उच्चतम न्यायालय (Supreme court) ने शुक्रवार को एक अहम फैसला सुनाया कि भ्रष्टाचार (Corruption) के सभी मामलों में प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है और संज्ञेय अपराध का खुलासा करने वाली औपचारिक या अनौपचारिक जानकारी अभियोजन शुरू करने के लिए पर्याप्त होगी. न्यायालय के अनुसार आवश्यकता के अनुरूप प्रारंभिक जांच प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगी. न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने 24 दिसंबर, 2018 के हैदराबाद उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया.
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इसमें अदालत ने एक पुलिस अधिकारी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले में शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी थी क्योंकि उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से पहले कोई प्रारंभिक जांच नहीं की गई थी.
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने की तेलंगाना सरकार की अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि प्रारंभिक जांच कराने को लेकर कोई तय मानदंड या तरीका नहीं है. पीठ ने कहा कि प्रारंभिक जांच का उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि आपराधिक जांच प्रक्रिया मनगढ़ंत और अपुष्ट शिकायत पर शुरू नहीं की जाए.
अदालत ने कहा, 'लिहाजा, हमारा मानना है कि ललिता कुमार बनाम उत्तर प्रदेश (2014 का निर्णय) को भ्रष्टाचार के सभी मामलों में अनिवार्य रूप से अपनाने की आवश्यकता नहीं है.'
पीठ ने कहा, 'अदालत एक बार फिर दोहराती है कि आवश्यकता के अनुरूप प्रारंभिक जांच प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगी. ऐसी जांच कराने के लिये कोई निर्धारित मानदंड नहीं हैं. लिहाजा एक संज्ञेय अपराध का खुलासा करने वाली औपचारिक या अनौपचारिक जानकारी अभियोजन शुरू करने के लिए पर्याप्त होगी.'
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शीर्ष अदालत ने आरोपी अधिकारी की इस दलील को खारिज कर दिया कि उच्चतम न्यायलय के 2014 के आदेश के अनुसार भ्रष्टाचार के मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच अनिवार्य है.
अदालत ने कहा, 'यह बताया जाना चाहिए कि न्यायालय ने यह नहीं माना है कि सभी मामलों में एक प्रारंभिक जांच जरूरी है. वैवाहिक विवाद/पारिवारिक विवाद, वाणिज्यिक अपराध, चिकित्सा लापरवाही मामले, भ्रष्टाचार के मामले आदि से संबंधित मामलों में प्रारंभिक जांच की जा सकती है.'
Source : Bhasha