मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कोरोना वायरस महामारी के दौरान दिल्ली के सरकारी और निजी अस्पतालों में सिर्फ दिल्लीवासियों का इलाज होने की रविवार को घोषणा की. साथ ही, शहर की उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा से लगी सीमाएं सोमवार से खुलेंगी. वहीं, विपक्षी भाजपा और कांग्रेस ने दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार पर आरोप लगाया कि वह अपने इस कदम के जरिये शहर में ध्वस्त हो रही स्वास्थ्य सेवाओं और कोरोना वायरस महामारी से निपटने में नाकामियों से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है.
इसबीच, दिल्ली में कोरोना वायरस संक्रमण के 1,282 नये मामले सामने आने से शहर में कोविड-19 मामलों की कुल संख्या बढ़ कर 28,936 हो गई है, जबकि इस महामारी से मरने वाले लोगों का आंकड़ा 812 पहुंच गया है. केजरीवाल ने ऑनलाइन संवाददाता सम्मेलन में कहा कि दिल्ली में केंद्र सरकार द्वारा संचालित अस्पतालों के लिए इस तरह का कोई प्रतिबंध नहीं होगा और यदि दूसरे राज्यों के लोग कुछ विशेष ऑपरेशनों के लिए दिल्ली आते हैं, तो उन्हें निजी अस्पतालों में उपचार कराना होगा.
यह भी पढ़ें- COVID-19 मामले में महाराष्ट्र ने चीन को भी पीछे छोड़ा, कुल मामले 85 हजार के पार
मुख्यमंत्री की इस घोषणा से एक दिन पहले आप सरकार द्वारा गठित पांच सदस्यीय समिति ने सिफारिश की थी कि कोविड-19 संकट के मद्देनजर शहर की स्वास्थ्य सुविधाओं का इस्तेमाल सिर्फ दिल्लीवासियों के इलाज के लिए होना चाहिए. मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘मार्च तक दिल्ली के सभी अस्पताल, देश के सभी लोगों के लिये खुले हुए थे. दिल्ली के बाशिंदों ने कभी किसी व्यक्ति को इलाज से मना नहीं किया और दिल्ली में हमेशा ही करीब 60-70 प्रतिशत मरीज अन्य राज्यों के रहे हैं.’’
केजरीवाल ने कहा, ‘‘लगभग 7.5 लाख लोगों ने हमें अपने सुझाव भेजे और 90 प्रतिशत से अधिक लोग चाहते हैं कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान दिल्ली के अस्पताल सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी के मरीजों का उपचार करें.’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, यह निर्णय किया गया है कि दिल्ली स्थित सरकारी और निजी अस्पताल केवल राष्ट्रीय राजधानी में रह रहे लोगों का ही इलाज करेंगे.’’ उनके इस कदम पर दिल्ली भाजपा प्रमुख आदेश गुप्ता ने कहा कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह दिल्ली से हो या बाहर से हो, शहर के अस्पतालों में उसका इलाज होना चाहिए. गुप्ता ने कहा, ‘‘केजरीवाल सरकार का यह फैसला असंवेदनशील है.
यह भी पढ़ें- शिवसेना की प्रतिक्रिया पर एक्टर सोनू सूद का पलटवार, कही ये बड़ी बात
वह असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है, जो कि दिल्ली में ध्वस्त हो रही स्वास्थ्य सुविधाओं और कोरोना वायरस महामारी से निपटने में केजरीवाल सरकार की नाकामी है.’’ दिल्ली कांग्रेस प्रमुख अनिल कुमार ने आरोप लगाया, ‘‘दिल्ली में कोरोना वायरस रोगियों के लिये पर्याप्त बिस्तर नहीं हैं. केजरीवाल को बताना चाहिए कि क्या उनकी सरकार अन्य राज्यों के, खासतौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार के उन लोगों को इलाज देने से मना करेगी, जो दिल्ली में रह रहे हैं लेकिन उनके पास कोई पहचान पत्र या पते का सबूत नहीं है.’’
मुख्यमंत्री ने पिछले सप्ताह शहर की सीमाओं को बंद करने की घोषणा करते हुए मुद्दे पर भी लोगों से राय मांगी थी. केजरीवाल ने रविवार को कहा, ‘‘दिल्ली की स्वास्थ्य सुविधाओं को इस समय कोरोना वायरस संकट से निपटने की आवश्यकता है.’’ दिल्ली में एलएनजेपी अस्पताल, जीटीबी अस्पताल और राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल सहित दिल्ली सरकार द्वारा संचालित लगभग 40 सरकारी अस्पताल हैं. राष्ट्रीय राजधानी में केंद्र द्वारा संचालित बड़े अस्पतालों में एम्स, आरएमएल और सफदरजंग अस्पताल शामिल हैं.
यह भी पढ़ें- HRD मिनिस्टर का बड़ा ऐलान- देश में 15 अगस्त के बाद खुलेंगे स्कूल-कॉलेज
केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों में लगभग 10,000 बिस्तर हैं और लगभग इतने ही बिस्तर दिल्ली स्थित केंद्र संचालित अस्पतालों में हैं. उन्होंने कहा कि केंद्र संचालित अस्पताल अन्य राज्यों के लोगों का इलाज जारी रखेंगे और उनकी सरकार ने इस बारे में कोई अलग आदेश जारी नहीं किया है. उन्होंने कहा कि इससे एक संतुलन बनेगा और इससे दिल्ली तथा दूसरे राज्यों के लोगों के भी हित की रक्षा होगी.
केजरीवाल ने यह भी कहा, ‘‘हम कल से दिल्ली की सीमाएं खोलने जा रहे हैं. मॉल, रेस्तरां और धार्मिक स्थल खुलेंगे, लेकिन होटल और समारोह भवन बंद रहेंगे क्योंकि हमें आने वाले समय में इन्हें अस्पतालों में तब्दील करने की आवश्यकता पड़ सकती है.’’ हालांकि, उन्होंने कहा, ‘‘छूट का मतलब यह नहीं है कि कोरोना वायरस महामारी खत्म हो गई है. आपको कोरोना वायरस संक्रमण से खुद को बचाने के लिये मास्क पहनना होगा, सामाजिक दूरी रखनी होगी और अपने हाथ धोने होंगे. ’’
यह भी पढ़ें- कन्नड़ एक्टर चिरंजीवी सरजा का निधन, 39 वर्ष की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा
उन्होंने वरिष्ठ नागरिकों से अधिक सतर्कता बरतने की अपील की. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि दिल्ली को जून के अंत तक 15,000 बिस्तरों की आवश्यकता होगी और यदि अन्य राज्यों के लोगों को यहां उपचार कराने की अनुमति मिलती है तो सभी बिस्तर केवल तीन दिन के भीतर घिर जाएंगे. इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. महेश वर्मा के नेतृत्व वाली समिति ने शनिवार को सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी.
Source : Bhasha