सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक पीठ ने बुधवार को सर्वसम्मति से अरविंद केजरीवाल के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि दिल्ली के शासन की असली शक्तियां निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि उपराज्यपाल भूमि, पुलिस और कानून एवं व्यवस्था के अलावा सभी क्षेत्रों में मंत्री परिषद से सलाह और सहायता के लिए बाध्य हैं।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए के सीकरी और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की पीठ ने कहा कि उपराज्यपाल के पास स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्तियों का अधिकार नहीं है और वह मनमाने तरीके से कार्य नहीं कर सकते।
अदालत ने कहा कि मंत्री परिषद के साथ विचारों के मतभेद के मामले में उपराज्यपाल मामले को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं, जिनका फैसला मानने के लिए सभी बाध्य होंगे।
अदालत ने कहा कि मंत्री परिषद के फैसले की जानकारी उपराज्यपाल को जरूर होनी चाहिए लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मंत्री परिषद को उनकी सहमति की जरूरत है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रावधान है कि उपराज्यपाल अनुच्छेद 239 के तहत किसी भी मामले को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि प्रत्येक मामला भेजा जाए।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्तियां उसके विधायी शक्तियों के साथ सहविस्तृत हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि दिल्ली सरकार तीन क्षेत्र जमीन, पुलिस, कानून-व्यवस्था को छोड़कर राज्य सूची या समवर्ती सूची में आने वाले किसी भी मुद्दे पर कानून बना सकती है।
और पढ़ें- SC के फैसले पर अरविंद केजरीवाल ने कहा- जनता की जीत, लोकतंत्र की जीत
Source : IANS