशक चेष्टा, डीसीपीसीआर सदस्य समराह मिर्जा ने हिस्सा लिया.
बयान के अनुसार, मोइत्रा ने कहा, 'यद्यपि लापता बच्चों के संदर्भ में पुलिस की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है, लेकिन समेकित बाल सुरक्षा योजना (आईसीपीएस) के अनुसार इस समस्या के समाधान के लिए सामुदायिक स्तर पर निवारक प्रणाली अपनाने की आवश्यकता है.'
उन्होंने कहा, 'बच्चों को लापता होने से बचाने के लिए सिस्टम और सोसाइटी, दोनों को मिलकर काम करना होगा, क्योंकि बच्चों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी राज्य और समाज दोनों की है.'
एपीआर की राज्य समन्वयक, रीना बनर्जी ने कहा, 'बच्चों के चारों ओर सुरक्षा का मजबूत जाल बनाकर काफी हद तक उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है. यह बात इस तथ्य से स्पष्ट हो जाती है कि पिछले दो सालों में उन समुदायों में बच्चों के लापता होने की कोई घटना नहीं घटी है, जहां सशक्त निगरानी समूह बनाए गए हैं.'
डॉ. तिर्की ने कहा, 'एक फेशियल रिकगनिशन सॉफ्टवेयर लांच होने जा रहा है, जो लापता बच्चों के मामले में एक अहम भूमिका निभा सकता है.' उन्होंने इस मुद्दे की रोकथाम के लिए समुदाय की भागीदारी के महत्व पर भी बात की.
बयान में कहा गया है कि लापता बच्चों को खोजने में भी दिल्ली का रिकॉर्ड सबसे खराब है, जहां लापता होने वाले 10 में से छह बच्चे कभी नहीं मिल पाते. जबकि यहां लापता होने वाले बच्चों की संख्या, राष्ट्रीय औसत से अधिक है.
बयान में रपट के हवाले से कहा गया है कि 12-18 वर्ष आयुवर्ग में सबसे ज्यादा बच्चे लापता होते हैं, और इसी आयुवर्ग में लड़कों की तुलना में लड़कियों के लापता होने की संभावना अधिक होती है.
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बयान में कहा गया है कि बच्चों को बाल मजदूरी, व्यावसायिक सेक्स वर्क, जबरदस्ती शादी करने, घरेलू काम करवाने या भीख मंगवाने के लिए लापता किया जाता है.
Source : IANS